कक्षा 9अध्याय 3: चुनावी राजनीति : MP board Class 9 SST Chapter 3 Electoral Politics

MP board Class 9 SST Chapter 3 Electoral Politics : कक्षा 9 के छात्रों के लिए उनकी परीक्षा की तैयारी हेतु “चुनावी राजनीति” पर यह एक विस्तृत और संपूर्ण लेख है। इसमें उचित शीर्षक, उप-शीर्षक और महत्वपूर्ण अंग्रेजी शब्दों को भी शामिल किया गया है।

अध्याय 3: चुनावी राजनीति (Electoral Politics)

भूमिका (Introduction)

पिछले अध्यायों में हमने यह समझा कि लोकतंत्र (Democracy) क्या है और यह क्यों आवश्यक है। हमने देखा कि लोकतंत्र की सबसे बुनियादी विशेषता यह है कि इसमें शासकों का चुनाव जनता करती है। लेकिन यह चुनाव होता कैसे है? क्या यह सिर्फ एक प्रक्रिया है या इसके कुछ गहरे मायने हैं? वह कौन-सी व्यवस्था है जो लोगों को अपने प्रतिनिधि (Representatives) चुनने और यदि वे ठीक से काम न करें तो उन्हें बदलने का अधिकार देती है?

इस अध्याय में, हम इसी व्यवस्था, यानी चुनावी राजनीति (Electoral Politics), की गहराई से पड़ताल करेंगे। हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि किसी भी लोकतंत्र में चुनाव क्यों आवश्यक हैं, एक चुनाव को लोकतांत्रिक क्या बनाता है, और भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में चुनाव की पूरी प्रक्रिया कैसे काम करती है। हम भारत के चुनाव आयोग (Election Commission) की भूमिका और भारतीय चुनावों के सामने मौजूद चुनौतियों पर भी विचार करेंगे।

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1. हमें चुनाव की आवश्यकता क्यों है? (Why Do We Need Elections?)

किसी भी बड़े देश में, जहाँ करोड़ों लोग रहते हैं, यह संभव नहीं है कि सभी लोग एक साथ बैठकर हर मुद्दे पर फैसला करें। इसे प्रत्यक्ष लोकतंत्र (Direct Democracy) कहते हैं, जो केवल बहुत छोटे समुदायों, जैसे कि एक ग्राम सभा, में ही संभव हो सकता है।

इसीलिए, दुनिया के अधिकांश लोकतंत्रों में प्रतिनिधि लोकतंत्र (Representative Democracy) की व्यवस्था अपनाई जाती है। इस व्यवस्था में, नागरिक अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं, जो उनकी ओर से देश के लिए कानून बनाते हैं और सरकार चलाते हैं।

चुनाव इसी प्रतिनिधि लोकतंत्र का आधार हैं। हमें चुनावों की आवश्यकता कई कारणों से होती है:

  1. अपने शासकों का चुनाव करने के लिए: चुनाव नागरिकों को यह तय करने का अधिकार देते हैं कि उनके लिए कानून कौन बनाएगा और सरकार कौन चलाएगा। वे अपनी पसंद के उम्मीदवार को वोट देकर अपना प्रतिनिधि चुन सकते हैं।
  2. सरकार और नीतियों का चयन करने के लिए: चुनाव लोगों को यह अवसर देते हैं कि वे उस राजनीतिक दल (Political Party) को चुनें जिसकी नीतियां उन्हें सबसे अच्छी लगती हैं। जिस पार्टी को बहुमत मिलता है, वह सरकार बनाती है और अपनी नीतियों को लागू करती है।
  3. सरकार बदलने का अवसर: चुनाव का सबसे महत्वपूर्ण कार्य यह है कि यह नागरिकों को सरकार पर नियंत्रण रखने का एक शक्तिशाली उपकरण प्रदान करता है। यदि लोग मौजूदा सरकार के काम से खुश नहीं हैं, तो वे अगले चुनाव में उसे वोट न देकर सत्ता से हटा सकते हैं। यह डर सरकारों को जनता के प्रति जवाबदेह (Accountable) बनाता है।

इस प्रकार, चुनाव एक ऐसी प्रक्रिया है जो लोकतंत्र को जीवंत और सार्थक बनाती है।

चुनाव को लोकतांत्रिक बनाने की शर्तें (What Makes an Election Democratic?)

सिर्फ चुनाव करा देना ही किसी देश को लोकतांत्रिक नहीं बना देता। कई तानाशाह और गैर-लोकतांत्रिक देश भी दिखावे के लिए चुनाव कराते हैं। एक चुनाव को वास्तव में लोकतांत्रिक मानने के लिए कुछ न्यूनतम शर्तों का पूरा होना आवश्यक है:

  1. सबको चुनने का अधिकार हो: इसका मतलब है कि प्रत्येक वयस्क नागरिक को वोट देने का अधिकार होना चाहिए, और प्रत्येक वोट का मूल्य समान होना चाहिए। इसे सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार (Universal Adult Franchise) कहते हैं।
  2. चुनाव में विकल्प उपलब्ध हों: चुनाव में विभिन्न राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को स्वतंत्र रूप से भाग लेने की आजादी होनी चाहिए। नागरिकों के पास एक वास्तविक विकल्प (Choice) होना चाहिए।
  3. नियमित अंतराल पर चुनाव हों: चुनाव एक निश्चित और नियमित अंतराल (जैसे भारत में हर 5 साल) पर होने चाहिए, ताकि लोगों को सरकार बदलने का अवसर मिलता रहे।
  4. स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव: चुनाव एक स्वतंत्र और निष्पक्ष (Free and Fair) माहौल में होने चाहिए, जहाँ लोग बिना किसी डर या दबाव के अपनी पसंद के उम्मीदवार को वोट दे सकें। चुनाव में धांधली (रिगिंग – Rigging) या धोखाधड़ी की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए।

2. भारत में चुनाव प्रक्रिया: एक कदम-दर-कदम मार्गदर्शिका (The Election Process in India: A Step-by-Step Guide)

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, और यहाँ चुनाव कराना एक विशाल और जटिल प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया एक व्यवस्थित और चरणबद्ध तरीके से पूरी की जाती है। आइए, इसे समझते हैं।

(i) चुनावी निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण (Demarcation of Electoral Constituencies)

चुनाव के उद्देश्य से, पूरे देश को जनसंख्या के आधार पर विभिन्न क्षेत्रों में बाँट दिया जाता है। इन क्षेत्रों को निर्वाचन क्षेत्र (Constituency) कहा जाता है।

  • लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections): देश को 543 निर्वाचन क्षेत्रों में बाँटा गया है। प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से एक प्रतिनिधि चुना जाता है, जिसे संसद सदस्य (Member of Parliament – MP) या सांसद कहा जाता है।
  • विधानसभा चुनाव (Vidhan Sabha Elections): इसी तरह, प्रत्येक राज्य को उसकी विधानसभा की सीटों की संख्या के आधार पर अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों में बाँटा जाता है। यहाँ से चुने गए प्रतिनिधि को विधानसभा सदस्य (Member of the Legislative Assembly – MLA) या विधायक कहा जाता है।

यह सुनिश्चित किया जाता है कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या लगभग बराबर हो।

(ii) आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र (Reserved Constituencies)

हमारे संविधान निर्माताओं को यह चिंता थी कि एक खुली चुनावी प्रतिस्पर्धा में, समाज के कुछ कमजोर वर्गों, विशेष रूप से अनुसूचित जाति (Scheduled Castes – SC) और अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes – ST) के लोगों को लोकसभा या विधानसभाओं में पहुँचने का उचित अवसर नहीं मिल पाएगा।

इस समस्या का समाधान करने के लिए, आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों (Reserved Constituencies) की व्यवस्था की गई।

  • यह कैसे काम करता है?: इन आरक्षित सीटों पर, केवल उसी आरक्षित वर्ग (SC या ST) का व्यक्ति ही चुनाव लड़ सकता है। हालांकि, उस क्षेत्र के सभी मतदाता, चाहे वे किसी भी जाति या जनजाति के हों, वोट डालते हैं।
  • वर्तमान स्थिति: वर्तमान में, लोकसभा की 84 सीटें अनुसूचित जाति के लिए और 47 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं।
  • यह आरक्षण प्रणाली बाद में स्थानीय निकायों (पंचायतों और नगर पालिकाओं) में भी लागू की गई, जहाँ अन्य पिछड़ा वर्ग (Other Backward Classes – OBC) और महिलाओं (Women) के लिए भी सीटें आरक्षित की गई हैं।

(iii) मतदाता सूची (The Voter’s List)

एक बार निर्वाचन क्षेत्र तय हो जाने के बाद, अगला कदम उन सभी लोगों की सूची तैयार करना है जो वोट देने के योग्य हैं। इस सूची को मतदाता सूची (Voter’s List) या निर्वाचक नामावली (Electoral Roll) कहा जाता है।

  • योग्यता (Eligibility): भारत का कोई भी नागरिक जिसकी आयु 18 वर्ष या उससे अधिक है, बिना किसी जाति, धर्म या लिंग के भेदभाव के वोट दे सकता है।
  • अद्यतन (Updating): इस सूची को हर चुनाव से पहले संशोधित (Revise) किया जाता है। नए मतदाताओं (जो 18 वर्ष के हो गए हैं) के नाम जोड़े जाते हैं और उन लोगों के नाम हटा दिए जाते हैं जिनकी मृत्यु हो गई है या जो उस स्थान से कहीं और चले गए हैं।
  • मतदाता पहचान पत्र (EPIC): योग्य मतदाताओं को चुनाव फोटो पहचान पत्र (Election Photo Identity Card – EPIC) जारी किया जाता है। हालांकि, मतदान के लिए यह अनिवार्य नहीं है; मतदाता राशन कार्ड या आधार कार्ड जैसे अन्य पहचान प्रमाण भी दिखा सकते हैं।

(iv) उम्मीदवारों का नामांकन (Nomination of Candidates)

लोकतांत्रिक चुनावों में, लोगों के पास वास्तविक विकल्प होना चाहिए। इसलिए, कोई भी व्यक्ति जो मतदाता है, वह उम्मीदवार भी बन सकता है (लोकसभा या विधानसभा के लिए न्यूनतम आयु 25 वर्ष है)।

  • पार्टी का टिकट (Party Ticket): जब कोई राजनीतिक दल किसी उम्मीदवार को अपनी ओर से चुनाव लड़ने के लिए चुनता है, तो इसे ‘पार्टी का टिकट मिलना’ कहते हैं।
  • नामांकन पत्र (Nomination Form): प्रत्येक उम्मीदवार को एक ‘नामांकन पत्र’ भरना होता है और एक निश्चित राशि ‘जमानत राशि’ (Security Deposit) के रूप में जमा करनी होती है।
  • शपथ पत्र (Affidavit): हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) के निर्देश पर एक नई प्रणाली शुरू की गई है। अब प्रत्येक उम्मीदवार को एक कानूनी शपथ पत्र (Affidavit) दाखिल करना होता है, जिसमें उसे अपने खिलाफ चल रहे गंभीर आपराधिक मामलों, अपनी संपत्ति और देनदारियों, और अपनी शैक्षिक योग्यता का विवरण देना होता है। इससे मतदाताओं को अपने उम्मीदवार के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।

(v) चुनाव अभियान (The Election Campaign)

चुनाव अभियान का उद्देश्य उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों को अपनी नीतियों और कार्यक्रमों को जनता के सामने रखने का एक स्वतंत्र और खुला अवसर देना है। भारत में, उम्मीदवारों की अंतिम सूची की घोषणा और मतदान की तारीख के बीच की दो सप्ताह की अवधि में गहन अभियान चलाया जाता है।

  • अभियान के तरीके: इस दौरान, उम्मीदवार और उनके समर्थक मतदाताओं से संपर्क करते हैं, चुनावी सभाएं करते हैं, पोस्टर और बैनर लगाते हैं, और भाषण देते हैं। राजनीतिक दल भी अपने घोषणापत्र (Manifestos) जारी करते हैं।
  • नारे (Slogans): कई बार, चुनाव अभियानों में कुछ प्रसिद्ध नारे भी दिए जाते हैं, जैसे:
    • 1971 में इंदिरा गांधी की कांग्रेस पार्टी का “गरीबी हटाओ” का नारा।
    • 1977 में जनता पार्टी का “लोकतंत्र बचाओ” का नारा।
  • आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct): स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए, चुनाव आयोग द्वारा एक ‘आदर्श आचार संहिता’ लागू की जाती है। इसके कुछ प्रमुख नियम हैं:
    • कोई भी उम्मीदवार या पार्टी चुनाव प्रचार के लिए किसी भी धर्म स्थल का उपयोग नहीं कर सकती।
    • सरकारी वाहनों, विमानों या अधिकारियों का चुनाव प्रचार के लिए उपयोग नहीं किया जा सकता।
    • जाति या धर्म के नाम पर वोट नहीं मांगे जा सकते।
    • मतदाताओं को रिश्वत देना, डराना या धमकाना प्रतिबंधित है।

(vi) मतदान और मतगणना (Polling and Counting of Votes)

  • मतदान का दिन (Polling Day): चुनाव प्रक्रिया का अंतिम चरण वह दिन है जब मतदाता अपना वोट डालते हैं। इस दिन को आमतौर पर चुनाव का दिन कहा जाता है। हर निर्वाचन क्षेत्र में मतदान केंद्र (Polling Booths) स्थापित किए जाते हैं।
  • मतदान प्रक्रिया: जब मतदाता मतदान केंद्र पर जाता है, तो चुनाव अधिकारी उसकी पहचान की पुष्टि करते हैं और उसकी उंगली पर एक अमिट स्याही (इंडेलिबल इंक – Indelible Ink) का निशान लगा देते हैं। इसके बाद मतदाता अपना वोट डालता है।
  • ईवीएम (EVM): पहले मतदान मतपत्र (Ballot Paper) के माध्यम से होता था, जिस पर मतदाता अपने पसंदीदा उम्मीदवार के चुनाव चिह्न पर मुहर लगाता था। अब, मतदान के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (Electronic Voting Machines – EVMs) का उपयोग किया जाता है। EVM के उपयोग से मतपत्रों की छपाई का खर्च बचता है और मतगणना बहुत तेज और सुरक्षित हो जाती है।
  • मतगणना (Counting of Votes): मतदान समाप्त होने के कुछ दिनों बाद, एक निश्चित तारीख पर सभी EVMs को खोला जाता है और वोटों की गिनती की जाती है। जिस उम्मीदवार को सबसे अधिक वोट मिलते हैं, उसे उस निर्वाचन क्षेत्र से विजयी घोषित कर दिया जाता है।

3. भारत में चुनावों को क्या लोकतांत्रिक बनाता है? (What Makes Elections in India Democratic?)

भारत में चुनावों को दुनिया भर में स्वतंत्र और निष्पक्ष माना जाता है। इसका श्रेय काफी हद तक एक स्वतंत्र और शक्तिशाली संस्था को जाता है: भारत का चुनाव आयोग (Election Commission of India – ECI)

  • स्वतंत्रता (Independence): चुनाव आयोग एक स्वायत्त (Autonomous) संवैधानिक निकाय है। यह देश की न्यायपालिका (Judiciary) की तरह ही स्वतंत्र है। मुख्य चुनाव आयुक्त (Chief Election Commissioner) की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, लेकिन एक बार नियुक्त होने के बाद, वह सरकार के प्रति जवाबदेह नहीं होता है।
  • शक्तियाँ और कार्य (Powers and Functions):
    • चुनाव आयोग चुनाव की तारीखों की घोषणा से लेकर परिणामों की घोषणा तक की पूरी प्रक्रिया का संचालन और नियंत्रण करता है।
    • यह आदर्श आचार संहिता को लागू करता है और इसका उल्लंघन करने वाले किसी भी उम्मीदवार या पार्टी को दंडित कर सकता है।
    • चुनाव के दौरान, यह सरकारी अधिकारियों को निर्देश दे सकता है, और वे चुनाव आयोग के अधीन काम करते हैं, न कि सरकार के।
    • यदि किसी मतदान केंद्र पर धांधली की शिकायत मिलती है, तो यह वहाँ फिर से मतदान (री-पोल – Re-poll) का आदेश दे सकता है।

चुनाव आयोग की इसी निष्पक्षता और शक्तियों के कारण भारत में चुनाव लोकतांत्रिक तरीके से संपन्न हो पाते हैं।

स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों की चुनौतियाँ (Challenges to Free and Fair Elections)

यद्यपि भारत की चुनावी प्रणाली काफी मजबूत है, फिर भी इसके सामने कुछ गंभीर चुनौतियाँ हैं:

  1. धन-बल का बढ़ता प्रयोग (Increasing Role of Money Power): चुनाव बहुत खर्चीले हो गए हैं। अमीर उम्मीदवार और बड़ी पार्टियाँ अपने धन के बल पर छोटे दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों पर एक अनुचित लाभ प्राप्त कर लेती हैं।
  2. आपराधिक तत्वों की भागीदारी (Participation of Criminal Elements): कई बार, आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोग अपने धन और बाहुबल (मसल पावर – Muscle Power) का उपयोग करके चुनाव जीत जाते हैं, जो लोकतंत्र के लिए एक गंभीर खतरा है।
  3. वंशवाद की राजनीति (Dynastic Politics): कई राजनीतिक दलों में, शीर्ष पद एक ही परिवार के सदस्यों के पास रहते हैं। इससे एक आम और योग्य कार्यकर्ता के लिए आगे बढ़ना मुश्किल हो जाता है।
  4. वास्तविक विकल्पों का अभाव: अक्सर, प्रमुख राजनीतिक दलों की नीतियों और कार्यक्रमों में बहुत कम अंतर होता है, जिससे मतदाताओं के पास कोई सार्थक विकल्प नहीं बचता।

निष्कर्ष (Conclusion)

चुनावी राजनीति लोकतंत्र का दिल और आत्मा है। यह वह तंत्र है जो नागरिकों को राजनीतिक शक्ति प्रदान करता है और उन्हें अपने भाग्य का निर्माता बनाता है। भारत ने एक मजबूत, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावी प्रणाली स्थापित करने में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है, जिसका श्रेय मुख्य रूप से एक शक्तिशाली और स्वतंत्र चुनाव आयोग को जाता है।

हालांकि, धन-बल, अपराध और वंशवाद जैसी चुनौतियाँ अभी भी मौजूद हैं। इन चुनौतियों का समाधान केवल कानूनों से नहीं हो सकता। इसके लिए नागरिकों, सामाजिक संगठनों और राजनीतिक दलों को और अधिक जागरूक और सक्रिय भूमिका निभानी होगी। एक जीवंत लोकतंत्र केवल चुनाव कराने से नहीं बनता, बल्कि नागरिकों की निरंतर और सूचित भागीदारी (Informed Participation) से बनता है।

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