कक्षा 9अध्याय 2: संविधान निर्माण : MP board Class 9 Chapter 2 Constitutional Design

MP board Class 9 Chapter 2 Constitutional Design : कक्षा 9 के छात्रों के लिए उनकी परीक्षा की तैयारी हेतु “संविधान निर्माण” पर यह एक विस्तृत और संपूर्ण लेख है। इसमें उचित शीर्षक, उप-शीर्षक और महत्वपूर्ण अंग्रेजी शब्दों को भी शामिल किया गया है।

अध्याय 2: संविधान निर्माण (Constitutional Design)

भूमिका (Introduction)

पिछले अध्याय में हमने लोकतंत्र (Democracy) के अर्थ और उसकी विशेषताओं को समझा। हमने देखा कि लोकतंत्र में शासक अपनी मनमानी करने के लिए स्वतंत्र नहीं होते हैं। उनके लिए कुछ बुनियादी नियमों और कानूनों का पालन करना अनिवार्य होता है। नागरिकों के रूप में हमारे भी कुछ अधिकार होते हैं, जिनकी सीमा सरकार भी नहीं लांघ सकती। इन सभी नियमों और कानूनों का लिखित रूप ही संविधान (Constitution) कहलाता है।

संविधान किसी भी देश का सर्वोच्च कानून (Supreme Law) होता है। यह सरकार की शक्तियों, उसकी सीमाओं और नागरिकों के अधिकारों को परिभाषित करता है। लेकिन संविधान बनता कैसे है? इसे कौन बनाता है? और किसी भी देश को संविधान की आवश्यकता क्यों होती है?

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इस अध्याय में, हम इन्हीं महत्वपूर्ण प्रश्नों का उत्तर खोजेंगे। हम पहले दक्षिण अफ्रीका के एक प्रेरणादायक उदाहरण से समझेंगे कि कैसे एक दमनकारी शासन के बाद एक नए और लोकतांत्रिक संविधान का निर्माण हुआ। इसके बाद, हम भारत के संविधान निर्माण की ऐतिहासिक प्रक्रिया और उसके पीछे के दार्शनिक सिद्धांतों की गहराई से पड़ताल करेंगे।

1. दक्षिण अफ्रीका में लोकतांत्रिक संविधान (Democratic Constitution in South Africa)

संविधान की आवश्यकता और महत्व को समझने के लिए दक्षिण अफ्रीका का उदाहरण सबसे उत्कृष्ट है। यह कहानी है दमन, संघर्ष, और अंत में विजय और सुलह की।

(i) रंगभेद के खिलाफ संघर्ष (Struggle Against Apartheid)

17वीं और 18वीं शताब्दी में यूरोप की व्यापारिक कंपनियों ने दक्षिण अफ्रीका को भी भारत की तरह गुलाम बनाया था। लेकिन भारत के विपरीत, काफी संख्या में गोरे लोग दक्षिण अफ्रीका में बस गए और उन्होंने स्थानीय शासन को अपने हाथों में ले लिया। उन्होंने स्थानीय काली आबादी के साथ रंगभेद (Apartheid) की एक क्रूर और दमनकारी नीति लागू की।

रंगभेद क्या था? (What was Apartheid?)

रंगभेद नस्लीय भेदभाव (Racial Discrimination) पर आधारित एक शासकीय प्रणाली थी। इस प्रणाली ने दक्षिण अफ्रीका के लोगों को उनकी चमड़ी के रंग के आधार पर तीन समूहों में बाँट दिया था:

  1. श्वेत (Whites): गोरे शासक।
  2. अश्वेत (Blacks): स्थानीय मूल निवासी, जिनकी आबादी लगभग तीन-चौथाई थी।
  3. रंगीन (Coloured): भारतीय मूल के लोग और मिश्रित नस्ल के लोग।

इस प्रणाली के तहत, अश्वेतों और रंगीन लोगों के साथ बेहद अमानवीय व्यवहार किया जाता था:

  • अलगाव (Segregation): गोरों और अश्वेतों की बस्तियाँ बिल्कुल अलग थीं। अस्पताल, स्कूल, बसें, ट्रेनें, होटल, सिनेमाघर, और यहाँ तक कि शौचालय भी अलग-अलग थे। अश्वेतों को गोरों के लिए आरक्षित किसी भी स्थान पर जाने की अनुमति नहीं थी।
  • अधिकारों का हनन (Denial of Rights): अश्वेतों को वोट देने का अधिकार नहीं था। उन्हें संगठन बनाने और इस अन्यायपूर्ण व्यवस्था का विरोध करने का भी अधिकार नहीं था। उन्हें गोरों के इलाकों में काम करने के लिए भी परमिट (Permit) लेना पड़ता था।

इस क्रूर व्यवस्था के खिलाफ 1950 से ही अश्वेतों, रंगीन लोगों और कुछ प्रगतिशील गोरे लोगों ने संघर्ष शुरू कर दिया। अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस (African National Congress – ANC) के झंडे तले उन्होंने एकजुट होकर इस रंगभेदी शासन का विरोध किया। इस आंदोलन के सबसे प्रमुख नेता नेल्सन मंडेला (Nelson Mandela) थे। रंगभेदी सरकार ने उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया और 1964 में उन्हें और सात अन्य नेताओं को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। उन्हें 28 वर्षों तक दक्षिण अफ्रीका की सबसे भयानक जेल, रॉबेन द्वीप (Robben Island) में कैद रखा गया।

(ii) एक नए संविधान की ओर (Towards a New Constitution)

जैसे-जैसे विरोध और संघर्ष बढ़ता गया और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी रंगभेदी सरकार की आलोचना होने लगी, गोरी सरकार को अहसास हुआ कि अब दमन के बल पर शासन करना संभव नहीं है। उन्होंने अपनी नीतियों में बदलाव करना शुरू किया:

  • भेदभावपूर्ण कानूनों को वापस ले लिया गया।
  • राजनीतिक दलों पर लगे प्रतिबंध हटा लिए गए।
  • 28 वर्षों की लंबी कैद के बाद, नेल्सन मंडेला को 26 अप्रैल, 1994 को आजाद कर दिया गया।

अंततः, 26 अप्रैल 1994 की मध्यरात्रि को, दक्षिण अफ्रीका का नया लोकतांत्रिक झंडा लहराया गया और यह देश दुनिया का एक नया लोकतंत्र बन गया। रंगभेदी शासन का अंत हुआ और सभी नस्लों की मिली-जुली सरकार का गठन हुआ।

यह सब कैसे संभव हुआ? यह संभव हुआ एक नए संविधान के निर्माण से। जेल से बाहर आने के बाद, नेल्ソン मंडेला ने एक ऐसे दक्षिण अफ्रीका के निर्माण का आह्वान किया जो समानता (Equality), लोकतांत्रिक मूल्यों (Democratic Values) और सामाजिक न्याय (Social Justice) पर आधारित हो। उन्होंने गोरे शासकों से सुलह (Reconciliation) की अपील की और कहा कि हमें अतीत के दमन को भूलकर एक नए राष्ट्र का निर्माण करना है।

अगले दो वर्षों तक, श्वेत और अश्वेत नेताओं ने एक साथ बैठकर एक नए संविधान का मसौदा (Draft) तैयार किया। यह एक अविश्वसनीय रूप से कठिन काम था। जिन लोगों ने दशकों तक एक-दूसरे पर अत्याचार किया था और जिन्हें एक-दूसरे पर बिल्कुल भरोसा नहीं था, वे अब एक-दूसरे के साथ बैठकर भविष्य के नियम तय कर रहे थे। लेकिन लंबे विचार-विमर्श और बहस के बाद, उन्होंने दुनिया के सबसे बेहतरीन संविधानों में से एक को जन्म दिया। इस संविधान ने अपने नागरिकों को इतने व्यापक अधिकार दिए जितने दुनिया के किसी भी देश में नहीं हैं। उन्होंने यह तय किया कि किसी भी समस्या का समाधान करते समय किसी को भी अलग-थलग नहीं किया जाएगा, और हर कोई समाधान का हिस्सा होगा।

2. हमें संविधान की आवश्यकता क्यों है? (Why Do We Need a Constitution?)

दक्षिण अफ्रीका का उदाहरण हमें यह समझने में मदद करता है कि किसी भी देश को संविधान की आवश्यकता क्यों होती है। एक संविधान केवल नियमों और कानूनों का एक संग्रह नहीं है, बल्कि यह किसी भी समाज के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य करता है।

(i) यह विश्वास और सहयोग पैदा करता है (It Generates Trust and Coordination)

किसी भी देश में विभिन्न धर्म, जाति, भाषा और विचारों के लोग एक साथ रहते हैं। उनके बीच मतभेद होना स्वाभाविक है। संविधान कुछ ऐसे बुनियादी नियम प्रदान करता है जिन पर देश के लगभग सभी लोग सहमत हो सकते हैं। यह विश्वास दिलाता है कि सरकार का गठन कैसे होगा, किसके पास कौन सी शक्तियाँ होंगी, और कोई भी अपनी शक्तियों का दुरुपयोग नहीं करेगा। इस साझा विश्वास के आधार पर ही विभिन्न समुदाय एक साथ शांतिपूर्वक रह सकते हैं।

(ii) यह सरकार की शक्तियों को स्पष्ट करता है (It Specifies the Powers of the Government)

संविधान यह स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है कि सरकार का गठन कैसे होगा और किस संस्था (जैसे विधायिका – Legislature, कार्यपालिका – Executive, और न्यायपालिका – Judiciary) के पास कौन से निर्णय लेने की शक्ति होगी। यह शक्तियों का एक स्पष्ट बँटवारा (Division of Powers) सुनिश्चित करता है ताकि कोई भी एक अंग असीमित शक्तियों का उपयोग न कर सके।

(iii) यह सरकार की शक्तियों पर सीमाएँ लगाता है (It Limits the Powers of the Government)

एक अच्छा संविधान केवल यह नहीं बताता कि सरकार क्या कर सकती है, बल्कि यह भी बताता है कि सरकार क्या नहीं कर सकती। यह सरकार पर कुछ सीमाएँ लगाता है और नागरिकों को मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) प्रदान करता है, जिनका उल्लंघन सरकार भी नहीं कर सकती। उदाहरण के लिए, सरकार किसी भी नागरिक को केवल उसके धर्म या जाति के आधार पर गिरफ्तार नहीं कर सकती या उसे बोलने की आजादी से वंचित नहीं कर सकती।

(iv) यह एक अच्छे समाज की आकांक्षाओं को व्यक्त करता है (It Expresses the Aspirations of a Good Society)

संविधान केवल नियमों का एक ढाँचा नहीं है, बल्कि यह उस देश के लोगों के सपनों और आकांक्षाओं (Aspirations) का भी प्रतीक है। भारतीय संविधान का उद्देश्य केवल एक लोकतांत्रिक सरकार बनाना नहीं था, बल्कि न्याय (Justice), समानता (Equality) और स्वतंत्रता (Liberty) पर आधारित एक ऐसे समाज का निर्माण करना भी था जहाँ किसी भी प्रकार का भेदभाव न हो।

3. भारतीय संविधान का निर्माण (The Making of the Indian Constitution)

दक्षिण अफ्रीका की तरह ही, भारत का संविधान भी बहुत कठिन परिस्थितियों में बनाया गया था। यह एक विशाल और विविधतापूर्ण देश के लिए एक संविधान बनाने की चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया थी।

(i) संविधान निर्माण का रास्ता (The Path to the Constitution)

भारत का संविधान एक दिन में नहीं बना। इसकी नींव स्वतंत्रता संग्राम (Freedom Struggle) के दौरान ही रखी जा चुकी थी।

  • चुनौतियाँ (Challenges): भारत का जन्म 1947 में धर्म के आधार पर हुए बँटवारे (Partition) की त्रासदी के साथ हुआ था। इस हिंसा में सीमा के दोनों ओर लगभग 10 लाख लोग मारे गए थे। ब्रिटिश शासकों ने रियासतों (Princely States) को यह स्वतंत्रता दे दी थी कि वे चाहें तो भारत या पाकिस्तान में शामिल हो जाएँ या स्वतंत्र रहें, जिससे देश के विखंडन का खतरा पैदा हो गया था। देश का भविष्य अनिश्चित और अंधकारमय लग रहा था।
  • सकारात्मक पक्ष (Advantages): इन चुनौतियों के बावजूद, भारतीय संविधान निर्माताओं के पास एक बड़ा लाभ था। दक्षिण अफ्रीका के विपरीत, भारत में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ही भविष्य के भारत के स्वरूप पर एक व्यापक सहमति (Consensus) बन चुकी थी।
    • 1928 में मोतीलाल नेहरू और कांग्रेस के आठ अन्य नेताओं ने भारत के लिए एक संविधान का मसौदा तैयार किया था।
    • 1931 में कांग्रेस के कराची अधिवेशन में एक प्रस्ताव पारित किया गया था जिसमें यह बताया गया था कि स्वतंत्र भारत का संविधान कैसा होना चाहिए। इन दोनों दस्तावेजों में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार (Universal Adult Franchise), स्वतंत्रता और समानता का अधिकार, और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा जैसी बातों पर जोर दिया गया था।
  • विभिन्न स्रोतों से प्रेरणा (Inspiration from Various Sources): हमारे संविधान निर्माताओं ने दुनिया के अन्य देशों के संविधानों से भी प्रेरणा ली। उन्होंने ब्रिटिश संसदीय प्रणाली (British Parliamentary System), अमेरिका के अधिकारों का विधेयक (US Bill of Rights), फ्रांस की क्रांति के स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के आदर्शों, और रूस की समाजवादी क्रांति (Socialist Revolution) से कई प्रगतिशील विचारों को अपनाया।

(ii) संविधान सभा (The Constituent Assembly)

भारतीय संविधान का निर्माण एक संविधान सभा (Constituent Assembly) द्वारा किया गया था, जिसमें जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि शामिल थे।

  • गठन (Formation): संविधान सभा के लिए चुनाव जुलाई 1946 में हुए थे। इसके सदस्यों का चुनाव सीधे वयस्क मतदाताओं द्वारा नहीं, बल्कि प्रांतीय विधानसभाओं (Provincial Assemblies) के निर्वाचित सदस्यों द्वारा किया गया था।
  • संरचना (Composition): अविभाजित भारत की संविधान सभा में 299 सदस्य थे। यद्यपि इसका चुनाव सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर नहीं हुआ था, फिर भी यह काफी हद तक भारत के सभी क्षेत्रों और समुदायों का प्रतिनिधित्व करती थी। इसमें कांग्रेस के साथ-साथ अन्य दलों के सदस्य भी थे, और इसमें विभिन्न सामाजिक समूहों – हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, एंग्लो-इंडियन, पारसी – के साथ-साथ विभिन्न जातियों और जनजातियों के प्रतिनिधि भी शामिल थे।
  • प्रमुख सदस्य (Key Members): संविधान सभा में उस समय के कुछ महानतम नेता शामिल थे:
    • डॉ. राजेंद्र प्रसाद: संविधान सभा के अध्यक्ष (President) थे।
    • डॉ. बी. आर. अंबेडकर: प्रारूप समिति (Drafting Committee) के अध्यक्ष थे और उन्हें “भारतीय संविधान का जनक” (Father of the Indian Constitution) कहा जाता है।
    • जवाहरलाल नेहरू: भारत के पहले प्रधानमंत्री, जिन्होंने “उद्देश्य प्रस्ताव” (Objectives Resolution) पेश किया, जो संविधान की प्रस्तावना का आधार बना।
    • सरदार वल्लभभाई पटेल: जिन्होंने रियासतों के एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
    • मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, सरोजिनी नायडू, फ्रैंक एंथोनी जैसे कई अन्य महत्वपूर्ण सदस्य भी थे।
  • कार्यशैली (Working Style): संविधान सभा ने बहुत ही व्यवस्थित, खुला और सर्वसम्मति बनाने के प्रयास के साथ काम किया।
    1. सबसे पहले, कुछ बुनियादी सिद्धांतों पर चर्चा की गई और उन पर सहमति बनाई गई।
    2. फिर, डॉ. बी. आर. अंबेडकर की अध्यक्षता में एक प्रारूप समिति (Drafting Committee) ने इन सिद्धांतों के आधार पर संविधान का एक मसौदा तैयार किया।
    3. इस मसौदे पर महीनों तक गहन चर्चा हुई। इसके प्रत्येक खंड (Clause) पर विचार-विमर्श किया गया। सदस्यों ने 2,000 से अधिक संशोधनों (Amendments) पर विचार किया।
    4. यह पूरी प्रक्रिया लगभग 3 साल (2 साल, 11 महीने और 18 दिन) तक चली। इस विस्तृत और खुली बहस के कारण ही हमारा संविधान आज भी इतना प्रासंगिक और सम्मानित है।

संविधान सभा ने 26 नवंबर, 1949 को अपना काम पूरा किया, और संविधान को अपनाया गया। यह संविधान 26 जनवरी, 1950 को पूरे देश में लागू हुआ। इसी दिन को हम हर साल गणतंत्र दिवस (Republic Day) के रूप में मनाते हैं।

4. भारतीय संविधान के बुनियादी मूल्य (Guiding Values of the Indian Constitution)

हमारा संविधान कुछ बुनियादी मूल्यों और एक दर्शन (Philosophy) पर आधारित है। ये मूल्य स्वतंत्रता संग्राम के दौरान विकसित हुए और उन्होंने संविधान की नींव रखी। इन सभी मूल्यों को हम संविधान की प्रस्तावना (Preamble) में देख सकते हैं।

प्रस्तावना संविधान की आत्मा की तरह है। यह एक संक्षिप्त बयान है जो संविधान के उद्देश्यों और आदर्शों को प्रकट करता है। आइए, प्रस्तावना में दिए गए प्रमुख शब्दों को समझें:

  • हम, भारत के लोग (We, the People of India): यह वाक्यांश इस बात पर जोर देता है कि संविधान को भारत के लोगों ने स्वयं बनाया है और अंतिम संप्रभुता (Sovereignty) भारत की जनता में निहित है। इसे किसी राजा या बाहरी शक्ति ने हम पर थोपा नहीं है।
  • संप्रभु (Sovereign): इसका मतलब है कि भारत अपने आंतरिक और बाहरी मामलों में निर्णय लेने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र है। कोई भी बाहरी शक्ति भारत सरकार को आदेश नहीं दे सकती।
  • समाजवादी (Socialist): यह शब्द 1976 में 42वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया था। इसका उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को कम करना है। सरकार का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि देश की संपत्ति का बँटवारा इस तरह से हो कि समाज के सभी वर्गों को उसका लाभ मिले।
  • पंथनिरपेक्ष (Secular): इसका अर्थ है कि राज्य का अपना कोई आधिकारिक धर्म (Official Religion) नहीं होगा। सभी नागरिकों को अपनी पसंद के किसी भी धर्म का पालन करने और उसका प्रचार करने की पूरी स्वतंत्रता होगी। सरकार धर्म के आधार पर किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं करेगी।
  • लोकतांत्रिक (Democratic): यह एक ऐसी शासन व्यवस्था को स्थापित करता है जहाँ लोग अपने शासकों का चुनाव करते हैं और उन्हें जवाबदेह ठहराते हैं।
  • गणराज्य (Republic): इसका मतलब है कि देश का प्रमुख (Head of the State), यानी राष्ट्रपति, एक वंशानुगत राजा या रानी नहीं होगा, बल्कि एक निर्वाचित व्यक्ति होगा।
  • न्याय (Justice): संविधान सभी नागरिकों के लिए सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय सुनिश्चित करने का वादा करता है। सामाजिक न्याय का अर्थ है कि जाति, धर्म, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होगा। आर्थिक न्याय का अर्थ है कि सभी को अपनी आजीविका के लिए समान अवसर मिलेंगे।
  • स्वतंत्रता (Liberty): यह सभी नागरिकों को विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता प्रदान करता है।
  • समता (Equality): इसका अर्थ है कि कानून के समक्ष सभी नागरिक बराबर हैं और सभी को समान अवसर उपलब्ध होंगे। यह सामाजिक असमानताओं, जैसे छुआछूत (Untouchability) को समाप्त करता है।
  • बंधुता (Fraternity): इसका उद्देश्य देश के सभी नागरिकों के बीच भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना है, ताकि कोई भी नागरिक दूसरे को हीन न समझे और देश की एकता और अखंडता (Unity and Integrity) बनी रहे।

निष्कर्ष (Conclusion)

संविधान निर्माण की प्रक्रिया केवल कानूनी दस्तावेजों को लिखने की प्रक्रिया नहीं थी, बल्कि यह एक नए और स्वतंत्र भारत के भविष्य को आकार देने की प्रक्रिया थी। यह एक ऐसे राष्ट्र के निर्माण का प्रयास था जो दशकों की गुलामी, विभाजन की हिंसा और गहरी सामाजिक असमानताओं से उबरकर एक साथ खड़ा हो सके।

भारतीय संविधान एक जीवंत दस्तावेज (Living Document) है। यह केवल नियमों की एक किताब नहीं है, बल्कि यह उन मूल्यों और आदर्शों का प्रतीक है जिन्होंने हमारे स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरित किया। डॉ. अंबेडकर और संविधान सभा के अन्य सदस्यों की दूरदर्शिता और कड़ी मेहनत के कारण ही आज भारत एक सफल और स्थिर लोकतंत्र के रूप में खड़ा है, जो दुनिया भर के कई देशों के लिए एक प्रेरणा स्रोत है। यह संविधान ही है जो भारत की अपार विविधता को एक सूत्र में पिरोकर रखता है और हमें एक राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ने का मार्ग दिखाता है।

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