MP Board 10th Social Mineral And Energy Resources Question Bank

MP Board 10th Social Mineral And Energy Resources Question Bank : ्दिये गए प्रश्न बैंक संग्रह मे परिक्षोपयोगी Mineral And Energy Resources  पर आधारित महत्त्वपूर्ण प्रश्नों का संग्रह MP Board 10th Social Mineral And Energy Resources Question Bank के अंतर्गत दिया गया है .

स्मरणीय बिंदु –

  • खनिज – खनिज एक प्राकृतिक रूप से विद्यमान समरूप तत्व है जिसकी एक निश्चित आंतरिक संरचना है।
  • खनिजों का वर्गीकरण उनके भौतिक व रासायनिक गुणों जैसे- रंग, कठोरता, चमक, घनत्व, क्रिस्टल आदि के आधार पर किया जाता है।
  • वर्तमान समय तक भू पर्पटी पर 2000 से अधिक प्रकार के खनिजों की पहचान की जा चुकी है।
  • अयस्क- ऐसी चट्टानें जिनमें विभिन्न अवयवों के साथ किसी खनिज विशेष का पर्याप्त मात्रा में संचयन या मिश्रण पाया जाता है।
  • धात्विक खनिज- ऐसे खनिज जिनमें धातुओं का अंश पाया जाता है। जैसे- लौह अयस्क, बॉक्साइट, स्वर्ण खनिज आदि।
  • लौह खनिज- ऐसे खनिज जिनमें लौह धातु का अंश पाया जाता है। जैसे- लौह अयस्क, मैंगनीज, निकल, कोबाल्ट आदि।
  • अलौह खनिज- ऐसे खनिज जिनमें लौह धातु का अंश नहीं पाया जाता है। जैसे- तांबा, सीसा जस्ता बॉक्साइट, सोना, चांदी प्लेटिनम, आदि।
  • बहुमूल्य खनिज- सोना, चांदी, प्लेटिनम आदि।
  • अधात्विक खनिज- ऐसे खनिज जिनमें धात्विक अंश नहीं पाया जाता।
  • ऊर्जा खनिज- ऐसे खनिज जिन्हें ईंधन या ऊर्जा प्राप्त करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है। जैसे—कोयला, पेट्रोलियम प्राकृतिक गैस।
  • प्लेसर निक्षेप- पहाड़ियों के आधार या घाटी तल की रेत में जलोढ़ जमाव के रूप में पाए जाने वाले खनिज निक्षेपों को प्लेसर निक्षेप कहते है।
  • रैट होल खनन- जोवाई व चेरापूंजी में कोयले का खनन परिवार के सदस्यों द्वारा एक लंबी संकीर्ण सुरंग के रूप में कियाजाता है, जिसे रैट होल खनन कहते है।
  • प्रायद्वीपीय चट्टानों में कोयला, धात्विक खनिज, अभ्रक व अनेक प्रकार के अधात्विक प्रकार के खनिज भण्डार संचित है।
  • तेल खनिज/पेट्रोलियम प्रायद्वीप के पश्चिमी और पूर्वी किनारों की तलछटी चट्टानों में पाए जाते है।
  • उत्तर भारत के जलोढ़ मैदान में सामान्यतः खनिज नहीं पाए जाते।

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विश्लेषणात्मक प्रश्न- (प्रत्येक 4 अंक)

  1. भारत में लौह अयस्क पेटियों तथा उत्पादन क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
  2. भारत में मैंगनीज का वितरण बताइए।
  3. कोयले की निर्माण प्रक्रिया का वर्णन करते हुए इसके प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  4. कोयला किन शैलक्रमों में पाया जाता है ? भारत में इसके प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
  5. पेट्रोलियम की उपयोगिता बताते हुए भारत में इसके उत्पादक क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
  6. ऊर्जा संसाधनों का संरक्षण क्यों आवश्यक है?
  7. भविष्य की ऊर्जा आवश्यकता के लिए गैर परम्परागत ऊर्जा संसाधनों का विकास आवश्यक है, व्याख्या कीजिए।
  8. लौह अयस्क के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  9. खनिजों का संरक्षण क्यों आवश्यक है ? समझाए।
  10. ऊर्जा के परम्परागत साधनों का वर्णन कीजिये।
  11. ऊर्जा के गैर परम्परागत साधनों का वर्णन कीजिये।
  12. कोयला पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस की तुलना में जल विद्युत ऊर्जा का एक अच्छा साधन है, व्याख्या कीजिए।
  13. भारत में सौर ऊर्जा विकास की असीम सम्भावनाये है, व्याख्या कीजिए।
  14. भारत में पवन ऊर्जा का वर्णन कीजिए।
  15. क्या कारण है की लोहा इस्पात उद्योग तथा ताप विद्युत गृह कोयला क्षेत्रों के निकट ही स्थापित होते है?
  16. मध्यप्रदेश के प्रमुख ताँबा उत्पादक क्षेत्र का वर्णन कीजिये।
  17. मैंगनीज तथा ताँबे के उपयोग लिखिए।
  18. विभिन्न शैल समूहों और उनमे पाए जाने वाले खनिजों का वर्णन कीजिए।

विश्लेषणात्मक प्रश्न उत्तर (प्रत्येक 4 अंक)

प्रश्न 1. भारत में लौह अयस्क पेटियों तथा उत्पादन क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।

उत्तर:भारत में अच्छी गुणवत्ता वाले लौह अयस्क के विशाल भंडार हैं। यह औद्योगिक विकास की रीढ़ है। भारत में लौह अयस्क की प्रमुख पेटियाँ और उत्पादन क्षेत्र निम्नलिखित हैं:

  1. ओडिशा-झारखंड पेटी: यहाँ hématite किस्म का उच्च कोटि का लौह अयस्क पाया जाता है। ओडिशा के मयूरभंज और केंदुझर जिलों में स्थित बादामपहाड़ खदानों से तथा झारखंड के सिंहभूम जिले में स्थित गुआ और नोआमुंडी से इसका खनन होता है।
  2. दुर्ग-बस्तर-चंद्रपुर पेटी: यह पेटी महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ राज्यों में फैली हुई है। छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले की बैलाडिला पहाड़ी श्रृंखलाओं में hématite अयस्क के विशाल भंडार हैं। यहाँ से उत्पादित उच्च कोटि के अयस्क का जापान और दक्षिण कोरिया को निर्यात किया जाता है।
  3. बल्लारी-चित्रदुर्ग-चिकमगलूर-तुमकुरु पेटी (कर्नाटक): कर्नाटक की इस पेटी में लौह अयस्क की बृहत् राशि संचित है। कुद्रेमुख की खानें शत-प्रतिशत निर्यात के लिए प्रसिद्ध हैं। यहाँ का अयस्क पाइपलाइन द्वारा मंगलुरु के निकट एक पत्तन पर भेजा जाता है।
  4. महाराष्ट्र-गोवा पेटी: यह पेटी गोवा तथा महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में स्थित है। यहाँ का लौह अयस्क उत्तम प्रकार का नहीं है, फिर भी इसका दक्षता से दोहन किया जाता है और मर्मागाओ पत्तन से इसका निर्यात कर दिया जाता है।

प्रश्न 2. भारत में मैंगनीज का वितरण बताइए।

उत्तर:मैंगनीज एक महत्वपूर्ण खनिज है जिसका उपयोग मुख्य रूप से इस्पात और लौह-मिश्रधातु बनाने में किया जाता है। इसका उपयोग ब्लीचिंग पाउडर, कीटनाशक और पेंट बनाने में भी होता है। भारत में मैंगनीज का वितरण इस प्रकार है:

  • उत्पादन: भारत में मैंगनीज का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश है। यहाँ बालाघाट की खदानें देश का लगभग 52% मैंगनीज उत्पादन करती हैं।
  • अन्य प्रमुख राज्य: महाराष्ट्र, ओडिशा, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश भारत के अन्य प्रमुख मैंगनीज उत्पादक राज्य हैं।
  • भंडार: मैंगनीज के सबसे बड़े भंडार ओडिशा में पाए जाते हैं, इसके बाद कर्नाटक और मध्य प्रदेश का स्थान है।
  • महत्व: मैंगनीज इस्पात उद्योग के लिए एक अनिवार्य कच्चा माल है, क्योंकि एक टन इस्पात बनाने में लगभग 10 किलोग्राम मैंगनीज की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 3. कोयले की निर्माण प्रक्रिया का वर्णन करते हुए इसके प्रकारों का वर्णन कीजिए।

उत्तर:कोयले की निर्माण प्रक्रिया: कोयले का निर्माण लाखों वर्षों की लंबी प्रक्रिया के बाद होता है। जब पादप (पेड़-पौधे) दलदली क्षेत्रों में दब जाते हैं, तो उन पर दाब और ताप का प्रभाव पड़ता है। धीरे-धीरे पृथ्वी की गर्मी और ऊपर की परतों के दबाव के कारण वे संपीड़ित होते हैं और उनमें से नमी तथा अन्य वाष्पशील पदार्थ निकल जाते हैं। इस प्रक्रिया को कार्बनीकरण (Carbonization) कहते हैं, जिसके फलस्वरूप कोयले का निर्माण होता है।

कोयले के प्रकार: कार्बन की मात्रा, नमी और ऊष्मा देने की क्षमता के आधार पर कोयला चार प्रकार का होता है:

  1. पीट (Peat): यह कोयला निर्माण की पहली अवस्था है। इसमें कार्बन की मात्रा कम और नमी की मात्रा अधिक होती है, इसलिए इसकी ताप उत्पादन क्षमता बहुत कम होती है।
  2. लिग्नाइट (Lignite): यह एक निम्न कोटि का भूरा कोयला होता है। यह मुलायम होने के साथ-साथ अधिक नमीयुक्त होता है। इसके प्रमुख भंडार तमिलनाडु के नेवेली में मिलते हैं।
  3. बिटुमिनस (Bituminous): यह सबसे अधिक लोकप्रिय और वाणिज्यिक उपयोग वाला कोयला है। गहराई में दबने तथा अधिक तापमान से प्रभावित होने के कारण यह बेहतर गुणवत्ता का होता है।
  4. ऐंथ्रेसाइट (Anthracite): यह सर्वोत्तम गुणवत्ता वाला कठोर कोयला है। इसमें कार्बन की मात्रा 80% से अधिक होती है, यह जलते समय धुआँ नहीं देता और अधिक ऊष्मा प्रदान करता है।

प्रश्न 4. कोयला किन शैलक्रमों में पाया जाता है? भारत में इसके प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।

उत्तर:भारत में कोयला मुख्य रूप से दो प्रमुख भूगर्भिक युगों के शैलक्रमों में पाया जाता है:

  1. गोंडवाना शैलक्रम: यह कोयला लगभग 20 करोड़ वर्ष से अधिक पुराना है। भारत का लगभग 98% कोयला भंडार और 99% उत्पादन इसी समूह से संबंधित है। यह कोयला धातुशोधन के लिए उपयुक्त उच्च श्रेणी का कोयला है।
  2. टर्शियरी (Tertiary) निक्षेप: यह कोयला लगभग 5.5 करोड़ वर्ष पुराना है। यह निम्न कोटि का कोयला होता है।

प्रमुख उत्पादक क्षेत्र:

  • गोंडवाना कोयला क्षेत्र: ये मुख्य रूप से दामोदर घाटी (पश्चिम बंगाल-झारखंड), झरिया, रानीगंज, बोकारो, गोदावरी घाटी, महानदी घाटी और सोन घाटी में स्थित हैं।
  • टर्शियरी कोयला क्षेत्र: ये उत्तर-पूर्वी राज्यों जैसे मेघालय, असम, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड में पाए जाते हैं।

प्रश्न 5. पेट्रोलियम की उपयोगिता बताते हुए भारत में इसके उत्पादक क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।

उत्तर:पेट्रोलियम की उपयोगिता:

पेट्रोलियम, जिसे खनिज तेल भी कहा जाता है, आधुनिक युग का सबसे महत्वपूर्ण ऊर्जा स्रोत है। इसकी उपयोगिता इस प्रकार है:

  • यह ताप और प्रकाश के लिए ईंधन का काम करता है।
  • मशीनों के लिए स्नेहक (lubricant) प्रदान करता है।
  • यह अनेक विनिर्माण उद्योगों, जैसे- संश्लेषित वस्त्र (synthetic textiles), उर्वरक, प्लास्टिक और रसायन उद्योगों के लिए कच्चा माल प्रदान करता है।
  • परिवहन के साधनों (कार, बस, ट्रेन, हवाई जहाज) के लिए यह प्रमुख ईंधन है।

भारत में उत्पादक क्षेत्र:

भारत में अधिकांश पेट्रोलियम टर्शियरी युग की शैल संरचनाओं के अपनति (anticlines) और भ्रंश ट्रैप (fault traps) में पाया जाता है। प्रमुख क्षेत्र हैं:

  1. मुंबई हाई: यह भारत का सबसे बड़ा पेट्रोलियम उत्पादक क्षेत्र है, जो देश के कुल उत्पादन का लगभग 63% हिस्सा देता है। यह अरब सागर में स्थित एक अपतटीय क्षेत्र है।
  2. गुजरात: यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्र है। अंकलेश्वर यहाँ का सबसे महत्वपूर्ण तेल क्षेत्र है।
  3. असम: यह भारत का सबसे पुराना तेल उत्पादक राज्य है। डिगबोई, नहरकटिया और मोरन-हुगरीजन यहाँ के प्रमुख तेल क्षेत्र हैं।

प्रश्न 6. ऊर्जा संसाधनों का संरक्षण क्यों आवश्यक है?

उत्तर:ऊर्जा किसी भी देश के आर्थिक विकास के लिए मूलभूत आवश्यकता है। कृषि, उद्योग, परिवहन और घरेलू कार्यों के लिए ऊर्जा अनिवार्य है। ऊर्जा संसाधनों का संरक्षण निम्नलिखित कारणों से अत्यंत आवश्यक है:

  1. सीमित उपलब्धता: कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस जैसे ऊर्जा के परंपरागत स्रोत अनवीकरणीय (non-renewable) हैं। इनके भंडार सीमित हैं और इन्हें बनने में लाखों वर्ष लगते हैं। इनका अत्यधिक उपयोग इन्हें जल्द ही समाप्त कर देगा।
  2. पर्यावरणीय प्रभाव: जीवाश्म ईंधनों (कोयला, पेट्रोलियम) के जलने से वायु प्रदूषण होता है, जिससे अम्ल वर्षा और वैश्विक ऊष्मन (global warming) जैसी गंभीर समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
  3. भावी पीढ़ियों के लिए: सतत पोषणीय विकास (sustainable development) के लिए यह आवश्यक है कि हम ऊर्जा संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करें ताकि वे भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी उपलब्ध रहें।
  4. आर्थिक कारण: भारत अपनी पेट्रोलियम आवश्यकताओं का एक बड़ा हिस्सा आयात करता है। ऊर्जा की खपत कम करके हम बहुमूल्य विदेशी मुद्रा बचा सकते हैं और देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सकते हैं।

प्रश्न 7. भविष्य की ऊर्जा आवश्यकता के लिए गैर-परंपरागत ऊर्जा संसाधनों का विकास आवश्यक है, व्याख्या कीजिए।

उत्तर:भविष्य की बढ़ती ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने और सतत विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए गैर-परंपरागत ऊर्जा संसाधनों का विकास अत्यंत आवश्यक है। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:

  1. परंपरागत साधनों की कमी: कोयला और पेट्रोलियम जैसे परंपरागत ऊर्जा स्रोत सीमित और समाप्त होने वाले हैं। देश की बढ़ती जनसंख्या और विकास के साथ ऊर्जा की मांग लगातार बढ़ रही है, जिसे केवल परंपरागत साधनों से पूरा नहीं किया जा सकता।
  2. पर्यावरण संरक्षण: परंपरागत साधन (जीवाश्म ईंधन) गंभीर वायु प्रदूषण फैलाते हैं और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करते हैं, जो जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण है। इसके विपरीत, गैर-परंपरागत स्रोत जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और बायोगैस स्वच्छ और पर्यावरण-अनुकूल हैं।
  3. ऊर्जा सुरक्षा: गैर-परंपरागत स्रोत हमें ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाते हैं। इससे पेट्रोलियम जैसे ईंधनों के आयात पर हमारी निर्भरता कम होती है, जिससे हमारी अर्थव्यवस्था मजबूत होती है।
  4. असीम उपलब्धता: भारत जैसे देश में सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और ज्वारीय ऊर्जा की असीम संभावनाएं हैं। ये स्रोत नवीकरणीय (renewable) हैं, अर्थात् ये कभी समाप्त नहीं होंगे। इनका विकास हमें एक स्थायी और सुरक्षित ऊर्जा भविष्य प्रदान करता है।

प्रश्न 8. लौह अयस्क के प्रकारों का वर्णन कीजिए।

उत्तर:लौह अयस्क किसी भी देश के औद्योगिक विकास का आधार होते हैं। गुणवत्ता और लौहांश की मात्रा के आधार पर भारत में पाए जाने वाले लौह अयस्क के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं:

  1. मैग्नेटाइट (Magnetite):
    • यह सर्वोत्तम प्रकार का लौह अयस्क है, जिसमें लोहे का अंश 70% तक होता है।
    • इसमें सर्वश्रेष्ठ चुंबकीय गुण होते हैं, जो इसे विद्युत उद्योग के लिए विशेष रूप से उपयोगी बनाते हैं।
  2. हेमेटाइट (Hematite):
    • यह भारत में पाया जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण औद्योगिक लौह अयस्क है।
    • इसमें लोहे का अंश 50 से 60 प्रतिशत तक होता है।
    • भारत के कुल लौह अयस्क उत्पादन का अधिकांश हिस्सा हेमेटाइट ही है।
  3. लिमोनाइट (Limonite): इसमें लोहे का अंश 40% से 60% तक होता है और यह पीले रंग का होता है।
  4. सिडेराइट (Siderite): इसमें लोहे का अंश 40% से भी कम होता है, इसलिए आर्थिक रूप से इसका महत्व कम है।

प्रश्न 9. खनिजों का संरक्षण क्यों आवश्यक है? समझाएं।

उत्तर:

खनिज हमारे उद्योग और कृषि का आधार हैं, लेकिन ये एक अनवीकरणीय संसाधन हैं। खनिजों का संरक्षण निम्नलिखित कारणों से अत्यंत आवश्यक है:

  1. सीमित भंडार: खनिज संसाधन सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं। इनके निर्माण की भूगर्भिक प्रक्रिया अत्यंत धीमी है, जिसमें लाखों वर्ष लगते हैं। वर्तमान दर से इनका उपभोग करने पर ये जल्द ही समाप्त हो जाएंगे।
  2. अनवीकरणीय प्रकृति: खनिज एक बार उपयोग होने के बाद पुनः प्राप्त नहीं किए जा सकते। इसलिए, इन्हें भविष्य की पीढ़ियों के लिए बचाकर रखना हमारा कर्तव्य है।
  3. बढ़ती लागत: जैसे-जैसे खनिजों के भंडार कम होते जाते हैं, उन्हें निकालना और अधिक कठिन और महंगा होता जाता है। संरक्षण से हम बढ़ती लागत को नियंत्रित कर सकते हैं।
  4. पर्यावरणीय प्रभाव: खनन गतिविधियों से पर्यावरण को भारी नुकसान होता है, जैसे वनों की कटाई, भूमि का निम्नीकरण और जल प्रदूषण। खनिजों का विवेकपूर्ण उपयोग इन दुष्प्रभावों को कम करता है।

संरक्षण के उपाय:

  • खनिजों का सुनियोजित एवं सतत पोषणीय ढंग से प्रयोग करना।
  • धातुओं का पुनर्चक्रण (recycling) करना।
  • रद्दी धातुओं का दोबारा उपयोग करना।
  • ऐसे विकल्पों का उपयोग करना जो आसानी से उपलब्ध हों।

प्रश्न 10. ऊर्जा के परंपरागत साधनों का वर्णन कीजिए।

उत्तर:ऊर्जा के वे स्रोत जो लंबे समय से आम उपयोग में हैं, परंपरागत साधन कहलाते हैं। ये सामान्यतः अनवीकरणीय होते हैं। भारत में प्रमुख परंपरागत साधन निम्नलिखित हैं:

  1. कोयला: यह भारत में ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है। इसका उपयोग ताप विद्युत उत्पादन, उद्योगों और घरेलू जरूरतों के लिए किया जाता है।
  2. पेट्रोलियम: यह परिवहन क्षेत्र का मुख्य ईंधन है और कई उद्योगों के लिए कच्चा माल प्रदान करता है।
  3. प्राकृतिक गैस: यह एक स्वच्छ ऊर्जा संसाधन है। इसका उपयोग बिजली उत्पादन, उद्योगों में ईंधन के रूप में और घरों में खाना पकाने के लिए (PNG/LPG) किया जाता है।
  4. जल विद्युत: यह बहते हुए जल की गतिज ऊर्जा को टरबाइन चलाकर विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करके प्राप्त की जाती है। यह ऊर्जा का एक नवीकरणीय परंपरागत स्रोत है।
  5. लकड़ी और उपले: ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी ऊर्जा का एक बड़ा हिस्सा लकड़ी और गोबर के उपलों से प्राप्त होता है। हालांकि, इनसे प्रदूषण होता है और वनों पर दबाव बढ़ता है।

प्रश्न 11. ऊर्जा के गैर-परंपरागत साधनों का वर्णन कीजिए।

उत्तर:ऊर्जा के वे स्रोत जिनका उपयोग हाल के वर्षों में बढ़ा है और जो नवीकरणीय तथा पर्यावरण-अनुकूल हैं, गैर-परंपरागत साधन कहलाते हैं। प्रमुख साधन इस प्रकार हैं:

  1. सौर ऊर्जा: सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊर्जा को फोटोवोल्टेइक तकनीक द्वारा सीधे विद्युत में बदला जाता है। भारत एक उष्णकटिबंधीय देश है, इसलिए यहाँ सौर ऊर्जा की अपार संभावनाएं हैं।
  2. पवन ऊर्जा: तेज गति से चलती हवाओं द्वारा पवन चक्की चलाकर बिजली उत्पन्न की जाती है। भारत के तटीय क्षेत्रों और गुजरात, तमिलनाडु जैसे राज्यों में इसके लिए अनुकूल परिस्थितियाँ हैं।
  3. बायोगैस: जैविक पदार्थों जैसे कृषि अपशिष्ट, पशुओं के गोबर और मानव मल-मूत्र के अपघटन से गैस उत्पन्न की जाती है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में खाना पकाने और रोशनी के लिए उत्तम ईंधन है।
  4. ज्वारीय ऊर्जा: महासागरीय ज्वार-भाटे से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा को टरबाइन चलाकर विद्युत में बदला जाता है।
  5. भू-तापीय ऊर्जा: पृथ्वी के आंतरिक भागों से निकलने वाले गर्म पानी के झरनों और भाप से प्राप्त ताप का उपयोग बिजली उत्पादन में किया जाता है।

प्रश्न 12. कोयला, पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस की तुलना में जल विद्युत ऊर्जा का एक अच्छा साधन है, व्याख्या कीजिए।

उत्तर:कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस (जीवाश्म ईंधन) की तुलना में जल विद्युत ऊर्जा कई कारणों से एक बेहतर साधन है, जिसका विवरण निम्नलिखित है:

आधारजल विद्युतजीवाश्म ईंधन (कोयला, पेट्रोलियम)
प्रकृतियह एक नवीकरणीय संसाधन है, क्योंकि जल चक्र द्वारा जल की पुनः पूर्ति होती रहती है।ये अनवीकरणीय संसाधन हैं, जिनके भंडार सीमित हैं और जल्द समाप्त हो सकते हैं।
पर्यावरणीय प्रभावयह प्रदूषण रहित है। इससे किसी भी प्रकार की हानिकारक गैसों का उत्सर्जन नहीं होता।इनके जलने से कार्बन डाइऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैसें निकलती हैं, जो वायु प्रदूषण और वैश्विक ऊष्मन का कारण बनती हैं।
लागतबांध बनाने की प्रारंभिक लागत अधिक होती है, परंतु बिजली उत्पादन की लागत बहुत कम होती है।संयंत्र स्थापित करने की लागत कम हो सकती है, परंतु ईंधन की लागत निरंतर बनी रहती है और बढ़ती जाती है।
बहुउद्देशीय लाभजल विद्युत परियोजनाओं से सिंचाई, बाढ़ नियंत्रण, मत्स्य पालन और पेयजल आपूर्ति जैसे कई अन्य लाभ भी मिलते हैं।इनका उपयोग केवल ऊर्जा उत्पादन तक सीमित है।

इन कारणों से, यद्यपि बांधों के निर्माण से पारिस्थितिक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, फिर भी दीर्घकालिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से जल विद्युत एक बेहतर ऊर्जा स्रोत है।

प्रश्न 13. भारत में सौर ऊर्जा विकास की असीम संभावनाएं हैं, व्याख्या कीजिए।

उत्तर:भारत में सौर ऊर्जा के विकास की असीम संभावनाएं हैं, जिसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:

  1. भौगोलिक स्थिति: भारत एक उष्णकटिबंधीय देश है, जहाँ वर्ष के अधिकांश दिनों में धूप उपलब्ध रहती है। यहाँ प्रति वर्ग किलोमीटर प्रति वर्ष लगभग 4 से 7 किलोवाट घंटा सौर ऊर्जा प्राप्त होती है, जो कि बहुत अधिक है।
  2. नवीकरणीय स्रोत: सौर ऊर्जा एक अक्षय स्रोत है, जो कभी समाप्त नहीं होगा। यह हमें एक स्थायी ऊर्जा भविष्य प्रदान करता है।
  3. पर्यावरण-अनुकूल: यह एक स्वच्छ ऊर्जा है। इसके उत्पादन में किसी भी प्रकार का प्रदूषण या ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन नहीं होता, जिससे यह जलवायु परिवर्तन से लड़ने में सहायक है।
  4. ग्रामीण विकास: सौर ऊर्जा संयंत्रों को दूर-दराज के ग्रामीण और दुर्गम इलाकों में आसानी से स्थापित किया जा सकता है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित होगी और उनका विकास होगा।
  5. घटती लागत: तकनीकी प्रगति के कारण सौर पैनलों की लागत लगातार कम हो रही है, जिससे यह एक किफायती विकल्प बनता जा रहा है। सरकार की नीतियां भी इसे बढ़ावा दे रही हैं।

इन सभी कारकों के कारण भारत सौर ऊर्जा के क्षेत्र में एक वैश्विक शक्ति बनने की क्षमता रखता है।

प्रश्न 14. भारत में पवन ऊर्जा का वर्णन कीजिए।

उत्तर:पवन ऊर्जा, बहती हुई पवन की गतिज ऊर्जा का उपयोग करके पवन चक्कियों (Wind Turbines) द्वारा विद्युत ऊर्जा का उत्पादन है। भारत में पवन ऊर्जा उत्पादन की महान संभावनाएं हैं और भारत को “पवन महाशक्ति” के रूप में जाना जाता है।

  • संभाव्यता: भारत में पवन ऊर्जा की अनुमानित क्षमता बहुत अधिक है। देश की लंबी तटरेखा और कुछ आंतरिक भाग पवन ऊर्जा के लिए आदर्श हैं।
  • प्रमुख उत्पादक राज्य: पवन ऊर्जा के उत्पादन में तमिलनाडु देश में अग्रणी है। इसके अतिरिक्त आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, केरल, महाराष्ट्र और राजस्थान प्रमुख उत्पादक राज्य हैं।
  • प्रमुख पवन फार्म: तमिलनाडु में नागरकोइल से मदुरै तक अवस्थित पवन ऊर्जा फार्म देश का सबसे बड़ा फार्म है। गुजरात के कच्छ में स्थित लम्बा का पवन ऊर्जा संयंत्र एशिया के सबसे बड़े संयंत्रों में से एक है।
  • महत्व: पवन ऊर्जा एक स्वच्छ, नवीकरणीय और पर्यावरण-अनुकूल ऊर्जा स्रोत है जो भारत की ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

प्रश्न 15. क्या कारण है कि लोहा-इस्पात उद्योग तथा ताप विद्युत गृह कोयला क्षेत्रों के निकट ही स्थापित होते हैं?

उत्तर:लोहा-इस्पात उद्योग और ताप विद्युत गृहों का कोयला क्षेत्रों के निकट स्थापित होने का मुख्य कारण परिवहन लागत को न्यूनतम करना है। इसका विस्तृत विवरण इस प्रकार है:

  • लोहा-इस्पात उद्योग: यह एक भारी उद्योग है जिसमें उपयोग होने वाले कच्चे माल (लौह अयस्क, कोकिंग कोयला, चूना पत्थर) भारी और वजन में ह्रास वाले होते हैं। एक टन इस्पात बनाने के लिए बड़ी मात्रा में कोयले की आवश्यकता होती है। कच्चे माल को लंबी दूरी तक ले जाने में भारी परिवहन लागत आती है। अतः, लागत को कम करने के लिए उद्योग को कच्चे माल, विशेषकर कोयले के स्रोत के पास स्थापित करना आर्थिक रूप से सबसे लाभप्रद होता है।
  • ताप विद्युत गृह: इन संयंत्रों में कोयले को जलाकर बिजली पैदा की जाती है। एक ताप विद्युत गृह में प्रतिदिन हजारों टन कोयले की खपत होती है। इतनी बड़ी मात्रा में कोयले को खदानों से संयंत्र तक पहुंचाना बहुत महंगा और जटिल कार्य है। इसके बजाय, खदानों के पास ही संयंत्र स्थापित कर उत्पादित बिजली को तारों (transmission lines) के माध्यम से दूर-दराज के क्षेत्रों तक भेजना कहीं अधिक सस्ता और सरल है।

प्रश्न 16. मध्य प्रदेश के प्रमुख ताँबा उत्पादक क्षेत्र का वर्णन कीजिए।

उत्तर:ताँबा एक अत्यंत उपयोगी धातु है जिसका उपयोग मुख्य रूप से बिजली के तार, इलेक्ट्रॉनिक्स और रसायन उद्योगों में होता है क्योंकि यह ताप और बिजली का एक उत्कृष्ट सुचालक है।

भारत में ताँबे के उत्पादन में मध्य प्रदेश का एक महत्वपूर्ण स्थान है।

  • प्रमुख क्षेत्र: मध्य प्रदेश में बालाघाट जिले की मलांजखंड ताँबा खदानें देश की सबसे महत्वपूर्ण ताँबा उत्पादक क्षेत्र हैं।
  • उत्पादन में हिस्सेदारी: ये खदानें अकेले ही भारत के कुल ताँबा उत्पादन का लगभग 52 प्रतिशत हिस्सा उत्पादित करती हैं।
  • महत्व: मलांजखंड की खदानें उच्च गुणवत्ता वाले ताँबे के लिए जानी जाती हैं और यह क्षेत्र भारत की ताँबा आपूर्ति में आत्मनिर्भरता के लिए रणनीतिक महत्व रखता है।

प्रश्न 17. मैंगनीज तथा ताँबे के उपयोग लिखिए।

उत्तर:मैंगनीज के उपयोग:

  1. इसका सबसे महत्वपूर्ण उपयोग इस्पात (Steel) और लौह-मिश्रधातु के निर्माण में होता है। एक टन इस्पात बनाने में लगभग 10 किलो मैंगनीज की आवश्यकता होती है।
  2. इसका उपयोग ब्लीचिंग पाउडर बनाने में किया जाता है।
  3. यह कीटनाशक दवाइयां और पेंट बनाने में भी प्रयुक्त होता है।
  4. सूखी बैटरियों के निर्माण में भी मैंगनीज का उपयोग होता है।

ताँबे के उपयोग:

  1. यह बिजली का उत्तम सुचालक है, इसलिए इसका सर्वाधिक उपयोग बिजली के तार और केबल बनाने में होता है।
  2. इसका उपयोग इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार उपकरणों में व्यापक रूप से किया जाता है।
  3. यह रसायन उद्योगों में एक महत्वपूर्ण कच्चा माल है।
  4. इसका उपयोग बर्तन और सिक्के बनाने में भी होता है।

प्रश्न 18. विभिन्न शैल समूहों और उनमें पाए जाने वाले खनिजों का वर्णन कीजिए।

उत्तर:खनिज सामान्यतः विभिन्न प्रकार के शैल समूहों में अयस्कों के रूप में पाए जाते हैं। भारत में प्रमुख शैल समूह और उनमें मिलने वाले खनिज इस प्रकार हैं:

  1. आग्नेय तथा कायांतरित चट्टानें (Igneous and Metamorphic Rocks):
    • इन चट्टानों में खनिज दरारों, जोड़ों, भ्रंशों व विदरों में मिलते हैं।
    • इनमें पाए जाने वाले मुख्य धात्विक खनिज हैं- ताँबा, जस्ता, सीसा, सोना, चाँदी, टिन आदि। ये खनिज शिराओं (veins) या परतों (lodes) के रूप में जमा होते हैं।
    • प्रायद्वीपीय पठार की प्राचीन चट्टानों में अधिकांश धात्विक खनिज इसी रूप में मिलते हैं।
  2. अवसादी चट्टानें (Sedimentary Rocks):
    • इन चट्टानों में खनिज परतों या संस्तरों (layers or strata) में पाए जाते हैं।
    • इनका निर्माण क्षैतिज परतों में निक्षेपण, जमाव व संचयन के परिणामस्वरूप हुआ है।
    • कोयला, पेट्रोलियम, और प्राकृतिक गैस जैसे ऊर्जा खनिज इसी प्रकार की चट्टानों में पाए जाते हैं। इसके अलावा पोटाश, नमक और जिप्सम जैसे खनिज भी इनमें मिलते हैं।
  3. धरातलीय चट्टानों का अपघटन:
    • चट्टानों के घुलनशील तत्वों के अपरदन के पश्चात् अयस्क वाली अवशिष्ट चट्टानें रह जाती हैं।
    • बॉक्साइट का निर्माण इसी प्रक्रिया द्वारा होता है।
  4. जलोढ़ जमाव (Placer Deposits):
    • ये पहाड़ियों के आधार तथा घाटी तल की रेत में जलोढ़ जमाव के रूप में पाए जाते हैं।
    • इनमें ऐसे खनिज होते हैं जो जल द्वारा घर्षित नहीं होते, जैसे- सोना, चाँदी, टिन और प्लैटिनम

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