यमन, बिलावल, खमाज रागों का शास्त्रीय परिचय Classical Music Raga yaman Bilawal Khamaj

Classical Music Raga yaman Bilawal Khamaj

भारतीय संगीत पाठ्यक्रम (गायन एवं वादन)

रागों का शास्त्रीय परिचय

Classical Music Raga yaman Bilawal Khamaj : कक्षा 9 के भारतीय संगीत पाठ्यक्रम का उद्देश्य छात्रों को हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की बुनियादी और महत्वपूर्ण अवधारणाओं से परिचित कराना है। इस स्तर पर, रागों की संरचना, उनके नियमों और उनकी भावनात्मक प्रस्तुति को समझना आवश्यक है। राग भारतीय शास्त्रीय संगीत का आधार हैं, और प्रत्येक राग का अपना विशिष्ट स्वरूप, नियम और समय होता है।

इस पाठ्यक्रम में तीन प्रमुख रागों को शामिल किया गया है: यमन, बिलावल और खमाज। आइए, हम इन तीनों रागों का विस्तृत शास्त्रीय परिचय प्राप्त करें।

महत्वपूर्ण पारिभाषिक शब्दावली (Important Technical Terms)

रागों को समझने से पहले, इन शब्दों का अर्थ जानना आवश्यक है:

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  • थाट (Thaat): यह रागों को वर्गीकृत करने का एक पैमाना है। एक थाट में 7 स्वर होते हैं, जिससे कई राग उत्पन्न हो सकते हैं। हिंदुस्तानी संगीत में कुल 10 थाट माने गए हैं।
  • जाति (Jaati): यह दर्शाती है कि राग के आरोह (चढ़ाव) और अवरोह (उतार) में कितने स्वर प्रयोग किए जा रहे हैं। इसके तीन प्रकार हैं:
    • औडव (Audav): 5 स्वर
    • षाडव (Shadav): 6 स्वर
    • सम्पूर्ण (Sampoorna): 7 स्वर
  • वादी स्वर (Vadi Swar): राग का सबसे महत्वपूर्ण और सबसे अधिक प्रयोग किया जाने वाला स्वर। इसे राग का ‘राजा’ भी कहा जाता है।
  • संवादी स्वर (Samvadi Swar): राग का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण स्वर। इसे राग का ‘मंत्री’ कहा जाता है।
  • गायन-वादन समय (Time of Performance): प्रत्येक राग को गाने या बजाने का एक निश्चित समय होता है, जो दिन या रात के प्रहर पर आधारित होता है।
  • आरोह (Aroha): स्वरों का चढ़ाव (नीचे से ऊपर की ओर)।
  • अवरोह (Avroha): स्वरों का उतार (ऊपर से नीचे की ओर)।
  • पकड़ (Pakad): स्वरों का वह छोटा समूह जिससे राग का स्वरूप तुरंत स्पष्ट हो जाता है।

1. राग यमन (Raga Yaman)

राग यमन हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के सबसे लोकप्रिय और महत्वपूर्ण रागों में से एक है। इसे ‘कल्याण’ के नाम से भी जाना जाता है और यह कल्याण थाट का प्रतिनिधि राग है।

  • थाट: कल्याण
  • जाति: सम्पूर्ण-सम्पूर्ण (आरोह और अवरोह दोनों में सात स्वर लगते हैं)
  • वादी स्वर: ग (गंधार)
  • संवादी स्वर: नि (निषाद)
  • गायन-वादन का समय: रात्रि का प्रथम प्रहर (शाम 6 बजे से 9 बजे तक)
  • स्वर: इसमें तीव्र मध्यम (म॑) का प्रयोग होता है और शेष सभी स्वर शुद्ध लगते हैं।

आरोह:

.नि .रे ग, म॑ प, ध नि, सां

अवरोह:

सां नि ध, प म॑ ग, रे सा

पकड़:

.नि .रे ग रे सा, प म॑ ग रे सा

विवरण एवं विशेषताएँ:

  1. यह एक गंभीर और शांत प्रकृति का राग है।
  2. यह कल्याण थाट का आश्रय राग है (अर्थात, थाट का नाम इसी राग पर रखा गया है)।
  3. इसमें भक्ति, शांति और श्रृंगार रस की सुंदर अभिव्यक्ति होती है।
  4. यह संगीत सीखने वालों के लिए शुरुआती और मौलिक रागों में से एक है।

2. राग बिलावल (Raga Bilawal)

राग बिलावल को हिंदुस्तानी संगीत का सबसे शुद्ध राग माना जाता है क्योंकि इसमें सभी स्वर शुद्ध लगते हैं। यह बिलावल थाट का प्रतिनिधि राग है।

  • थाट: बिलावल
  • जाति: सम्पूर्ण-सम्पूर्ण (आरोह और अवरोह दोनों में सात स्वर लगते हैं)
  • वादी स्वर: ध (धैवत)
  • संवादी स्वर: ग (गंधार)
  • गायन-वादन का समय: दिन का प्रथम प्रहर (सुबह 6 बजे से 9 बजे तक)
  • स्वर: सभी स्वर शुद्ध लगते हैं।

आरोह:

सा रे ग म प ध नि सां

अवरोह:

सां नि ध प म ग रे सा

पकड़:

ग रे ग प, ध नि सां

विवरण एवं विशेषताएँ:

  1. यह एक प्रसन्न और भक्तिपूर्ण भाव वाला राग है।
  2. यह बिलावल थाट का आश्रय राग है।
  3. इसके शुद्ध स्वर इसे एक ऊर्जावान और जीवंत एहसास देते हैं।
  4. कई भक्ति गीत और भजन इसी राग पर आधारित होते हैं।

3. राग खमाज (Raga Khamaj)

राग खमाज एक बहुत ही मधुर और चंचल प्रकृति का राग है। इसका प्रयोग अक्सर ठुमरी, टप्पा और अन्य उप-शास्त्रीय गायन शैलियों में किया जाता है।

  • थाट: खमाज
  • जाति: षाडव-सम्पूर्ण (आरोह में 6 स्वर और अवरोह में 7 स्वर लगते हैं)
  • वादी स्वर: ग (गंधार)
  • संवादी स्वर: नि (निषाद)
  • गायन-वादन का समय: रात्रि का दूसरा प्रहर (रात 9 बजे से 12 बजे तक)
  • स्वर: अवरोह में कोमल निषाद (<u>नि</u>) का प्रयोग होता है, जबकि आरोह में शुद्ध निषाद लगता है। आरोह में ‘रे’ (ऋषभ) वर्जित है।

आरोह:

सा ग म प ध नि सां

अवरोह:

सां नि ध प, म ग, रे सा

पकड़:

नि ध, म प ध, म ग

विवरण एवं विशेषताएँ:

  1. यह एक चंचल और श्रृंगार रस प्रधान राग है।
  2. यह खमाज थाट का आश्रय राग है।
  3. आरोह में ‘रे’ स्वर का प्रयोग नहीं किया जाता है, जिससे इसकी एक विशिष्ट पहचान बनती है।
  4. अवरोह में कोमल ‘नि’ का प्रयोग इसे एक खास मिठास और आकर्षण प्रदान करता है।

परीक्षा की तैयारी के लिए सुझाव

  • तीनों रागों के थाट, जाति, वादी-संवादी स्वर और गायन समय को अच्छी तरह याद करें।
  • प्रत्येक राग के आरोह, अवरोह और पकड़ का अभ्यास करें। इन्हें हारमोनियम या कीबोर्ड पर बजाने का प्रयास करें।
  • इन रागों पर आधारित प्रसिद्ध गीत या बंदिशें सुनें ताकि आप इनके स्वरूप को पहचान सकें।
  • स्वरों के शुद्ध और विकृत (कोमल, तीव्र) रूपों के बीच के अंतर को समझें।

यह शास्त्रीय परिचय आपको कक्षा 9 के संगीत पाठ्यक्रम को समझने और उसमें उत्कृष्टता प्राप्त करने में मदद करेगा।

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