MP Board 10th Mathematics One Liner part 1 : MP Board 10th Mathematics One Liner विद्यार्थियों के लिए बेहद उपयोगी सामग्री है। इस MP Board 10th Mathematics One Liner part 1 में गणित के मुख्य अध्यायों जैसे वास्तविक संख्याएँ (Real Numbers), बहुपद (Polynomials), दो चर वाले रैखिक समीकरणों का युग्म (Pair of Linear Equations in Two Variables), द्विघात समीकरण (Quadratic Equations) तथा समांतर श्रेढ़ियाँ (Arithmetic Progressions) से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल किए गए हैं। MP Board 10th Mathematics One Liner part 1 विद्यार्थियों को परीक्षा की बेहतर तैयारी में सहायता करते हैं। इन प्रश्नों के माध्यम से विद्यार्थी कठिन अध्यायों की पुनरावृत्ति आसानी से कर सकते हैं और कम समय में अधिक अभ्यास कर सकते हैं। MP Board 10th Mathematics One Liner Most Imp Questions उन छात्रों के लिए विशेष रूप से लाभदायक हैं जो बोर्ड परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करना चाहते हैं। यह संग्रह सरल भाषा और सटीक प्रश्नों के माध्यम से विद्यार्थियों को आत्मविश्वास प्रदान करता है।

MP Board 10th Mathematics One Liner part 1
- वास्तविक संख्याएँ (Real Numbers)
- बहुपद (Polynomials)
- दो चर वाले रैखिक समीकरणों का युग्म (Pair of Linear Equations in Two Variables)
- द्विघात समीकरण (Quadratic Equations)
- समांतर श्रेढ़ियाँ (Arithmetic Progressions)
- त्रिभुज (Triangles)
MP Board 10th Mathematics One Liner part 2
- निर्देशांक ज्यामिति (Coordinate Geometry)
- त्रिकोणमिति का परिचय (Introduction to Trigonometry)
- त्रिकोणमिति के कुछ अनुप्रयोग (Some Applications of Trigonometry)
- वृत्त (Circles)
- रचनाएँ (Constructions)
MP Board 10th Mathematics One Liner part 3
- वृत्तों से संबंधित क्षेत्रफल (Areas Related to Circles)
- पृष्ठीय क्षेत्रफल और आयतन (Surface Areas and Volumes)
- सांख्यिकी (Statistics)
- प्रायिकता (Probability)
MP Board 10th Mathematics One Liner part 1
अध्याय – 1
वास्तविक संख्याएँ
अवधारणाओं पर आधारित महत्वपूर्ण तथ्य
- प्रत्येक भाज्य संख्या को एक अद्वितीय रूप से अभाज्य संख्याओं के गुणनफल के रूप में व्यक्त किया जा सकता है। यही अंकगणित की आधारभूत प्रमेय है।
- किसी भी प्राकृत संख्या को उसके अभाज्य गुणनखंडों के एक गुणनफल के रूप में लिखा जा सकता है।
उदाहरणार्थ,,
,
- “एक प्राकृत संख्या का अभाज्य गुणनखंड उसके गुणनखंडों के क्रम को छोड़ते हुए अद्वितीय होता है।”
- कार्ल फ्रेडरिक गॉस को ‘गणितज्ञों का राजकुमार’ कहा जाता है।
- “संख्याओं में प्रत्येक उभयनिष्ठ अभाज्य गुणनखंड की सबसे छोटी घात का गुणनफल महत्तम समापवर्तक (HCF) कहलाता है।” उदाहरणार्थ –
12, 15 और 21
महत्तम समापवर्तक (HCF)
- “संख्याओं में संबद्ध प्रत्येक अभाज्य गुणनखंड की सबसे बड़ी घात का गुणनफल लघुत्तम समापवर्त्य (LCM) कहलाता है।” उदाहरणार्थ –
6, 20 और 21
लघुत्तम समापवर्त्य (LCM) - किसी प्राकृत संख्या
के लिए, संख्या
अंक 0 (शून्य) पर समाप्त नहीं होगी क्योंकि 0 (शून्य) पर समाप्त होने वाली संख्याएँ 5 से विभाज्य होती हैं और ये संख्याएँ 5 से विभाज्य नहीं हैं।
- किन्हीं दो धनात्मक पूर्णांकों
और
के लिए, HCF
LCM
होता है।
- दो संख्याओं का गुणनफल, उनके HCF और LCM के गुणनफल के बराबर होता है, परन्तु तीन संख्याओं का गुणनफल उनके HCF और LCM के गुणनफल के बराबर नहीं होता है।
अपरिमेय संख्या है, जहाँ
एक अभाज्य संख्या है।
इत्यादि अपरिमेय संख्याएँ हैं।
- यदि
कोई अभाज्य संख्या है और
,
को विभाजित करता है तो
,
को भी विभाजित करेगा, जहाँ
एक धनात्मक पूर्णांक है।
- एक परिमेय संख्या और एक अपरिमेय संख्या का योग या अंतर एक अपरिमेय संख्या होती है। उदाहरणार्थ:
,
.
- एक शून्येतर परिमेय संख्या और एक अपरिमेय संख्या का गुणनफल या भागफल एक अपरिमेय संख्या होती है।
- एक परिमेय संख्या और एक अपरिमेय संख्या का योग या अंतर एक अपरिमेय संख्या होती है। उदाहरणार्थ:
,
- एक शून्येतर परिमेय संख्या और एक अपरिमेय संख्या का गुणनफल या भागफल एक अपरिमेय संख्या होती है।
अध्याय – 2
बहुपद
- चर
के बहुपद
में
की उच्चतम घात बहुपद की घात कहलाती है।
बहुपदचर
में घात 1 का बहुपद है, क्योंकि चर
की अधिकतम घात 1 है।
, चर
में घात 2 का बहुपद है क्योंकि चर
की अधिकतम घात 2 है।
चर
में घात 3 का बहुपद है, क्योंकि चर
की उच्चतम घात 3 है।
- ऐसे बहुपद जिनकी घात 1 होती है रैखिक बहुपद कहलाते हैं। जैसे
,
,
आदि में बहुपद की अधिकतम घात 1 है, अतः ये रैखिक बहुपद हैं।
में
रखने पर
प्राप्त होता है यह
पर
का मान है।
- यदि बहुपद
में
को किसी वास्तविक संख्या
से प्रतिस्थापित करने पर बहुपद का मान शून्य प्राप्त होता है, अर्थात
, तो
बहुपद का शून्यक कहलाता है।
बहुपदका
पर मान
, अतः
बहुपद
का शून्यक है।
- किसी बहुपद
;
का शून्यक उस बिंदु का
-निर्देशांक होता है, जहाँ
का ग्राफ
-अक्ष को प्रतिच्छेद करता है।
- बहुपद
का ग्राफ
-अक्ष को जितने बिंदुओं पर प्रतिच्छेद करता है, उस बहुपद
के उतने ही शून्यक होते हैं।
- रेखीय बहुपद का व्यापक रूप
है, जहाँ
, चर
का गुणांक एवं
अचर पद है तथा
.
- द्विघात बहुपद का व्यापक रूप
, जहाँ
वास्तविक संख्याएँ हैं तथा
.
द्विघात बहुपद के शून्यक
और
हैं तो
शून्यकों का योगफल
और शून्यकों का गुणनफल- बहुपद
में शून्यकों का योगफल
होगा।
बहुपद में शून्यकों का गुणनफल
होगा।
- किसी
घात के लिए दिए गए बहुपद
के लिए
का ग्राफ
-अक्ष को अधिक से अधिक
बिंदुओं पर प्रतिच्छेद करता है। अतः
घात के किसी बहुपद के अधिक से अधिक
शून्यक हो सकते हैं।
- बहुपद
का ग्राफ
-अक्ष को 3 बिंदुओं पर प्रतिच्छेद कर रहा है अतः:
बहुपदके तीन शून्यक होंगे।
- किसी द्विघात बहुपद
के संगत समीकरण
का ग्राफ परवलय होता है।
- यदि
किसी द्विघात बहुपद के शून्यक हैं तो द्विघात बहुपद
की तरह का होगा जहाँ
कोई वास्तविक संख्या है।
- बहुपद के शून्यकों का योग
व गुणनफल 2 है तो बहुपद
होगा।
- त्रिघात बहुपद
के शून्यक
हों तो शून्यकों तथा गुणांकों में संबंध
बहुपद में
का गुणांक
,
का गुणांक
तथा अचर पद
है, तब
और
अध्याय – 3
दो चर वाले रैखिक समीकरण युग्म
- दो चर वाले रैखिक समीकरण को प्रदर्शित करने वाला मानक रूप:
और
है, जहाँ
व
चर हैं और
,
,
और
,
,
गुणांक हैं।
- दो चर वाले रैखिक समीकरण युग्म का हल, एक ऐसा बिंदु होता है, जो कि युग्म की दोनों रेखाओं पर स्थित हो।
- रैखिक युग्म की रेखाएँ एक बिंदु पर प्रतिच्छेद करती हैं, तो इस स्थिति में, समीकरण युग्म का एक अद्वितीय हल होता है।
- एक रैखिक समीकरण युग्म, जिसका हल होता है, रैखिक समीकरणों का संगत (consistent) युग्म कहलाता है।
- रैखिक युग्म की रेखाएँ संपाती होती हैं, तो इस स्थिति में, समीकरण के अपरिमित रूप से अनेक हल होते हैं एवं इस युग्म को दो चरों के रैखिक समीकरणों का आश्रित (dependent) युग्म कहते हैं।
- रैखिक समीकरणों का आश्रित युग्म सदैव संगत (consistent) होता है।
- दो चर वाले रैखिक समीकरण युग्म की रेखाएँ समांतर होती हैं, तो इस स्थिति में, समीकरणों का कोई भी हल नहीं होता है।
- रैखिक समीकरण युग्म, जिसका कोई हल नहीं होता, रैखिक समीकरणों का असंगत (inconsistent) युग्म कहलाता है।
- रैखिक समीकरण युग्म:
और
में निम्न स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं:
: इस स्थिति में, रैखिक समीकरण युग्म संगत होता है एवं समीकरणों का एक अद्वितीय हल होता है तथा रेखाएँ प्रतिच्छेदी होती हैं।
: इस स्थिति में, रैखिक समीकरण युग्म असंगत होता है एवं समीकरणों का कोई भी हल नहीं होता है तथा रेखाएँ समांतर होती हैं।
: इस स्थिति में, रैखिक समीकरण युग्म आश्रित (संगत) होता है एवं समीकरणों के अनंत हल होते हैं तथा रेखाएँ संपाती होती हैं।
- रैखिक समीकरण युग्म के ग्राफीय विधि द्वारा हल में दोनों समीकरणों को ग्राफ में प्रदर्शित कर उनके प्रतिच्छेद बिंदु के निर्देशांक ज्ञात करते हैं, जो कि समीकरण युग्म का हल होता है।
अध्याय – 4
द्विघात समीकरण
- जब हम द्विघात बहुपद को शून्य के तुल्य कर देते हैं तो हमें **द्विघात समीकरण** प्राप्त हो जाती है।
- यदि
, घात दो का एक बहुपद है, तो समीकरण
, एक **द्विघात समीकरण** कहलाता है।
जहाँ
वास्तविक संख्याएँ हैं तथा
, **द्विघात समीकरण** का मानक रूप है।
- द्विघात समीकरण के कुछ उदाहरण :
(i)
(ii)
(iii)आदि
- **द्विघात समीकरण का हल**
(i) **गुणनखंड विधि** :-
,
को दो रैखिक गुणनखंडों में गुणनखंड करके प्रत्येक गुणक को शून्य के बराबर करके हल प्राप्त करते हैं, तो द्विघात समीकरण
के मूल प्राप्त होते हैं।
उदाहरण :-
अतःया
- **सूत्र विधि** :-
श्रीधराचार्य (सा. यु. 1025) द्वारा द्विघात समीकरण,
को हल करने के लिए सूत्र प्रतिपादित किया जिसे “द्विघात सूत्र” कहते हैं।
उदाहरण :- द्विघात समीकरणको द्विघात सूत्र द्वारा हल करना :-
द्विघात समी. की मानक रूपसे तुलना करने पर
**+** चिन्ह लेने पर
**-** चिन्ह लेने पर
अतः - द्विघात समीकरण का **विविक्तकर** (discriminant)
होता है, जहाँ
द्विघात समीकरण
के क्रमश:
का गुणांक,
का गुणांक तथा अचर पद हैं।
- **द्विघात समीकरण के मूलों की प्रकृति** में द्विघात समीकरण
में
(i) दो भिन्न वास्तविक मूल होते हैं, यदिहो
(ii) दो वास्तविक एवं बराबर मूल होते हैं यदिहो
(iii) कोई वास्तविक मूल नहीं होते हैं यदिहो
उदाहरण :- द्विघात समीकरणके मूलों की प्रकृति ज्ञात करना :-
दी हुई समीकरण की तुलना मानक रूपसे करने पर
विविक्तकर
अतः द्विघात समी.के कोई वास्तविक मूल नहीं होंगे।
अध्याय- 5
समांतर श्रेणियाँ
- प्रकृति में अनेक वस्तुएँ एक निश्चित प्रतिरूप (pattern) का अनुसरण करती हैं जैसे कि सूरजमुखी के फूल की पंखुड़ियाँ, मधु-कोष (या मधु छत्ते) में छिद्र, एक भूट्टे पर दाने, एक अनन्नास और एक पाइन कोन पर सर्पिल इत्यादि।
- **दैनिक जीवन में निश्चित प्रतिरूप का उदाहरण** –
किसी व्यक्ति की प्रथम मासिक वेतन ₹8000 और ₹500 वार्षिक वेतन वृद्धि होने पर प्रथम, द्वितीय और तृतीय वर्ष इत्यादि के लिए वेतन 8000, 8500, 9000 ….. होगा।
**अन्य प्रतिरूप**
(i)
(ii)
(iii)
(iv)
(v)
उपरोक्त सूची में उत्तरोत्तर पदों में एक निश्चित संख्या जोड़कर प्राप्त किया जाता है। संख्याओं की ऐसी सूची को **समांतर श्रेढ़ी** (Arithmetic Progression या A.P.) कहा जाता है। - एक समांतर श्रेढ़ी संख्याओं की ऐसी सूची होती है, जिसमें प्रत्येक पद (प्रथम पद के अतिरिक्त) अपने से ठीक पहले पद में एक निश्चित संख्या
जोड़कर प्राप्त होता है। यह निश्चित संख्या
इस समांतर श्रेढ़ी का **सार्वअंतर** कहलाती है। सार्वअंतर धनात्मक, ऋणात्मक या शून्य हो सकता है।
- A.P. के प्रथम पद को
, दूसरे पद को
, ….. इसी प्रकार
वें पद को
से दर्शाते हैं। A.P. को निम्नलिखित रूप में व्यक्त कर सकते हैं।
**समांतर श्रेढ़ी में हर अगले पद में से पिछले पद को घटाकर सार्वअंतर प्राप्त होता है** - समांतर श्रेढ़ी का व्यापक रूप (general form)
जहाँपहला पद और
सार्व अंतर है।
- समांतर श्रेढ़ी में पदों की संख्या परिमित होने पर श्रेढ़ी को **परिमित समांतर श्रेढ़ी** कहते हैं। परिमित समांतर श्रेढ़ी में **अंतिम पद** (last term) होता है।
उदाहरण :- - **अपरिमित समांतर श्रेढ़ी** में पदों की संख्या अपरिमित होती है। इसमें अंतिम पद नहीं होता है।
उदाहरण: - प्रथम पद
और सार्वअंतर
वाली एक समांतर श्रेढ़ी का
वाँ पद निम्नलिखित सूत्र से प्राप्त होता है –
को A.P. का **व्यापक पद** (general term) भी कहते हैं। यदि किसी A.P. में
पद हैं तो
इसके अंतिम पद को निरूपित करता है। अंतिम पद को
द्वारा भी निरूपित किया जाता है।
- A.P.
का 7 वाँ पद ज्ञात करना।
- किसी A.P. के प्रथम
पदों का योग
सूत्र
से प्राप्त होता है। - यदि एक परिमित A.P. का अंतिम पद (मान लीजिए
वाँ पद)
है, तो इस A.P. के सभी पदों का योग सूत्र
होता है। - **प्रथम
धन पूर्णांकों का योग सूत्र**
- यदि
, समांतर श्रेढ़ी में हैं तब
यहाँ,
और
का **समांतर माध्य** कहलाता है।
- प्रथम 25 धन पूर्णांकों का योग ज्ञात करना।
पदों तक
अध्याय- 6
त्रिभुज
अवधारणाओ पर आधरित महत्वपूर्ण तथ्य
y ऐसी आकृतियाँ जिनके आकार (Shape) समान हों, उनका आमाप (size) समान हो या न हो समरूप आकृतियाँ कहलाती हैं ।

तीनों वृत्त हैं, इनके आकार समान हैं परन्तु इनके आमाप अलग-अलग हैं, अतः, यह समरूप आकृतियाँ हैं।”

उक्त दोनों आकृतियों के माप (क्षेत्रफल) समान हैं परंतु आकार अलग-अलग हैं, अत: वर्ग एवं आयत समरूप आकृतियाँ नहीं हैं ।
y सभी वर्ग समरूप होते हैं ।
y सभी आयत समरूप हों, यह आवश्यक नहीं है ।


- चतुर्भुज
व चतुर्भुज
में
सभी संगत कोण समान हैं
यहाँ
संगत भुजाओं के अनुपात भी समान हैं अतः:
चतुर्भुजव चतुर्भुज
समरूप हैं।

- त्रिभुजों की समरूपता की शर्त –
(i) उनके संगत कोण बराबर हों।
(ii) उनकी संगत भुजाओं के अनुपात बराबर हों। - त्रिभुजों की समरूपता की कसौटियाँ – दो त्रिभुजों को समरूप दर्शाने के लिए निम्न कसौटियों का प्रयोग किया जा सकता है –
(i) **भुजा – भुजा – भुजा** ()
यदि दो त्रिभुजों की संगत तीनों भुजाओं के अनुपात बराबर हों तो वे त्रिभुज समरूप होंगे।
(ii) **भुजा कोण भुजा** ()
यदि एक त्रिभुज का एक कोण दूसरे त्रिभुज के एक कोण के बराबर हो तथा इन कोणों को अंतर्गत करने वाली भुजाएँ एक ही अनुपात में हों तो दोनों त्रिभुज समरूप होते हैं।
(iii) **कोण कोण कोण** ()
यदि दो त्रिभुजों के सभी (तीनों) संगत कोणों की माप बराबर हो तो त्रिभुज समरूप होंगे।
(iv) **कोण-कोण** ()
यदि दो त्रिभुजों में एक त्रिभुज के दो कोण क्रमश: दूसरे त्रिभुज के दो कोणों के बराबर हों, तो दोनों त्रिभुज समरूप होते हैं।
- चतुर्भुज
व चतुर्भुज
में
सभी संगत कोण समान हैं
यहाँ
संगत भुजाओं के अनुपात भी समान हैं अतः:
चतुर्भुजव चतुर्भुज
समरूप हैं।
- त्रिभुजों की समरूपता की शर्त –
(i) उनके संगत कोण बराबर हों।
(ii) उनकी संगत भुजाओं के अनुपात बराबर हों। - त्रिभुजों की समरूपता की कसौटियाँ – दो त्रिभुजों को समरूप दर्शाने के लिए निम्न कसौटियों का प्रयोग किया जा सकता है –
(i) **भुजा – भुजा – भुजा** ()
यदि दो त्रिभुजों की संगत तीनों भुजाओं के अनुपात बराबर हों तो वे त्रिभुज समरूप होंगे।
(ii) **भुजा कोण भुजा** ()
यदि एक त्रिभुज का एक कोण दूसरे त्रिभुज के एक कोण के बराबर हो तथा इन कोणों को अंतर्गत करने वाली भुजाएँ एक ही अनुपात में हों तो दोनों त्रिभुज समरूप होते हैं।
(iii) **कोण कोण कोण** ()
यदि दो त्रिभुजों के सभी (तीनों) संगत कोणों की माप बराबर हो तो त्रिभुज समरूप होंगे।
(iv) **कोण-कोण** ()
यदि दो त्रिभुजों में एक त्रिभुज के दो कोण क्रमश: दूसरे त्रिभुज के दो कोणों के बराबर हों, तो दोनों त्रिभुज समरूप होते हैं।
- यदि दो त्रिभुज सर्वांगसम हैं तो वे समरूप भी होंगे। दो त्रिभुज यदि समरूप हैं तो वह सर्वांगसम हो भी सकते हैं और नहीं भी।
- दो समान कोणिक त्रिभुजों की संगत भुजाएँ **समानुपातिक** होती हैं।
या
दो समान कोणिक त्रिभुजों में उनकी संगत भुजाओं का अनुपात सदैव **समान** होता है। - **आधारभूत आनुपातिकता (थेल्स) प्रमेय कथन**: “त्रिभुज की एक भुजा के समांतर खींची गई रेखा अन्य दो भुजाओं को समान अनुपात में विभाजित करती है।”
त्रिभुजमें भुजा
के समांतर खींची गई रेखा
, अन्य दोनों भुजाओं
व
को समानुपात में विभाजित करेगी, अर्थात
- **थेल्स प्रमेय का विलोम**: किसी त्रिभुज में किन्हीं भुजाओं को समानुपात में विभाजित करने वाली रेखा, तीसरी भुजा के समांतर होती है।
में यदि रेखा
, भुजा
व
को समानुपात में विभाजित करती है अर्थात
हो तो
होगी।
में
है तो थेल्स प्रमेय से
में
रेखा भुजाओं
व
को समान अनुपात में विभाजित करती है।
अतः(थेल्स प्रमेय के विलोम से)
- प्रसिद्ध यूनानी गणितज्ञ थेल्स का समय काल सा.यु.पू. 640 – 546 है।
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