बौद्ध और जैन धर्म का प्रभाव
MP Board Class 12 History Influence of Buddhism and Jainism
MP Board Class 12 History Influence of Buddhism and Jainism : प्राचीन भारतीय समाज में, विशेष रूप से 600 ई.पू. से 600 ईसवी तक के कालखंड में बौद्ध और जैन धर्म ने सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक परिदृश्य को गहरे रूप से प्रभावित किया। ये दोनों धर्म ब्राह्मणीय परंपराओं, विशेषकर वर्ण व्यवस्था और कर्मकांडीय प्रथाओं के विकल्प के रूप में उभरे। यह लेख महाभारत, धर्मसूत्र, धर्मशास्त्र और गैर-ब्राह्मणीय स्रोतों जैसे बौद्ध और जैन ग्रंथों के आधार पर इन धर्मों के प्रभाव का विश्लेषण करता है।
बौद्ध और जैन धर्म का उद्भव
लगभग छठी शताब्दी ई.पू. में बौद्ध और जैन धर्म का उदय सामाजिक और धार्मिक परिवर्तनों के दौर में हुआ। यह वह समय था जब उपमहाद्वीप में नए नगरों का उद्भव हो रहा था, व्यापार और शिल्प बढ़ रहे थे और वर्ण व्यवस्था की कठोरता को लेकर प्रश्न उठ रहे थे। बुद्ध (सिद्धार्थ गौतम) और महावीर (वर्धमान) ने ब्राह्मणीय व्यवस्था के कर्मकांडों, जन्म-आधारित सामाजिक भेदभाव और हिंसा को चुनौती दी। बौद्ध धर्म ने मध्यम मार्ग और अष्टांगिक मार्ग को प्रोत्साहन दिया जबकि जैन धर्म ने अहिंसा, सत्य और तप पर जोर दिया।
सामाजिक प्रभाव
1. वर्ण व्यवस्था की आलोचना
बौद्ध और जैन धर्म ने वर्ण व्यवस्था की जन्म-आधारित हैसियत को अस्वीकार किया और नैतिकता, कर्म और व्यक्तिगत गुणों को सामाजिक प्रतिष्ठा का आधार माना।
- बौद्ध दृष्टिकोण: बौद्ध ग्रंथ, जैसे मज्झिमनिकाय, में अवन्तिपुत्र और कच्चन के संवाद में यह तर्क दिया गया कि धन और संसाधनों के आधार पर सभी वर्ण समान हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, एक धनी शूद्र अन्य वर्णों के लोगों को अपने अधीन रख सकता है, जिससे जन्म-आधारित भेदभाव को चुनौती मिलती है। सुत्तपिटक में वर्णित मिथक बताता है कि राजा का चयन लोगों द्वारा किया जाता था और कर उनकी सेवाओं का बदला था जो सामाजिक अनुबंध का प्रारंभिक रूप था। यह ब्राह्मणीय दृष्टिकोण से भिन्न था, जो वर्ण व्यवस्था को दैवीय मानता था।
- जैन दृष्टिकोण: जैन ग्रंथ, जैसे प्राकृत में लिखे गए, ने भी जन्म-आधारित भेदभाव को खारिज किया और आत्मा की शुद्धता पर जोर दिया। जैन धर्म ने सभी प्राणियों को समान माना और अहिंसा को सामाजिक व्यवहार का आधार बनाया।
मातंग जातक की कहानी इसका उत्कृष्ट उदाहरण है। इसमें बोधिसत्त, जो एक चाण्डाल के रूप में जन्म लेते हैं, सामाजिक भेदभाव का विरोध करते हैं। मातंग अपने पुत्र माण्डव्य को सिखाते हैं कि ज्ञान और नैतिकता जन्म से अधिक महत्वपूर्ण हैं, जिससे ब्राह्मणीय व्यवस्था की आलोचना होती है।
2. शूद्रों और निम्न समुदायों का उत्थान
बौद्ध और जैन धर्म ने शूद्रों, चाण्डालों और अन्य निम्न माने जाने वाले समुदायों को सामाजिक स्वीकृति और सम्मान प्रदान किया।
- बौद्ध मठों में सभी वर्णों और जातियों के लोग भिक्षु बन सकते थे, जिसने सामाजिक गतिशीलता को बढ़ावा दिया।
- जैन धर्म ने व्यापारियों और शिल्पकारों को आकर्षित किया, जो अक्सर वैश्य या अन्य समुदायों से थे, और उन्हें धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने का अवसर दिया।
- मंदसौर के रेशम बुनकरों (लगभग 5वीं शताब्दी ईसवी) का उदाहरण दर्शाता है कि कुछ समुदायों ने बौद्ध और जैन प्रभाव के तहत शिल्प और धार्मिक कार्यों में योगदान देकर सामाजिक प्रतिष्ठा अर्जित की।
3. स्त्रियों की स्थिति
बौद्ध और जैन धर्म ने स्त्रियों को भी धार्मिक जीवन में भाग लेने का अवसर प्रदान किया, हालांकि उनकी स्थिति पूर्णतः पुरुषों के बराबर नहीं थी।
- बौद्ध धर्म में महिलाएं भिक्षुणी बन सकती थीं, लेकिन उनके लिए नियम पुरुष भिक्षुओं की तुलना में अधिक कठोर थे। फिर भी, यह ब्राह्मणीय व्यवस्था से भिन्न था, जहां स्त्रियों की धार्मिक भूमिका सीमित थी।
- जैन धर्म में भी महिलाओं को तपस्विनी बनने की अनुमति थी, और कुछ जैन ग्रंथों में महिलाओं की आध्यात्मिक उपलब्धियों का उल्लेख मिलता है।
- महाभारत में द्रौपदी और गांधारी जैसे पात्रों की तुलना में, बौद्ध और जैन साहित्य में महिलाओं को अधिक स्वायत्तता और धार्मिक पहचान मिलती थी, हालांकि सामाजिक स्तर पर उनकी स्थिति अभी भी पितृसत्तात्मक ढांचे के अधीन थी।
धार्मिक और सांस्कृतिक प्रभाव
1. कर्मकांडों का विरोध
बौद्ध और जैन धर्म ने ब्राह्मणीय कर्मकांडों जैसे यज्ञ और पशुबलि का विरोध किया।
- बौद्ध धर्म ने आत्म-अनुशासन और ध्यान को मोक्ष का मार्ग बताया, जबकि जैन धर्म ने अहिंसा और तप को प्राथमिकता दी।
- इन धर्मों ने सरल और नैतिक जीवन पर जोर दिया जिसने सामान्य लोगों विशेषकर व्यापारियों और शिल्पकारों को आकर्षित किया।
2. साहित्य और भाषा
- बौद्ध साहित्य: बौद्ध ग्रंथ, जैसे त्रिपिटक (पालि में) आम लोगों की भाषा में लिखे गए जिससे वे व्यापक जनसमूह तक पहुंचे। मातंग जातक जैसे ग्रंथों ने सामाजिक भेदभाव की आलोचना को लोकप्रिय बनाया।
- जैन साहित्य: जैन ग्रंथ प्राकृत में लिखे गए, जो संस्कृत से भिन्न थी और सामान्य लोगों के लिए अधिक सुलभ थी। इन ग्रंथों ने अहिंसा और नैतिकता की कहानियों को प्रचारित किया।
- महाभारत जैसे संस्कृत ग्रंथों की तुलना में, बौद्ध और जैन साहित्य ने सामाजिक सुधार और समानता पर अधिक जोर दिया।
3. कला और स्थापत्य
बौद्ध और जैन धर्म ने कला और स्थापत्य पर गहरा प्रभाव डाला।
- बौद्ध स्तूप जैसे सanchi और अमरावती और गुफा मंदिर बौद्ध धर्म के प्रसार और शिल्पकारों के योगदान को दर्शाते हैं। सातवाहन राजाओं ने बौद्ध भिक्षुओं को गुफाएं दान कीं, जिनमें उनकी मूर्तियां उत्कीर्ण हैं।
- जैन मंदिर और मूर्तियां, विशेषकर दक्षिण और पश्चिमी भारत में अहिंसा और तप के प्रतीक के रूप में उभरे।
सामाजिक और आर्थिक परिवर्तनों पर प्रभाव
1. व्यापार और शहरीकरण
नए नगरों के उद्भव (अध्याय 2) ने बौद्ध और जैन धर्म के प्रसार को बढ़ावा दिया। ये धर्म व्यापारियों और शिल्पकारों के बीच लोकप्रिय थे, क्योंकि वे कर्मकांडों के बजाय नैतिकता और व्यक्तिगत प्रयासों पर जोर देते थे।
- बौद्ध मठ व्यापार मार्गों पर स्थापित हुए, जो आर्थिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के केंद्र बने।
- जैन धर्म ने व्यापारियों को आकर्षित किया, जिन्होंने मंदिर निर्माण और दान जैसे कार्यों में योगदान दिया, जैसा कि मंदसौर के रेशम बुनकरों के अभिलेख में देखा गया।
2. सामाजिक गतिशीलता
बौद्ध और जैन धर्म ने सामाजिक गतिशीलता को प्रोत्साहन दिया।
- बौद्ध मठों में सभी वर्णों और जातियों के लोग शामिल हो सकते थे जिसने शूद्रों और अन्य निम्न समुदायों को सामाजिक सम्मान प्राप्त करने का अवसर दिया।
- जैन धर्म ने भी समुदायों को संगठित करने में मदद की, जिससे श्रेणियां (जैसे रेशम बुनकर) सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त हुईं।
महाभारत और ब्राह्मणीय परंपराओं के साथ तुलना
महाभारत, जो ब्राह्मणीय दृष्टिकोण को प्रस्तुत करता है, वर्ण व्यवस्था और पितृवंशिकता को मजबूत करता है। हालांकि, इसमें गैर-ब्राह्मणीय प्रथाओं, जैसे द्रौपदी का बहुपति विवाह का उल्लेख भी है जो संभवतः बौद्ध और जैन प्रभावों की उपस्थिति को दर्शाता है।
- एकलव्य की कहानी में ब्राह्मण द्रोण द्वारा निषाद समुदाय के एकलव्य की गतिशीलता को दबाने का प्रयास ब्राह्मणीय व्यवस्था की कठोरता को दर्शाता है, जो बौद्ध और जैन दृष्टिकोण के विपरीत था।
- बौद्ध और जैन धर्म ने सामाजिक सुधार पर जोर दिया, जबकि महाभारत ने सामाजिक मानदंडों को बनाए रखने की कोशिश की। फिर भी, महाभारत की क्षेत्रीय पांडुलिपियों में विविधता (समालोचनात्मक संस्करण 1919-1966) यह दर्शाती है कि ब्राह्मणीय और गैर-ब्राह्मणीय विचारों के बीच संवाद था।
निष्कर्ष
बौद्ध और जैन धर्म ने प्राचीन भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव डाला, विशेषकर सामाजिक समानता, नैतिकता और अहिंसा को बढ़ावा देकर। इन धर्मों ने वर्ण व्यवस्था की जन्म-आधारित कठोरता को चुनौती दी और शूद्रों, चाण्डालों और स्त्रियों जैसे समूहों को धार्मिक और सामाजिक गतिशीलता का अवसर प्रदान किया। बौद्ध और जैन साहित्य, कला और स्थापत्य ने सामाजिक सुधार और सांस्कृतिक विकास को प्रेरित किया। महाभारत जैसे ब्राह्मणीय ग्रंथों के साथ तुलना से यह स्पष्ट होता है कि बौद्ध और जैन धर्म ने न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और आर्थिक परिवर्तनों को भी आकार दिया जिससे उपमहाद्वीप की सामाजिक संरचना अधिक समावेशी और गतिशील बनी।