जल निकास: परिभाषा, आवश्यकता और उद्देश्य
Drainage System Definition Necessity and Objectives : फसलों की अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी में उचित नमी का होना आवश्यक है, लेकिन अत्यधिक पानी पौधों के लिए उतना ही हानिकारक हो सकता है। यहीं पर जल निकास (Drainage) की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। जल निकास, कृषि भूमि से अतिरिक्त पानी को हटाने की प्रक्रिया है। यह भूमिगत या सतही हो सकता है और इसका मुख्य उद्देश्य पौधों की जड़ों को सांस लेने के लिए पर्याप्त हवा प्रदान करना और मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखना है। मध्य प्रदेश बोर्ड की 12वीं कक्षा के कृषि विषय ‘फसल उत्पादन और बागवानी’ के छात्रों के लिए जल निकास को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
1. जल निकास (Jal Nikaas) की परिभाषा
साधारण शब्दों में, जल निकास (Drainage) खेत या कृषि भूमि से अतिरिक्त पानी को नियंत्रित तरीके से बाहर निकालने की प्रक्रिया है। यह अतिरिक्त पानी वर्षा, सिंचाई या आसपास के क्षेत्रों से रिसाव के कारण जमा हो सकता है। यदि यह पानी लंबे समय तक खेत में जमा रहता है, तो यह फसलों के लिए कई प्रकार से हानिकारक हो सकता है। जल निकास प्रणाली में आमतौर पर नालियाँ, पाइप या अन्य संरचनाएँ शामिल होती हैं जो पानी को इकट्ठा करके उसे खेत से दूर ले जाती हैं।
2. जल निकास की आवश्यकता (Necessity of Drainage)
खेतों में जल निकास की आवश्यकता कई कारणों से होती है, जो सीधे तौर पर फसल की वृद्धि और मिट्टी के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं:
- जड़ों को वायु संचार (Aeration) प्रदान करना: पौधों की जड़ों को श्वसन के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। जब खेत में अतिरिक्त पानी भर जाता है, तो मिट्टी के कणों के बीच की हवा निकल जाती है और पानी भर जाता है, जिससे जड़ों को ऑक्सीजन नहीं मिल पाती। इससे जड़ें कमजोर हो जाती हैं और अंततः पौधा मर सकता है।
- मिट्टी की संरचना में सुधार: लगातार जलभराव से मिट्टी के कण आपस में चिपक जाते हैं, जिससे मिट्टी कठोर और सघन हो जाती है। जल निकास से मिट्टी की संरचना में सुधार होता है, जिससे वह अधिक भुरभुरी और उपजाऊ बनती है।
- तापमान नियंत्रण: पानी की अधिकता से मिट्टी का तापमान गिर जाता है, खासकर सर्दियों में। ठंडा तापमान पौधों की वृद्धि को धीमा कर सकता है। जल निकास से मिट्टी का तापमान अनुकूल बना रहता है।
- पोषक तत्वों की उपलब्धता में वृद्धि: जलभराव की स्थिति में मिट्टी में मौजूद कई आवश्यक पोषक तत्व घुलनशील होकर बह जाते हैं या अघुलनशील रूप में परिवर्तित हो जाते हैं, जिससे पौधों को वे उपलब्ध नहीं हो पाते। जल निकास से पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है।
- हानिकारक लवणों को हटाना: कुछ क्षेत्रों में, मिट्टी में हानिकारक लवणों की मात्रा अधिक होती है। जल निकास प्रणाली इन लवणों को जड़ क्षेत्र से दूर ले जाने में मदद करती है, जिससे मिट्टी लवणीय होने से बचती है।
- खेत में कृषि कार्यों की सुविधा: जलभराव वाले खेतों में जुताई, बुवाई और कटाई जैसे कृषि कार्य करना मुश्किल हो जाता है। जल निकास से खेत सूखते हैं और इन कार्यों को आसानी से किया जा सकता है।
- फसलों को बीमारियों से बचाना: अतिरिक्त नमी कई फंगल और बैक्टीरियल बीमारियों के विकास के लिए अनुकूल वातावरण बनाती है। उचित जल निकास इन बीमारियों के प्रकोप को कम करता है।
3. जल निकास के उद्देश्य (Objectives of Drainage)
जल निकास के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
- मिट्टी की भौतिक स्थिति में सुधार (Improving the physical condition of the soil): जल निकास से मिट्टी के कणों के बीच के वायु स्थान (Pore space) बढ़ते हैं, जिससे मिट्टी की संरचना भुरभुरी और खेती के लिए अधिक अनुकूल बनती है। यह मिट्टी की पारगम्यता (Permeability) को बढ़ाता है।
- इष्टतम वायु संचार (Optimum Aeration): जड़ों के स्वस्थ विकास और श्वसन के लिए मिट्टी में पर्याप्त ऑक्सीजन का होना अत्यंत आवश्यक है। जल निकास से मिट्टी के छिद्रों से अतिरिक्त पानी निकल जाता है, जिससे हवा के लिए पर्याप्त जगह बनती है और जड़ों को इष्टतम वायु संचार प्राप्त होता है।
- दलदली स्थिति को रोकना (Preventing the marshy condition of the soil): लगातार पानी भरा रहने से खेत दलदली हो जाते हैं, जिससे कृषि कार्य करना असंभव हो जाता है और फसलें नहीं उग पातीं। जल निकास इस दलदली स्थिति को रोकता है और भूमि को कृषि योग्य बनाए रखता है।
- तापमान बनाए रखना (Maintaining the temperature): जलभराव वाली मिट्टी को गर्म होने में अधिक समय लगता है, जिससे अंकुरण और पौधों की वृद्धि धीमी हो जाती है। जल निकास से मिट्टी में नमी का स्तर नियंत्रित रहता है, जिससे मिट्टी का तापमान पौधों के लिए अनुकूल बना रहता है।
- हानिकारक लवणों को रोकना (Preventing the harmful salt): अत्यधिक जलभराव और खराब निकास वाले क्षेत्रों में, भूजल में मौजूद लवण सतह पर आ जाते हैं और मिट्टी को लवणीय बना देते हैं। जल निकास प्रणाली इन हानिकारक लवणों को जड़ क्षेत्र से धोकर बाहर निकाल देती है, जिससे मिट्टी लवणीय होने से बचती है।
- उचित श्वसन (Proper Respiration): पौधों की जड़ों के साथ-साथ मिट्टी में मौजूद सूक्ष्मजीवों को भी श्वसन के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। जल निकास मिट्टी में ऑक्सीजन की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करता है, जिससे जड़ों और लाभकारी सूक्ष्मजीवों का उचित श्वसन होता है।
- समय पर जुताई (Timely Tillage): जलभराव वाले खेत में कृषि यंत्रों का उपयोग करना मुश्किल होता है और जुताई करने से मिट्टी की संरचना बिगड़ सकती है। जल निकास से खेत समय पर सूख जाते हैं, जिससे समय पर जुताई और अन्य कृषि कार्य आसानी से किए जा सकते हैं।
- लाभकारी जीवाणुओं की गतिविधियों में वृद्धि (Increasing the activities of advantageous bacteria): मिट्टी में कई लाभकारी जीवाणु होते हैं जो पोषक तत्वों को पौधों के लिए उपलब्ध कराने में मदद करते हैं (जैसे नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले जीवाणु)। इनमें से अधिकांश जीवाणु वायवीय (Aerobic) होते हैं, जिन्हें कार्य करने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। जल निकास से उन्हें अनुकूल वातावरण मिलता है और उनकी गतिविधियाँ बढ़ती हैं।
- विनाइट्रीकरण को रोकना (To prevent the denitrification): विनाइट्रीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें कुछ अवायवीय (Anaerobic) जीवाणु नाइट्रेट (पौधों के लिए उपलब्ध नाइट्रोजन का रूप) को गैसीय नाइट्रोजन में बदल देते हैं, जिससे यह वायुमंडल में निकल जाती है और पौधों के लिए अनुपलब्ध हो जाती है। जलभराव की स्थिति में यह प्रक्रिया बढ़ जाती है। जल निकास मिट्टी में ऑक्सीजन की उपलब्धता बढ़ाकर विनाइट्रीकरण को रोकता है।
- हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करना (Destroying harmful bacteria): कई रोगजनक (Pathogenic) जीवाणु और फफूंद, जो पौधों में बीमारियाँ पैदा करते हैं, जलभराव और ऑक्सीजन रहित वातावरण में पनपते हैं। जल निकास से ऐसा वातावरण नष्ट हो जाता है, जिससे इन हानिकारक जीवाणुओं का प्रकोप कम होता है।
- फसल की पैदावार बढ़ाना: उपरोक्त सभी उद्देश्यों की पूर्ति अंततः स्वस्थ पौधों, बेहतर पोषण और कम बीमारियों की ओर ले जाती है, जिसके परिणामस्वरूप प्रति इकाई क्षेत्र में फसल की पैदावार में उल्लेखनीय वृद्धि होती है।
- मिट्टी की उत्पादकता बनाए रखना: दीर्घकालिक रूप से मिट्टी की उर्वरता और उत्पादकता को बनाए रखना जल निकास का एक प्रमुख लक्ष्य है। यह मिट्टी के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों को बेहतर बनाता है।
- खेती की लागत कम करना: यद्यपि जल निकास प्रणाली स्थापित करने में प्रारंभिक लागत आती है, लेकिन यह लंबे समय में खेती की लागत को कम कर सकती है। बीमारियों का कम प्रकोप, बेहतर फसल वृद्धि और कृषि कार्यों में आसानी से लागत में कमी आती है।
- कृषि भूमि का बेहतर उपयोग: जलभराव के कारण अनुपयोगी पड़ी भूमि को जल निकास के माध्यम से खेती योग्य बनाया जा सकता है, जिससे कृषि भूमि का अधिकतम उपयोग संभव होता है।
- वातावरणीय स्थिरता: उचित जल निकास से जल-जमाव के कारण होने वाली मिट्टी के कटाव और पोषक तत्वों के नुकसान को कम करके पर्यावरणीय स्थिरता में योगदान मिलता है।
निष्कर्ष
जल निकास कृषि में एक अनिवार्य अभ्यास है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ भारी वर्षा या अत्यधिक सिंचाई होती है। यह केवल अतिरिक्त पानी को हटाने से कहीं अधिक है; यह मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखने, फसल की पैदावार बढ़ाने और कृषि को अधिक टिकाऊ बनाने का एक महत्वपूर्ण साधन है। मध्य प्रदेश के किसानों और कृषि छात्रों के लिए, जल निकास के सिद्धांतों और प्रथाओं को समझना सफल फसल उत्पादन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।