लेखक परिचय: MP बोर्ड कक्षा 10वीं – कृतिका भाग 2 के प्रमुख रचनाकार!
MP Board Class 10 Krutika Part 2 Lekhak Parichay : MP बोर्ड कक्षा 10वीं की हिंदी पाठ्यपुस्तक कृतिका भाग 2 में संकलित पाठ्यपुस्तकों में हमें तीन महत्वपूर्ण लेखकों की रचनाएँ पढ़ने को मिलती हैं। इन रचनाओं को गहराई से समझने के लिए उनके रचनाकारों का परिचय प्राप्त करना अत्यंत आवश्यक है। यह लेख आपको इन तीनों महान लेखकों – शिवपूजन सहाय, मधु कांकरिया, और सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ – का विस्तृत परिचय देगा।
1. शिवपूजन सहाय: देहाती दुनिया के अप्रतिम चितेरे
परिचय:
शिवपूजन सहाय का जन्म 1893 में बिहार के बक्सर जिले के उनवाँस गाँव में हुआ था। हिंदी साहित्य में इन्हें गद्यकार के रूप में एक विशिष्ट स्थान प्राप्त है। इन्होंने अपने साहित्य में ग्रामीण जीवन, बचपन की मासूमियत और पारिवारिक संबंधों का मार्मिक चित्रण किया है। वे एक ऐसे लेखक थे जिन्होंने भाषा की सादगी और संवेदना की गहराई को अपने लेखन का आधार बनाया।
प्रमुख कृतियाँ:
- ‘देहाती दुनिया’ (ग्राम-सुधार): यह उनका एकमात्र उपन्यास है, जो ग्रामीण जीवन पर आधारित है और ‘माता का आँचल’ इसी का अंश है। इसे हिंदी का पहला आंचलिक उपन्यास भी माना जाता है, हालांकि इसका प्रचलन बाद में हुआ।
- ‘मेरा जीवन’, ‘स्मृतिशेष’, ‘वे दिन वे लोग’: संस्मरण और रेखाचित्र।
- ‘कहानी का प्लॉट’, ‘विबुध’, ‘विभूति’: कहानी संग्रह।
साहित्यिक विशेषताएँ:
- ग्रामीण जीवन का यथार्थ चित्रण: शिवपूजन सहाय ने ग्रामीण परिवेश और वहाँ के लोगों की दिनचर्या, रीति-रिवाजों और बोलचाल की भाषा का अत्यंत सजीव चित्रण किया है।
- वात्सल्य और भावनात्मक गहराई: उनकी रचनाओं में, विशेषकर ‘माता का आँचल’ में, माँ-बाप के वात्सल्य और बच्चे के प्रति उनके असीम प्रेम का मर्मस्पर्शी वर्णन मिलता है।
- सादगीपूर्ण भाषा-शैली: उनकी भाषा अत्यंत सरल, सहज और ग्रामीण शब्दावली से युक्त होती है, जो पाठक को सीधे पाठ से जोड़ती है।
- आत्मकथात्मक शैली: उनकी रचनाओं में आत्मकथात्मक शैली का प्रयोग मिलता है, जिससे पाठक स्वयं को कहानी से जुड़ा हुआ महसूस करता है।
2. मधु कांकरिया: संवेदनशील यात्रा-वृत्तांत की लेखिका
परिचय:
मधु कांकरिया का जन्म 1957 में कोलकाता (पश्चिम बंगाल) में हुआ। वे हिंदी साहित्य में अपनी संवेदनशीलता और यथार्थवादी चित्रण के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में महानगरों की संवेदनहीनता, आर्थिक विसंगतियों, नारी विमर्श और शहरी जीवन के दबावों को गहराई से उकेरा है। ‘साना साना हाथ जोड़ि’ उनकी एक प्रसिद्ध यात्रा-वृत्तांत है।
प्रमुख कृतियाँ:
- ‘खुले गगन के लाल सितारे’, ‘सेल्यूलाइड’, ‘पत्ताखोर’, ‘सूखे पत्ते पर धूप’: उपन्यास।
- ‘बीते हुए’, ‘अकेली’, ‘तितली’, ‘और अंत में प्रार्थना’: कहानी संग्रह।
- ‘साना साना हाथ जोड़ि’: यात्रा-वृत्तांत।
साहित्यिक विशेषताएँ:
- सामाजिक सरोकार: उनकी रचनाएँ समकालीन समाज की समस्याओं, विसंगतियों और मानवीय संवेदनाओं पर केंद्रित होती हैं।
- यात्रा-वृत्तांत में दार्शनिक चिंतन: वे केवल यात्रा का वर्णन नहीं करतीं, बल्कि यात्रा के दौरान प्राप्त अनुभवों के माध्यम से जीवन, प्रकृति और समाज के दार्शनिक पहलुओं पर चिंतन करती हैं।
- नारी-विमर्श: उनकी रचनाओं में अक्सर नारी जीवन के विभिन्न पहलुओं, उनके संघर्षों और उनकी शक्ति का सशक्त चित्रण मिलता है।
- वर्णनात्मक और चित्रात्मक शैली: उनकी भाषा में वर्णनात्मकता इतनी प्रबल होती है कि पाठक को दृश्य अपनी आँखों के सामने घटित होते हुए महसूस होते हैं।
3. सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’: प्रयोगवाद के जनक
परिचय:
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का जन्म 1911 में उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के कसिया (कुशीनगर) में हुआ था। अज्ञेय हिंदी साहित्य में ‘प्रयोगवाद’ और ‘नई कविता’ के प्रमुख प्रवर्तक माने जाते हैं। वे एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार थे, जिन्होंने कविता, कहानी, उपन्यास, निबंध, आलोचना और यात्रा-वृत्तांत जैसी अनेक विधाओं में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार (1978) और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
प्रमुख कृतियाँ:
- उपन्यास: ‘शेखर: एक जीवनी’, ‘नदी के द्वीप’, ‘अपने-अपने अजनबी’।
- कहानी संग्रह: ‘विपथगा’, ‘परंपरा’, ‘अमर वल्लरी’, ‘शरणार्थी’, ‘जयदोल’।
- कविता संग्रह: ‘भग्नदूत’, ‘चिंता’, ‘इत्यलम’, ‘हरी घास पर क्षण भर’, ‘बावरा अहेरी’, ‘आँगन के पार द्वार’, ‘कितनी नावों में कितनी बार’।
- निबंध संग्रह: ‘त्रिशंकु’, ‘आत्मनेपद’, ‘आलवाल’, ‘लिखि कागद कोरे’।
- यात्रा-वृत्तांत: ‘अरे यायावर रहेगा याद?’, ‘एक बूँद सहसा उछली’।
साहित्यिक विशेषताएँ:
- प्रयोगवाद के प्रवर्तक: उन्होंने हिंदी कविता में नए बिंबों, प्रतीकों और शिल्प के प्रयोग पर बल दिया।
- व्यक्ति-सत्ता और आत्म-चिंतन: अज्ञेय की रचनाओं में व्यक्ति की स्वतंत्रता, उसकी आंतरिक दुनिया और आत्म-चिंतन का गहरा प्रभाव मिलता है। ‘मैं क्यों लिखता हूँ’ इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।
- बौद्धिक गहनता: उनकी रचनाएँ बौद्धिक रूप से गंभीर होती हैं और पाठक को सोचने पर मजबूर करती हैं।
- भाषा-शैली में नवीनता: उन्होंने भाषा को रूढ़ियों से मुक्त कर नए अर्थ दिए और शब्दों के साथ नए प्रयोग किए। उनकी भाषा परिष्कृत और प्रवाहमयी होती है।
- विज्ञान और आधुनिकता का प्रभाव: उनकी रचनाओं पर विज्ञान और आधुनिकता के प्रभावों को देखा जा सकता है, जैसे ‘हिरोशिमा’ कविता में परमाणु बम का चित्रण।
निष्कर्ष:
कृतिका भाग 2 के ये तीनों लेखक – शिवपूजन सहाय, मधु कांकरिया और अज्ञेय – हिंदी साहित्य के अलग-अलग धाराओं और शैलियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनके जीवन परिचय और साहित्यिक विशेषताओं को समझने से न केवल हमें उनके पाठों को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलती है, बल्कि हिंदी साहित्य की समृद्धि और विविधता का भी ज्ञान होता है।