फसलों का वर्गीकरण : class 11 Crop Production Classification of Crops

🌾फसलों का वर्गीकरण और फसल चक्र 🌾

class 11 Crop Production Classification of Crops : फसलों का वर्गीकरण कृषि विज्ञान का एक मूलभूत पहलू है, जो हमें उनकी विशेषताओं, आवश्यकताओं और उपयोगिता को समझने में मदद करता है। यह किसानों को उचित फसल चयन, प्रबंधन और फसल चक्र (Crop Rotation) की योजना बनाने में सहायता करता है जो मिट्टी के स्वास्थ्य और कृषि उत्पादकता के लिए महत्वपूर्ण है।

विभिन्न आधारों पर फसलों का वर्गीकरण इस प्रकार है:

1. ऋतु के आधार पर फसलों का वर्गीकरण (Classification Based on Seasons)

भारत में फसलों को मुख्य रूप से तीन प्रमुख कृषि ऋतुओं के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है:

WhatsApp Channel Join Now
Telegram Channel Join Now
  • क. खरीफ फसलें (Kharif Crops) ☔☀️
    • बुवाई का समय: मानसून की शुरुआत के साथ, आमतौर पर जून-जुलाई में बोई जाती हैं।
    • कटाई का समय: मानसून के अंत या शरद ऋतु की शुरुआत में, आमतौर पर सितंबर-अक्टूबर में काटी जाती हैं।
    • विशेषताएँ: इन फसलों को उगने और बढ़ने के लिए अधिक गर्मी और उच्च आर्द्रता (पानी) की आवश्यकता होती है। ये मानसूनी वर्षा पर निर्भर करती हैं।
    • प्रमुख फसलें: धान (चावल), मक्का, ज्वार, बाजरा, रागी, सोयाबीन, मूंगफली, कपास, जूट, मूंग, उड़द, अरहर (तूर दाल)।
    • डेटा: 2023-24 में भारत का खरीफ खाद्यान्न उत्पादन 154.07 मिलियन टन अनुमानित था, जिसमें चावल प्रमुख फसल है। (स्रोत: कृषि मंत्रालय, भारत सरकार)
  • ख. रबी फसलें (Rabi Crops) ❄️☀️
    • बुवाई का समय: शीत ऋतु की शुरुआत में, आमतौर पर अक्टूबर-नवंबर में बोई जाती हैं।
    • कटाई का समय: ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत में, आमतौर पर मार्च-अप्रैल में काटी जाती हैं।
    • विशेषताएँ: इन फसलों को उगने के लिए ठंडा मौसम और पकने के लिए गर्म मौसम की आवश्यकता होती है। ये अक्सर शीतकालीन वर्षा या सिंचाई पर निर्भर करती हैं।
    • प्रमुख फसलें: गेहूं, जौ, चना, मटर, सरसों, अलसी, मसूर, आलू।
    • डेटा: 2023-24 में रबी खाद्यान्न उत्पादन 169.48 मिलियन टन अनुमानित था, जिसमें गेहूं का प्रमुख योगदान है। (स्रोत: कृषि मंत्रालय, भारत सरकार)
  • ग. जायद फसलें (Zaid Crops) 🌡️
    • बुवाई का समय: रबी और खरीफ फसल ऋतुओं के बीच, ग्रीष्मकाल में, आमतौर पर मार्च-जून में बोई जाती हैं।
    • कटाई का समय: जुलाई-अगस्त तक।
    • विशेषताएँ: ये छोटी अवधि की फसलें होती हैं जो जल्दी पक जाती हैं और इन्हें अच्छी सिंचाई की आवश्यकता होती है।
    • प्रमुख फसलें: तरबूज, खरबूजा, ककड़ी, खीरा, सूरजमुखी, और कई प्रकार की सब्जियां (लौकी, करेला, तोरी)। कुछ क्षेत्रों में चारा फसलें भी उगाई जाती हैं।

2. जीवन चक्र के आधार पर फसलों का वर्गीकरण (Classification Based on Life Cycle)

पौधों को उनके जीवन काल या बीज से बीज तक के जीवन चक्र को पूरा करने में लगने वाले समय के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है:

  • क. वार्षिक फसलें (Annual Crops):
    • विशेषताएँ: ये फसलें अपना पूरा जीवन चक्र (अंकुरण से लेकर बीज उत्पादन तक) एक ही growing season या एक वर्ष के भीतर पूरा कर लेती हैं।
    • उदाहरण: धान, गेहूं, मक्का, बाजरा, चना, मटर, सरसों, सोयाबीन, मूंगफली। अधिकांश अनाज और दालें वार्षिक फसलें हैं।
  • ख. द्विवार्षिक फसलें (Biennial Crops):
    • विशेषताएँ: ये फसलें अपना जीवन चक्र दो growing seasons या दो वर्षों में पूरा करती हैं। पहले वर्ष में वानस्पतिक वृद्धि (पत्तियां, तना, जड़) होती है, और दूसरे वर्ष में फूल, फल और बीज लगते हैं।
    • उदाहरण: गाजर, मूली, चुकंदर, प्याज, पत्तागोभी।
  • ग. बहुवार्षिक फसलें (Perennial Crops):
    • विशेषताएँ: ये फसलें अपना जीवन चक्र दो से अधिक वर्षों तक बनाए रखती हैं और कई वर्षों तक उपज देती रहती हैं। एक बार बोने या लगाने के बाद, वे कई कटाई के मौसमों तक उत्पादन करती हैं।
    • उदाहरण: गन्ना, अल्फाल्फा, लूसर्न, नेपियर घास (चारा), फलदार पेड़ (आम, अमरूद, सेब), कॉफी, चाय, रबर।

3. उपयोगिता/आर्थिक महत्त्व के आधार पर फसलों का वर्गीकरण (Classification Based on Utility/Economic Importance)

यह वर्गीकरण फसलों के मुख्य उपयोग या उनसे प्राप्त होने वाले उत्पाद के आधार पर होता है:

  • क. अनाज फसलें (Cereal Crops):
    • उपयोग: मुख्य रूप से खाद्य ऊर्जा के लिए दाने प्राप्त करने हेतु उगाई जाती हैं। ये कार्बोहाइड्रेट का मुख्य स्रोत हैं।
    • उदाहरण: धान (चावल), गेहूं, मक्का, ज्वार, बाजरा, जौ, रागी।
    • डेटा: भारत का कुल खाद्यान्न उत्पादन 2023-24 में रिकॉर्ड 323.55 मिलियन टन अनुमानित है, जिसमें अनाज का बड़ा हिस्सा है। (स्रोत: कृषि मंत्रालय, भारत सरकार)
  • ख. दलहनी फसलें (Pulses/Legume Crops):
    • उपयोग: खाद्य प्रोटीन के लिए दाने (दालें) प्राप्त करने हेतु उगाई जाती हैं। ये मिट्टी में नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Nitrogen Fixation) में भी मदद करती हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है।
    • उदाहरण: चना, मटर, मसूर, अरहर, मूंग, उड़द, लोबिया।
    • डेटा: भारत का दलहन उत्पादन 2023-24 में 27.50 मिलियन टन अनुमानित है। (स्रोत: कृषि मंत्रालय, भारत सरकार)
  • ग. तिलहनी फसलें (Oilseed Crops):
    • उपयोग: खाद्य तेल निकालने के लिए बीज प्राप्त करने हेतु उगाई जाती हैं।
    • उदाहरण: सरसों, मूंगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी, तिल, अलसी, अरंडी।
    • डेटा: भारत का तिलहन उत्पादन 2023-24 में 40.66 मिलियन टन अनुमानित है। (स्रोत: कृषि मंत्रालय, भारत सरकार)
  • घ. रेशे वाली फसलें (Fibre Crops):
    • उपयोग: वस्त्र, रस्सी, बोरे आदि बनाने के लिए रेशे प्राप्त करने हेतु उगाई जाती हैं।
    • उदाहरण: कपास, जूट, सन, पटसन।
  • ङ. चारा फसलें (Forage/Fodder Crops):
    • उपयोग: पशुधन के लिए चारे के रूप में उगाई जाती हैं।
    • उदाहरण: जई (Oats), बरसीम, लूसर्न (अल्फाल्फा), नेपियर घास, मक्का (चारा)।
  • च. कंद फसलें (Tuber Crops):
    • उपयोग: भूमिगत तनों या जड़ों (कंद) से खाद्य ऊर्जा प्राप्त करने हेतु उगाई जाती हैं।
    • उदाहरण: आलू, शकरकंद, अरबी, जिमीकंद।
  • छ. चीनी/शर्करा फसलें (Sugar Crops):
    • उपयोग: चीनी या गुड़ प्राप्त करने के लिए।
    • उदाहरण: गन्ना, चुकंदर।
    • डेटा: भारत दुनिया का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक है, जिसमें 2023-24 में गन्ने का उत्पादन 450.12 मिलियन टन अनुमानित है। (स्रोत: कृषि मंत्रालय, भारत सरकार)
  • ज. औषधीय और सुगंधित फसलें (Medicinal and Aromatic Crops):
    • उपयोग: औषधीय प्रयोजनों, सौंदर्य प्रसाधनों और इत्र के लिए आवश्यक तेल या अन्य सक्रिय यौगिक प्राप्त करने हेतु।
    • उदाहरण: पुदीना, तुलसी, एलोवेरा, लेमनग्रास, चंदन, अफीम, अश्वगंधा।
  • झ. उत्तेजक फसलें (Stimulant Crops):
    • उपयोग: उत्तेजक पदार्थों या पेय पदार्थ बनाने के लिए।
    • उदाहरण: चाय, कॉफी, तंबाकू।
  • ञ. हरी खाद फसलें (Green Manure Crops):
    • उपयोग: मिट्टी की उर्वरता और संरचना में सुधार के लिए इन्हें उगाया जाता है और फूल आने से पहले ही मिट्टी में जोत दिया जाता है।
    • उदाहरण: सनई, ढैंचा, मूंग, लोबिया।

4. सस्य वैज्ञानिक वर्गीकरण (Agronomic Classification)

यह वर्गीकरण पौधों की वानस्पतिक विशेषताओं, कृषि पद्धतियों और उनके विशिष्ट पर्यावरणीय आवश्यकताओं के आधार पर होता है:

  • क. अनाज (Cereals): (ऊपर देखें) मुख्य रूप से घास परिवार (Poaceae/Gramineae) के सदस्य।
  • ख. दालें (Pulses): (ऊपर देखें) मुख्य रूप से फलीदार परिवार (Fabaceae/Leguminosae) के सदस्य।
  • ग. तिलहन (Oilseeds): (ऊपर देखें) विभिन्न परिवारों से संबंधित हो सकते हैं।
  • घ. फाइबर फसलें (Fiber Crops): (ऊपर देखें)
  • ङ. जड़ और कंद फसलें (Root and Tuber Crops): (ऊपर देखें)
  • च. हरी खाद फसलें (Green Manure Crops): (ऊपर देखें)
  • छ. गन्ना (Sugarcane): एक विशिष्ट महत्वपूर्ण फसल।
  • ज. आलू (Potato): एक महत्वपूर्ण कंद फसल।

फसल चक्र (Crop Rotation) 🔄🌱

परिभाषा: फसल चक्र कृषि प्रबंधन की एक प्रणाली है जिसमें एक ही खेत में लगातार अलग-अलग प्रकार की फसलें एक सुनियोजित क्रम में उगाई जाती हैं, बजाय इसके कि हर साल एक ही फसल उगाई जाए। इसका उद्देश्य मिट्टी के स्वास्थ्य, उत्पादकता और कीट/रोग नियंत्रण को बनाए रखना है।

मुख्य उद्देश्य और लाभ:

  1. मिट्टी की उर्वरता बनाए रखना:
    • विभिन्न फसलें मिट्टी से अलग-अलग पोषक तत्वों को अवशोषित करती हैं। जैसे, अनाज नाइट्रोजन का उपयोग करते हैं, जबकि दलहनी फसलें मिट्टी में नाइट्रोजन (नाइट्रोजन स्थिरीकरण के माध्यम से) जोड़ती हैं। फसल चक्र से पोषक तत्वों का संतुलन बना रहता है।
    • जैविक पदार्थ का निर्माण होता है, जो मिट्टी की संरचना और जल-धारण क्षमता में सुधार करता है।
  2. कीटों और रोगों का नियंत्रण:
    • एक ही फसल को बार-बार उगाने से उस फसल के विशिष्ट कीटों और रोगों का प्रकोप बढ़ जाता है। फसल चक्र से इन कीटों और रोगों का जीवन चक्र टूट जाता है, जिससे उनकी आबादी कम होती है।
  3. खरपतवार नियंत्रण:
    • विभिन्न फसलें अलग-अलग खरपतवारों के लिए प्रतिस्पर्धा करती हैं। फसल चक्र से विशिष्ट खरपतवारों के प्रभावी नियंत्रण में मदद मिलती है।
  4. मिट्टी का कटाव कम करना:
    • अलग-अलग जड़ों वाली फसलें मिट्टी को बेहतर ढंग से बांधे रखती हैं, जिससे हवा और पानी से होने वाला कटाव कम होता है।
  5. संसाधनों का कुशल उपयोग:
    • विभिन्न फसलें पानी और पोषक तत्वों का अलग-अलग गहराई से उपयोग करती हैं, जिससे उपलब्ध संसाधनों का बेहतर उपयोग होता है।
  6. किसानों की आय में वृद्धि:
    • विविध उत्पादों के कारण आय के स्रोत बढ़ते हैं और बाजार की अस्थिरता का जोखिम कम होता है।

उदाहरण:

  • अनाज (जैसे गेहूं) के बाद दलहनी फसल (जैसे चना) उगाना, जिससे मिट्टी में नाइट्रोजन की पूर्ति हो।
  • गहन पोषक तत्व लेने वाली फसल (जैसे गन्ना) के बाद पोषक तत्व जोड़ने वाली या मिट्टी को आराम देने वाली फसल उगाना।
  • गेहूं (रबी) – मक्का (खरीफ) – दलहन (जायद/रबी) का चक्र।

फसलों का सही वर्गीकरण और प्रभावी फसल चक्र प्रबंधन आधुनिक और टिकाऊ कृषि पद्धतियों की नींव हैं, जो खाद्य सुरक्षा और पर्यावरणीय स्वास्थ्य दोनों को सुनिश्चित करते हैं।

Leave a Comment