कृषि व्यवसायीकरण की आवश्यकता Needs of Agricultural Commercialization

Needs of Agricultural Commercialization : भारत में कृषि व्यवसायीकरण की आवश्यकता (Needs of Agricultural Commercialization) कई कारणों से बढ़ती जा रही है। पारंपरिक निर्वाह कृषि से हटकर व्यवसाय-उन्मुख कृषि की ओर बढ़ना देश की आर्थिक प्रगति, खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण विकास के लिए महत्वपूर्ण हो गया है।

कृषि व्यवसायीकरण की आवश्यकता क्यों है?

  1. बढ़ती जनसंख्या की खाद्य आवश्यकताएँ पूरी करना (Meeting Food Requirements of Growing Population):
    • भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है, और जनसंख्या लगातार बढ़ रही है। इस विशाल आबादी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती है।
    • पारंपरिक कृषि पद्धतियाँ अब इतनी बड़ी आबादी की खाद्य जरूरतों को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं। व्यवसायीकरण से उत्पादन में वृद्धि होती है, जिससे देश को खाद्य आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में मदद मिलती है। 2022-23 में भारत का खाद्यान्न उत्पादन 323.55 मिलियन टन के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा है, जो व्यवसायीकरण का ही परिणाम है।
  2. किसानों की आय में वृद्धि (Increasing Farmers’ Income):
    • भारत में अधिकांश किसान छोटे और सीमांत श्रेणी के हैं, जिनकी आय अक्सर कम और अस्थिर होती है।
    • कृषि को एक व्यवसाय के रूप में अपनाने से किसान केवल अपने उपभोग के लिए उत्पादन करने के बजाय बाजार की मांग के अनुसार उत्पादन करते हैं। नकदी फसलें, उच्च-मूल्य वाले उत्पाद और मूल्य संवर्धन गतिविधियां किसानों को अपनी उपज का बेहतर मूल्य प्राप्त करने में मदद करती हैं, जिससे उनकी आय बढ़ती है और जीवन स्तर में सुधार होता है।
  3. ग्रामीण गरीबी उन्मूलन (Poverty Alleviation in Rural Areas):
    • कृषि व्यवसायीकरण ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर पैदा करता है। इसमें केवल खेती ही नहीं, बल्कि कृषि-आधारित उद्योग (जैसे खाद्य प्रसंस्करण, कोल्ड स्टोरेज, कृषि उपकरण निर्माण और रखरखाव) भी शामिल हैं।
    • बढ़ी हुई आय और रोजगार के अवसर ग्रामीण गरीबी को कम करने में सहायक होते हैं।
  4. कृषि उत्पादकता में सुधार (Improving Agricultural Productivity):
    • व्यवसायीकरण आधुनिक कृषि पद्धतियों और प्रौद्योगिकियों, जैसे उच्च उपज वाले बीज (HYVs), उर्वरकों का संतुलित उपयोग, वैज्ञानिक सिंचाई (ड्रिप/स्प्रिंकलर), मशीनीकरण और कीट प्रबंधन को अपनाने को बढ़ावा देता है।
    • ये कारक प्रति हेक्टेयर उत्पादकता में उल्लेखनीय वृद्धि करते हैं, जिससे कम भूमि पर अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है।
  5. औद्योगिक क्षेत्र के लिए कच्चे माल की आपूर्ति (Supplying Raw Materials to Industries):
    • कृषि कई प्रमुख उद्योगों के लिए कच्चे माल का एक महत्वपूर्ण स्रोत है (जैसे कपड़ा उद्योग के लिए कपास, चीनी उद्योग के लिए गन्ना, खाद्य प्रसंस्करण के लिए फल और सब्जियां)।
    • कृषि का व्यवसायीकरण इन उद्योगों के लिए कच्चे माल की स्थिर और पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करता है, जिससे औद्योगिक विकास को बढ़ावा मिलता है।
  6. निर्यात आय में वृद्धि (Increasing Export Earnings):
    • जब कृषि उत्पादन अपनी घरेलू जरूरतों से अधिक हो जाता है, तो अधिशेष उत्पादों का निर्यात किया जा सकता है।
    • चावल, मसाले, चाय, कॉफी, फल, सब्जियां और समुद्री उत्पाद जैसे कृषि उत्पादों का निर्यात भारत के लिए विदेशी मुद्रा अर्जित करता है, जिससे देश का व्यापार संतुलन बेहतर होता है।
  7. कृषि क्षेत्र में निवेश को आकर्षित करना (Attracting Investment in Agriculture):
    • जब कृषि को एक लाभदायक व्यवसाय के रूप में देखा जाता है, तो यह निजी और संस्थागत निवेशकों को आकर्षित करती है।
    • यह निवेश कृषि बुनियादी ढांचे (जैसे कोल्ड स्टोरेज, प्रसंस्करण इकाइयां, लॉजिस्टिक्स) के विकास और अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देता है।
  8. बाजारों का विस्तार और एकीकरण (Expansion and Integration of Markets):
    • व्यवसायीकरण किसानों को स्थानीय बाजारों से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों से जोड़ता है।
    • ई-नाम (e-NAM) जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म किसानों को अपनी उपज के लिए बेहतर मूल्य खोजने में मदद करते हैं, जिससे बिचौलियों की भूमिका कम होती है और बाजार अधिक पारदर्शी बनता है।

निष्कर्ष

भारत में कृषि का व्यवसायीकरण एक रणनीतिक आवश्यकता है। यह न केवल देश की खाद्य सुरक्षा को मजबूत करता है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करता है, किसानों की आय बढ़ाता है और राष्ट्रीय आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान देता है। हालांकि, इसे छोटे और सीमांत किसानों के हितों की रक्षा करते हुए, टिकाऊ पर्यावरणीय प्रथाओं को बढ़ावा देते हुए और आवश्यक बुनियादी ढांचे का विकास करते हुए सावधानीपूर्वक लागू किया जाना चाहिए।

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