कक्षा 12 हिन्दी व्याकरण अलंकार: परिचय एवं प्रकार : Hindi Grammar Alankar Types and Example

Hindi Grammar Alankar Types and Example : हिंदी व्याकरण में ‘अलंकार’ काव्य सौंदर्य के महत्वपूर्ण तत्व हैं। ये कविताओं की शोभा बढ़ाते हैं और उनके अर्थ को अधिक प्रभावी बनाते हैं। यहाँ अलंकार का परिचय, उसके प्रकार और आपके द्वारा विशेष रूप से पूछे गए अलंकारों का विस्तार से वर्णन, तथा कुछ अन्य महत्वपूर्ण अलंकारों के उदाहरण दिए गए हैं:


अलंकार: काव्य का सौंदर्य


परिचय: अलंकार का शाब्दिक अर्थ है ‘आभूषण’ या ‘गहना’। जिस प्रकार आभूषण पहनने से व्यक्ति की शोभा बढ़ती है, उसी प्रकार काव्य में अलंकारों के प्रयोग से उसकी भाषा और भावों में चमत्कार उत्पन्न होता है और उसकी शोभा बढ़ जाती है। अलंकार काव्य को आकर्षक, प्रभावशाली और आनंददायक बनाते हैं।

परिभाषा: “काव्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्वों को अलंकार कहते हैं।”

अलंकार के प्रमुख भेद: अलंकार मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं:

  1. शब्दालंकार (Shabd Alankar): जहाँ शब्दों के प्रयोग के कारण काव्य में सौंदर्य या चमत्कार उत्पन्न हो। शब्द बदलने पर अलंकार समाप्त हो जाता है।
  2. अर्थालंकार (Artha Alankar): जहाँ अर्थ के कारण काव्य में सौंदर्य या चमत्कार उत्पन्न हो। यहाँ शब्द के पर्यायवाची रख देने पर भी अलंकार बना रहता है।

प्रमुख शब्दालंकार (Other Types)


  1. अनुप्रास अलंकार (Anupras Alankar):
    • परिभाषा: जहाँ एक ही वर्ण (अक्षर) की आवृत्ति (एक से अधिक बार आना) बार-बार होती है, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।
    • उदाहरण: “चारु चंद्र की चंचल किरणें, खेल रही हैं जल थल में।” (यहाँ ‘च’ वर्ण की आवृत्ति है।)
  2. यमक अलंकार (Yamak Alankar):
    • परिभाषा: जहाँ एक ही शब्द की आवृत्ति दो या दो से अधिक बार हो, और हर बार उसका अर्थ भिन्न-भिन्न हो, वहाँ यमक अलंकार होता है।
    • उदाहरण: “कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय। या खाए बौराय जग, वा पाए बौराय।।” (यहाँ ‘कनक’ शब्द दो बार आया है। पहली बार ‘कनक’ का अर्थ ‘सोना’ और दूसरी बार ‘कनक’ का अर्थ ‘धतूरा’ है।)
  3. श्लेष अलंकार (Shlesh Alankar):
    • परिभाषा: जहाँ एक ही शब्द एक बार प्रयोग होकर प्रसंगानुसार दो या दो से अधिक अर्थ दे, वहाँ श्लेष अलंकार होता है।
    • उदाहरण: “रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून। पानी गए न ऊबरे, मोती, मानुष, चून।।” (यहाँ ‘पानी’ शब्द के तीन अर्थ हैं: मोती के लिए ‘चमक’, मानुष (मनुष्य) के लिए ‘इज्जत’ और चून (आटा/चूना) के लिए ‘जल’।)

प्रमुख अर्थालंकार (Other Types)


  1. उपमा अलंकार (Upma Alankar):
    • परिभाषा: जहाँ दो भिन्न वस्तुओं में उनके गुण, धर्म या क्रिया के आधार पर समानता या तुलना की जाए, वहाँ उपमा अलंकार होता है। इसके चार अंग होते हैं: उपमेय, उपमान, साधारण धर्म, वाचक शब्द (सा, सी, से, सम, सरिस आदि)।
    • उदाहरण: “मुख चंद्रमा-सा सुंदर है।” (यहाँ ‘मुख’ (उपमेय) की तुलना ‘चंद्रमा’ (उपमान) से ‘सुंदरता’ (साधारण धर्म) के आधार पर ‘सा’ (वाचक शब्द) के माध्यम से की गई है।)
  2. रूपक अलंकार (Roopak Alankar):
    • परिभाषा: जहाँ उपमेय (प्रस्तुत) पर उपमान (अप्रस्तुत) का अभेद आरोप किया जाए, अर्थात् उपमेय और उपमान में कोई भेद न हो, उन्हें एक ही मान लिया जाए, वहाँ रूपक अलंकार होता है। इसमें ‘सा, सी, से’ जैसे वाचक शब्द नहीं होते।
    • उदाहरण: “चरण कमल बंदौ हरिराई।” (यहाँ ‘चरण’ (उपमेय) पर ‘कमल’ (उपमान) का अभेद आरोप है, अर्थात् चरणों को ही कमल मान लिया गया है।)
  3. उत्प्रेक्षा अलंकार (Utpreksha Alankar):
    • परिभाषा: जहाँ उपमेय में उपमान की संभावना या कल्पना की जाए, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इसके वाचक शब्द हैं: मनु, मानो, जनु, जानो, मनुज, जनहु, ज्यों।
    • उदाहरण: “सोहत ओढ़े पीत पट, स्याम सलोने गात। मनु नीलमनि सैल पर, आतप परयौ प्रभात।।” (यहाँ कृष्ण के साँवले शरीर (उपमेय) में नीलमणि पर्वत (उपमान) की और पीतांबर (उपमेय) में प्रभात की धूप (उपमान) की संभावना की गई है।)
  4. मानवीकरण अलंकार (Manvikaran Alankar):
    • परिभाषा: जहाँ अचेतन (निर्जीव) प्रकृति या जड़ वस्तुओं पर मानवीय क्रियाओं, भावों या गुणों का आरोप किया जाए, अर्थात् उन्हें मानव की तरह व्यवहार करते हुए दिखाया जाए, वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है।
    • उदाहरण: “मेघ आए बड़े बन-ठन के, सँवर के।” (यहाँ ‘मेघ’ (बादल) निर्जीव होते हुए भी ‘बन-ठन के, सँवर के’ आने की मानवीय क्रिया कर रहे हैं।)
  5. अतिशयोक्ति अलंकार (Atishayokti Alankar):
    • परिभाषा: जहाँ किसी बात का इतना बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया जाए कि लोक-मर्यादा या वास्तविकता की सीमा का उल्लंघन हो जाए, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है।
    • उदाहरण: “हनुमान की पूँछ में लग न पाई आग। लंका सिगरी जल गई, गए निशाचर भाग।।” (यहाँ हनुमान की पूँछ में आग लगने से पहले ही पूरी लंका के जल जाने का बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया गया है।)

विशेष रूप से पूछे गए अलंकार (Specific Alankars)


  1. संदेह अलंकार (Sandeh Alankar):
    • परिभाषा: जहाँ उपमेय (प्रस्तुत वस्तु) में उपमान (अप्रस्तुत वस्तु) का संदेह हो, और यह निश्चय न हो पाए कि वह उपमेय है या उपमान। यहाँ ‘या’, ‘किधौं’, ‘कै’ आदि वाचक शब्दों का प्रयोग होता है और निर्णय न हो पाने की स्थिति बनी रहती है।
    • उदाहरण: “सारी बिच नारी है कि नारी बिच सारी है। सारी ही की नारी है कि नारी ही की सारी है।।” (द्रौपदी के चीर हरण के समय यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा कि साड़ी के बीच नारी है या नारी के बीच साड़ी है, संदेह बना हुआ है।)
  2. सांगरूपक अलंकार (Sangroopak Alankar):
    • परिभाषा: जहाँ उपमेय पर उपमान का अंगों सहित आरोप किया जाए, अर्थात् न केवल मुख्य उपमेय पर उपमान का आरोप हो, बल्कि उपमेय के अंगों पर भी उपमान के अंगों का आरोप किया जाए, वहाँ सांगरूपक अलंकार होता है। यह रूपक अलंकार का ही एक विस्तृत रूप है।
    • उदाहरण: “बीती विभावरी जाग री! अंबर पनघट में डुबो रही तारा घट ऊषा नागरी।” (यहाँ ‘अंबर’ (आकाश) पर ‘पनघट’ का आरोप है; ‘तारा’ (सितारों) पर ‘घट’ (घड़े) का आरोप है; और ‘ऊषा’ (सुबह) पर ‘नागरी’ (नायिका) का आरोप है। इस प्रकार उपमेय (अंबर, तारा, ऊषा) के अंगों पर उपमान (पनघट, घट, नागरी) के अंगों का आरोप है।)
  3. भ्रांतिमान अलंकार (Bhrantiman Alankar):
    • परिभाषा: जहाँ समानता के कारण उपमेय में उपमान का भ्रम हो जाए और उस भ्रम के कारण उसी के अनुरूप क्रिया भी होने लगे, वहाँ भ्रांतिमान अलंकार होता है। इसमें ‘भ्रम’ निश्चय में बदल जाता है और क्रिया भी हो जाती है, जबकि संदेह में निर्णय नहीं होता।
    • उदाहरण: “नाक का मोती अधर की कांति से, बीज दाड़िम का समझकर भ्रांति से, देखकर सहसा हुआ शुक मौन है। सोचता है अन्य शुक यह कौन है?” (यहाँ नायिका की नाक में लगे मोती को तोते को अनार का दाना होने का भ्रम हो गया है, और इसी भ्रम के कारण वह मौन हो गया है, यानी क्रिया भी हो गई है।)
  4. विरोधाभास अलंकार (Virodhabhas Alankar):
    • परिभाषा: जहाँ वास्तव में विरोध न होते हुए भी, केवल शब्दों के कारण विरोध का आभास हो, वहाँ विरोधाभास अलंकार होता है। इसमें दो विरोधी गुणों या क्रियाओं का एक साथ वर्णन किया जाता है, जो सुनने में विरोधाभासी लगते हैं पर उनका गहरा अर्थ होता है।
    • उदाहरण: “या अनुरागी चित्त की गति समुझे नहिं कोय। ज्यों ज्यों बूडै स्याम रंग, त्यों त्यों उज्ज्वल होय।।” (यहाँ ‘श्याम रंग’ (काला रंग) में डूबने पर वस्तु का ‘उज्ज्वल’ (सफेद/साफ) होने की बात की गई है, जो सामान्यतः विरोधी है। लेकिन इसका अर्थ है कि जैसे-जैसे मन कृष्ण भक्ति में लीन होता है, वैसे-वैसे वह पवित्र होता जाता है।)
  5. व्यतिरेक अलंकार (Vyatirek Alankar):
    • परिभाषा: जहाँ उपमान (प्रसिद्ध वस्तु जिससे तुलना की जाए) की अपेक्षा उपमेय (प्रस्तुत वस्तु) को अधिक श्रेष्ठ बताया जाए, अर्थात् उपमान की तुलना में उपमेय में कुछ विशिष्टता या अधिकता बताई जाए, वहाँ व्यतिरेक अलंकार होता है।
    • उदाहरण: “जिनके यश प्रताप के आगे, शशि मलिन रवि सियरे लागे।” (यहाँ किसी के यश और प्रताप (उपमेय) को चंद्रमा (शशि) और सूर्य (रवि) जैसे प्रसिद्ध उपमानों से भी अधिक श्रेष्ठ बताया गया है, क्योंकि उनके आगे चंद्रमा भी मलिन और सूर्य भी शीतल लग रहे हैं।) एक और उदाहरण: “मुख चंद्रमा के समान सुंदर है, परंतु चंद्रमा में कलंक है, जबकि मुख निष्कलंक है।” (यहाँ मुख को चंद्रमा से श्रेष्ठ बताया गया है क्योंकि मुख निष्कलंक है।)

निष्कर्ष: अलंकार काव्य की आत्मा और सौंदर्य के प्रतीक हैं। इनके अध्ययन से न केवल काव्य की गहरी समझ विकसित होती है, बल्कि आप परीक्षाओं में भी बेहतर प्रदर्शन कर पाते हैं। ऊपर दिए गए सभी अलंकारों की परिभाषाएँ उनकी पहचान के तरीके और उदाहरणों को अच्छी तरह समझकर याद कर लें।

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