Hindi Grammar Ras Definition Types and Example : हिंदी व्याकरण में ‘रस’ एक बहुत ही महत्वपूर्ण और रुचिकर विषय है। यह काव्य का प्राण तत्व माना जाता है। यहाँ आपके लिए ‘रस’ का संपूर्ण परिचय, उसके अंग, प्रकार और पर्याप्त उदाहरणों के साथ एक विस्तृत आलेख प्रस्तुत है जो आपको परीक्षा की तैयारी में बहुत मदद करेगा।
रस: परिचय (परिभाषा, अंग, प्रकार एवं उदाहरण)
1. रस का परिचय (परिभाषा)
रस का शाब्दिक अर्थ है ‘आनंद’। काव्यशास्त्र में ‘रस’ का तात्पर्य कविता, कहानी, नाटक आदि को पढ़ने, सुनने या देखने से पाठक, श्रोता या दर्शक को मिलने वाले अलौकिक आनंद से है। जिस प्रकार भोजन में स्वाद होता है, उसी प्रकार काव्य में रस होता है। यह आनंद लौकिक (दुनियावी) न होकर एक विशेष प्रकार का आध्यात्मिक या अलौकिक होता है।
संस्कृत आचार्यों ने कहा है: “रसात्मकम् वाक्यम् काव्यम्” अर्थात् रसयुक्त वाक्य ही काव्य है। रस को काव्य की आत्मा माना जाता है।
2. रस के अंग
किसी भी रस की निष्पत्ति (उत्पत्ति) के लिए चार अंगों का होना अनिवार्य है। इन चारों अंगों के संयोग से ही रस की उत्पत्ति होती है:
- स्थायी भाव (Permanent Emotion): ये मनुष्य के हृदय में हमेशा सुप्त अवस्था में विद्यमान रहने वाले मूल और प्रधान भाव होते हैं। ये किसी उपयुक्त परिस्थिति को देखकर जाग्रत होते हैं और रस का रूप लेते हैं। प्रत्येक रस का अपना एक निश्चित स्थायी भाव होता है। ये स्थायी भाव ही रस के मूल आधार होते हैं।
- विभाव (Determinants / Excitants): स्थायी भावों को जाग्रत करने वाले कारण विभाव कहलाते हैं। ये वे वस्तुएँ, परिस्थितियाँ या व्यक्ति होते हैं जिनके कारण हृदय में स्थायी भाव उत्पन्न होता है। विभाव दो प्रकार के होते हैं:
- आलंबन विभाव (Object of Emotion): जिसके कारण स्थायी भाव उत्पन्न होता है, वह आलंबन विभाव कहलाता है। (जैसे- नायक-नायिका, शत्रु, भयानक वस्तु आदि)।
- उद्दीपन विभाव (Exciting Cause): स्थायी भाव को और अधिक तीव्र या उद्दीप्त करने वाली परिस्थितियाँ, वस्तुएँ या चेष्टाएँ उद्दीपन विभाव कहलाती हैं। (जैसे- चांदनी रात, एकांत स्थान, नायक-नायिका की चेष्टाएँ, भयानक वस्तु का स्वरूप आदि)।
- अनुभाव (Physical Manifestations): स्थायी भाव के जाग्रत होने पर आश्रय (जिसके मन में भाव उत्पन्न हुआ है) की जो शारीरिक चेष्टाएँ या भाव भंगिमाएँ होती हैं, वे अनुभाव कहलाती हैं। ये भावों के व्यक्त होने के शारीरिक लक्षण हैं। (जैसे- आँखों का लाल होना, होंठ का फड़कना, रोमांच, आँसू आना, पसीना आना, हँसना आदि)।
- संचारी भाव / व्यभिचारी भाव (Transient Emotions): ये वे भाव होते हैं जो स्थायी भाव के साथ-साथ मन में आते-जाते रहते हैं, बदलते रहते हैं। ये पानी के बुलबुलों की तरह क्षणिक होते हैं, जो स्थायी भाव को पुष्ट करते हैं और फिर विलीन हो जाते हैं। इनकी संख्या 33 मानी गई है। (जैसे- हर्ष, विषाद, चिंता, गर्व, शंका, जड़ता, श्रम, मरण आदि)।
3. रस के प्रकार एवं उदाहरण
आचार्य भरतमुनि ने नाट्यशास्त्र में 8 रसों का उल्लेख किया था। बाद में शांत रस को नौवाँ रस माना गया, जिससे रसों की संख्या नौ (नवरस) हो गई। कालांतर में वात्सल्य और भक्ति रस को भी मान्यता मिली, जिससे इनकी संख्या ग्यारह हो गई।
यहाँ सभी प्रमुख रसों का परिचय, उनके स्थायी भाव और उदाहरण दिए गए हैं:
1. श्रृंगार रस (Shringar Ras)
- स्थायी भाव: रति (प्रेम)
- परिभाषा: नायक और नायिका के मन में एक-दूसरे के प्रति प्रेम (रति) का भाव उत्पन्न होने पर श्रृंगार रस की निष्पत्ति होती है। इसमें सौंदर्य, प्रेम, मिलन और वियोग का वर्णन होता है। इसके दो भेद हैं:
- संयोग श्रृंगार: जहाँ नायक-नायिका के मिलन, संयोग, प्रेमपूर्ण चेष्टाओं का वर्णन हो।
- उदाहरण: “बतरस लालच लाल की, मुरली धरि लुकाइ। सौंह करै भौंहनि हँसै, दैन कहै नटि जाइ।।” (यहाँ कृष्ण की मुरली छिपाकर राधा का उनसे बात करने का आनंद और उनकी चंचल चेष्टाएँ संयोग श्रृंगार को दर्शाती हैं।)
- वियोग श्रृंगार (विप्रलंभ श्रृंगार): जहाँ नायक-नायिका के विरह, बिछोह, दुख और मिलन की आशा का वर्णन हो।
- उदाहरण: “निसिदिन बरसत नैन हमारे। सदा रहत पावस ऋतु हम पर जब ते स्याम सिधारे।।” (श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने पर गोपियों के नेत्रों से लगातार आँसू बहने और वियोग का वर्णन।)
- संयोग श्रृंगार: जहाँ नायक-नायिका के मिलन, संयोग, प्रेमपूर्ण चेष्टाओं का वर्णन हो।
2. हास्य रस (Hasya Ras)
- स्थायी भाव: हास (हँसी)
- परिभाषा: किसी व्यक्ति की विचित्र वेशभूषा, अटपटी बातें, अनोखी चेष्टाएँ, अजीब रूप या किसी प्रसंग को देखकर जो हँसी का भाव उत्पन्न होता है, वहाँ हास्य रस होता है।
- उदाहरण: “तंबूरा ले मंच पर बैठे प्रेमप्रताप। साज़ मिले पंद्रह मिनट, घंटा भर आलाप।।” (किसी व्यक्ति के मंच पर बैठकर तंबूरा लेकर अजीब तरह से गाने का वर्णन, जो हास्य उत्पन्न करता है।)
3. करुण रस (Karun Ras)
- स्थायी भाव: शोक (दुख)
- परिभाषा: किसी प्रिय वस्तु या व्यक्ति का नाश, अनिष्ट, वियोग, दुखद घटना या मृत्यु के कारण हृदय में जो करुणा, दया या शोक का भाव उत्पन्न होता है, वहाँ करुण रस होता है।
- उदाहरण: “अभी तो मुकुट बँधा था माथ, हुए कल ही हल्दी के हाथ। खुले भी न थे लाज के बोल, खिले थे चुम्बन शून्य कपोल॥” (अचानक पति के निधन पर नवविवाहिता का शोक और दुख का वर्णन।)
4. रौद्र रस (Raudra Ras)
- स्थायी भाव: क्रोध (गुस्सा)
- परिभाषा: विरोधी या अपमानजनक व्यक्ति, कार्य या परिस्थिति के प्रति क्रोध, आक्रोश, बदले या प्रतिशोध की भावना उत्पन्न होने पर रौद्र रस होता है।
- उदाहरण: “श्रीकृष्ण के सुन वचन, अर्जुन क्रोध से जलने लगे। सब शोक अपना भूलकर, करतल युगल मलने लगे।।” (अर्जुन का श्रीकृष्ण के वचन सुनकर अत्यधिक क्रोधित होना और युद्ध के लिए तैयार होना।)
5. वीर रस (Veer Ras)
- स्थायी भाव: उत्साह (जोश)
- परिभाषा: युद्ध, दान, दया, धर्म या किसी महान कार्य को करने के लिए हृदय में जो उत्साह, वीरता और शौर्य का भाव उत्पन्न होता है, वहाँ वीर रस होता है।
- उदाहरण: “मैं सत्य कहता हूँ सखे! सुकुमार मत जानो मुझे। यमराज से भी युद्ध में, प्रस्तुत सदा मानो मुझे।। (अभिमन्यु का युद्ध के लिए उत्साह और वीरता का वर्णन।)
6. भयानक रस (Bhayanak Ras)
- स्थायी भाव: भय (डर)
- परिभाषा: किसी डरावनी वस्तु, भयानक दृश्य, भयावह स्थिति या किसी अनिष्ट की आशंका से हृदय में जो भय का भाव उत्पन्न होता है, वहाँ भयानक रस होता है।
- उदाहरण: “एक ओर अजगरहिं लखि, एक ओर मृगराय। विकल बटोही बीच ही, परयो मूरछा खाय।।” (एक यात्री का एक ओर अजगर और दूसरी ओर शेर को देखकर डर से मूर्छित हो जाना।)
7. वीभत्स रस (Bibhats Ras)
- स्थायी भाव: जुगुप्सा (घृणा / ग्लानि)
- परिभाषा: किसी घृणित, अरुचिकर, बीभत्स, या रक्त-मांस से सने हुए दृश्य को देखकर या उसके बारे में सुनकर हृदय में जो घृणा, जुगुप्सा या ग्लानि का भाव उत्पन्न होता है, वहाँ वीभत्स रस होता है।
- उदाहरण: “आँतें भुजंग फनी सी लटकत, रुधिर सनेऊ सब सोवत। प्रेत पिशाच निशाचर डोलत, हाड़ माँस सब खोवत।।” (शव को खाते हुए प्रेतों और मांस-हड्डी से भरे भयानक दृश्य का वर्णन, जो घृणा उत्पन्न करता है।)
8. अद्भुत रस (Adbhut Ras)
- स्थायी भाव: विस्मय (आश्चर्य)
- परिभाषा: किसी अलौकिक, विचित्र, असाधारण या अविश्वसनीय वस्तु, घटना या दृश्य को देखकर हृदय में जो आश्चर्य, विस्मय या अचरज का भाव उत्पन्न होता है, वहाँ अद्भुत रस होता है।
- उदाहरण: “अखिल भुवन चर-अचर सब, हरि मुख में लखि मातु। चकित भई गदगद बचन, विकसित दृग पुलकातु।।” (माँ यशोदा का श्रीकृष्ण के मुख में संपूर्ण ब्रह्मांड देखकर आश्चर्यचकित होना।)
9. शांत रस (Shant Ras)
- स्थायी भाव: निर्वेद (वैराग्य / शांत)
- परिभाषा: संसार की नश्वरता, मोह-माया से विरक्ति, ईश्वरीय चिंतन या परम ज्ञान की प्राप्ति से हृदय में जो शांति, वैराग्य या उदासीनता का भाव उत्पन्न होता है, वहाँ शांत रस होता है।
- उदाहरण: “मन रे तन कागद का पुतला। लागै बूँद बिनसि जाए छिन में, गरब करे क्या इतना।।” (मनुष्य के शरीर को कागज़ के पुतले के समान नश्वर बताकर संसार से वैराग्य और शांति का भाव।)
10. वात्सल्य रस (Vatsalya Ras)
- स्थायी भाव: वत्सलता / स्नेह (संतान विषयक रति)
- परिभाषा: संतान (पुत्र-पुत्री), शिशु या छोटे बच्चों के प्रति माता-पिता, गुरु या किसी बड़े व्यक्ति के हृदय में जो प्रेम, दुलार, ममता या स्नेह का भाव उत्पन्न होता है, वहाँ वात्सल्य रस होता है।
- उदाहरण: “मैया कबहिं बढ़ैगी चोटी? किती बार मोहि दूध पियत भई, यह अजहूँ है छोटी।।” (बालकृष्ण का अपनी माता यशोदा से चोटी बढ़ने के बारे में पूछना और माता का उनके प्रति स्नेह।)
11. भक्ति रस (Bhakti Ras)
- स्थायी भाव: देव रति / भगवत विषयक रति (ईश्वर के प्रति प्रेम)
- परिभाषा: ईश्वर, देवी-देवताओं या आराध्य के प्रति हृदय में जो प्रेम, श्रद्धा, अनुराग, समर्पण और आसक्ति का भाव उत्पन्न होता है, वहाँ भक्ति रस होता है। यह शांत रस से भिन्न है क्योंकि इसमें वैराग्य के बजाय एक सगुण या निर्गुण सत्ता के प्रति गहन प्रेम होता है।
- उदाहरण: “मेरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरो न कोई। जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई।।” (मीराबाई का भगवान कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम और भक्ति।)
निष्कर्ष: रस काव्य की वह आत्मा है जो उसे सजीव बनाती है और पाठक के हृदय में विभिन्न भावनाओं को जाग्रत करती है। इन रसों और उनके अंगों का ज्ञान काव्य-सौंदर्य को समझने और परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए अत्यंत आवश्यक है। सभी रसों के स्थायी भाव, परिभाषाएँ और कम से कम एक-एक उदाहरण को अच्छी तरह याद कर लें।
स: एक नज़र में (आसान सारणी)
क्रम सं. | रस का नाम | स्थायी भाव | संक्षिप्त परिभाषा | उदाहरण |
---|---|---|---|---|
1. | श्रृंगार रस | रति (प्रेम) | नायक-नायिका के प्रेम, सौंदर्य और मिलन/विरह का वर्णन। | संयोग: “बतरस लालच लाल की, मुरली धरि लुकाइ।” वियोग: “निसिदिन बरसत नैन हमारे।” |
2. | हास्य रस | हास (हँसी) | विचित्र वेशभूषा, अटपटी बातों या चेष्टाओं से उत्पन्न हँसी। | “तंबूरा ले मंच पर बैठे प्रेमप्रताप, साज़ मिले पंद्रह मिनट, घंटा भर आलाप।।” |
3. | करुण रस | शोक (दुख) | प्रियजन के वियोग, अनिष्ट या मृत्यु से उत्पन्न गहरा दुख। | “अभी तो मुकुट बँधा था माथ, हुए कल ही हल्दी के हाथ।” |
4. | रौद्र रस | क्रोध (गुस्सा) | शत्रु या अपमान के कारण उत्पन्न तीव्र क्रोध। | “श्रीकृष्ण के सुन वचन, अर्जुन क्रोध से जलने लगे।” |
5. | वीर रस | उत्साह (जोश) | युद्ध, दान, दया या महान कार्य के प्रति जोश और वीरता। | “मैं सत्य कहता हूँ सखे! सुकुमार मत जानो मुझे।” |
6. | भयानक रस | भय (डर) | डरावनी वस्तु, दृश्य या स्थिति से उत्पन्न डर। | “एक ओर अजगरहिं लखि, एक ओर मृगराय, विकल बटोही बीच ही, परयो मूरछा खाय।।” |
7. | वीभत्स रस | जुगुप्सा (घृणा) | घृणित, अरुचिकर या रक्त-मांस से सने दृश्य से उत्पन्न घृणा। | “आँतें भुजंग फनी सी लटकत, रुधिर सनेऊ सब सोवत।” |
8. | अद्भुत रस | विस्मय (आश्चर्य) | अलौकिक, विचित्र या अविश्वसनीय वस्तु/घटना देखकर आश्चर्य। | “अखिल भुवन चर-अचर सब, हरि मुख में लखि मातु।” |
9. | शांत रस | निर्वेद (वैराग्य) | संसार की नश्वरता या ईश्वरीय ज्ञान से उत्पन्न शांति। | “मन रे तन कागद का पुतला, लागै बूँद बिनसि जाए छिन में।” |
10. | वात्सल्य रस | वत्सलता (स्नेह) | बच्चों के प्रति माता-पिता या बड़ों का प्रेम और दुलार। | “मैया कबहिं बढ़ैगी चोटी? किती बार मोहि दूध पियत भई।” |
11. | भक्ति रस | देव रति (ईश्वर प्रेम) | ईश्वर या आराध्य के प्रति अनन्य प्रेम, श्रद्धा और समर्पण। | “मेरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरो न कोई।” |
रस: महत्वपूर्ण बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs) – उत्तर सहित
प्रश्न 1: रस का शाब्दिक अर्थ क्या है?
(अ) दुख
(ब) आनंद
(स) क्रोध
(द) शांति
उत्तर: (ब) आनंद
प्रश्न 2: “रसात्मकम् वाक्यम् काव्यम्” यह कथन किससे संबंधित है?
(अ) छंद
(ब) अलंकार
(स) काव्य
(द) व्याकरण
उत्तर: (स) काव्य
प्रश्न 3: रस के कितने अंग होते हैं?
(अ) तीन
(ब) चार
(स) पाँच
(द) छह
उत्तर: (ब) चार
प्रश्न 4: हृदय में सुप्त अवस्था में विद्यमान रहने वाले मूल भाव क्या कहलाते हैं?
(अ) विभाव
(ब) अनुभाव
(स) संचारी भाव
(द) स्थायी भाव
उत्तर: (द) स्थायी भाव
प्रश्न 5: स्थायी भाव को तीव्र करने वाली परिस्थितियाँ या वस्तुएँ क्या कहलाती हैं?
(अ) आलंबन विभाव
(ब) उद्दीपन विभाव
(स) अनुभाव
(द) संचारी भाव
उत्तर: (ब) उद्दीपन विभाव
प्रश्न 6: स्थायी भाव के जागृत होने पर आश्रय की शारीरिक चेष्टाएँ क्या कहलाती हैं?
(अ) विभाव
(ब) अनुभाव
(स) संचारी भाव
(द) स्थायी भाव
उत्तर: (ब) अनुभाव
प्रश्न 7: संचारी भावों की संख्या कितनी मानी गई है?
(अ) 9
(ब) 11
(स) 33
(द) 49
उत्तर: (स) 33
प्रश्न 8: आचार्य भरतमुनि ने नाट्यशास्त्र में कितने रसों का उल्लेख किया है?
(अ) 7
(ब) 8
(स) 9
(द) 11
उत्तर: (ब) 8
प्रश्न 9: वर्तमान में हिंदी काव्यशास्त्र में सामान्यतः कितने रस माने जाते हैं (वात्सल्य और भक्ति रस को मिलाकर)?
(अ) 9
(ब) 10
(स) 11
(द) 12
उत्तर: (स) 11
प्रश्न 10: श्रृंगार रस का स्थायी भाव क्या है?
(अ) हास
(ब) रति
(स) शोक
(द) उत्साह
उत्तर: (ब) रति
प्रश्न 11: वीर रस का स्थायी भाव क्या है?
(अ) भय
(ब) विस्मय
(स) उत्साह
(द) क्रोध
उत्तर: (स) उत्साह
प्रश्न 12: करुण रस का स्थायी भाव क्या है?
(अ) हास
(ब) रति
(स) शोक
(द) उत्साह
उत्तर: (स) शोक
प्रश्न 13: शांत रस का स्थायी भाव क्या है?
(अ) क्रोध
(ब) उत्साह
(स) निर्वेद
(द) विस्मय
उत्तर: (स) निर्वेद
प्रश्न 14: वात्सल्य रस का स्थायी भाव क्या है?
(अ) देव रति
(ब) वत्सलता
(स) रति
(द) अनुराग
उत्तर: (ब) वत्सलता
प्रश्न 15: “निसिदिन बरसत नैन हमारे। सदा रहत पावस ऋतु हम पर जब ते स्याम सिधारे।।” इन पंक्तियों में कौन सा रस है?
(अ) श्रृंगार (संयोग)
(ब) श्रृंगार (वियोग)
(स) करुण
(द) शांत
उत्तर: (ब) श्रृंगार (वियोग)
प्रश्न 16: “तंबूरा ले मंच पर बैठे प्रेमप्रताप। साज़ मिले पंद्रह मिनट, घंटा भर आलाप।।” इन पंक्तियों में कौन सा रस है?
(अ) करुण
(ब) हास्य
(स) रौद्र
(द) वीर
उत्तर: (ब) हास्य
प्रश्न 17: “मैं सत्य कहता हूँ सखे! सुकुमार मत जानो मुझे। यमराज से भी युद्ध में, प्रस्तुत सदा मानो मुझे।।” इन पंक्तियों में कौन सा रस है?
(अ) भयानक
(ब) वीर
(स) रौद्र
(द) अद्भुत
उत्तर: (ब) वीर
प्रश्न 18: “एक ओर अजगरहिं लखि, एक ओर मृगराय। विकल बटोही बीच ही, परयो मूरछा खाय।।” इन पंक्तियों में कौन सा रस है?
(अ) भयानक
(ब) वीभत्स
(स) रौद्र
(द) करुण
उत्तर: (अ) भयानक
प्रश्न 19: “मैया कबहिं बढ़ैगी चोटी? किती बार मोहि दूध पियत भई, यह अजहूँ है छोटी।।” इन पंक्तियों में कौन सा रस है?
(अ) श्रृंगार
(ब) शांत
(स) वात्सल्य
(द) हास्य
उत्तर: (स) वात्सल्य
प्रश्न 20: “अखिल भुवन चर-अचर सब, हरि मुख में लखि मातु। चकित भई गदगद बचन, विकसित दृग पुलकातु।।” इन पंक्तियों में कौन सा रस है?
(अ) वीर
(ब) अद्भुत
(स) शांत
(द) भक्ति
उत्तर: (ब) अद्भुत