MP Board Class 10th Europ Me Rashtrvad Ka Uday :
यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय
राष्ट्रवाद की कल्पना
- फ्रेडरिक सॉरयू का चित्र (1848): फ्रांसीसी कलाकार फ्रेडरिक सॉरयू ने ‘जनतांत्रिक और सामाजिक गणतंत्रों’ से बने विश्व का एक काल्पनिक चित्र बनाया।

- इस चित्र में यूरोप और अमेरिका के लोग स्वतंत्रता की प्रतिमा की वंदना कर रहे हैं।
- यह चित्र राष्ट्र-राज्यों के उदय और निरंकुश शासनों के अंत की कल्पना करता है।
- राष्ट्र-राज्य की परिभाषा: एक ऐसा राज्य जिसमें शासकों के साथ-साथ अधिकांश नागरिकों में एक साझा पहचान, इतिहास और विरासत की भावना हो। यह भावना संघर्षों और नेताओं के प्रयासों से निर्मित हुई थी।
1. फ्रांसीसी क्रांति और राष्ट्र का विचार
1.1 राष्ट्रवाद की पहली अभिव्यक्ति
- 1789 की फ्रांसीसी क्रांति: राष्ट्रवाद की पहली स्पष्ट अभिव्यक्ति यहीं से शुरू हुई।
- प्रभुसत्ता का हस्तांतरण: क्रांति के बाद, प्रभुसत्ता राजतंत्र से निकलकर फ्रांसीसी नागरिकों के समूह में आ गई।
- राष्ट्र का गठन: यह घोषणा की गई कि अब लोगों द्वारा राष्ट्र का गठन होगा और वे ही उसकी नियति तय करेंगे।
1.2 सामूहिक पहचान बनाने हेतु उठाए गए कदम
फ्रांसीसी क्रांतिकारियों ने लोगों में सामूहिक पहचान की भावना पैदा करने के लिए अनेक कदम उठाए:
- पितृभूमि (la patrie) और नागरिक (le citoyen): इन विचारों ने एक संयुक्त समुदाय पर बल दिया, जिसे संविधान के तहत समान अधिकार प्राप्त थे।
- नया राष्ट्रीय ध्वज: पुराने राजध्वज की जगह नया तिरंगा झंडा चुना गया।
- नेशनल असेंबली: इस्टेट जेनरल का नाम बदलकर नेशनल असेंबली कर दिया गया और इसका चुनाव सक्रिय नागरिकों द्वारा किया जाने लगा।
- केंद्रीकृत प्रशासनिक व्यवस्था: सभी नागरिकों के लिए समान कानून बनाए गए।
- एकसमान भार व माप प्रणाली: आंतरिक आयात-निर्यात शुल्क समाप्त कर दिए गए और भार तथा नापने की एकसमान व्यवस्था लागू की गई।
- साझा भाषा: क्षेत्रीय बोलियों को हतोत्साहित कर पेरिस में बोली जाने वाली फ्रेंच को राष्ट्र की साझा भाषा बनाया गया।
1.3 क्रांति का यूरोप पर प्रभाव
- क्रांतिकारियों का लक्ष्य: फ्रांसीसी राष्ट्र का लक्ष्य यूरोप के लोगों को निरंकुश शासकों से मुक्त कराना था।
- जैकोबिन क्लब: फ्रांस की घटनाओं से प्रेरित होकर यूरोप के अन्य शहरों में छात्रों और शिक्षित मध्य-वर्गों ने जैकोबिन क्लबों की स्थापना की।
- राष्ट्रवाद का प्रसार: फ्रांसीसी सेनाएँ क्रांतिकारी युद्धों के साथ राष्ट्रवाद के विचार को विदेशों में ले जाने लगीं।
2. नेपोलियन का शासन और उसके सुधार
नेपोलियन ने फ्रांस में प्रजातंत्र को नष्ट कर राजतंत्र वापस स्थापित किया, लेकिन प्रशासनिक क्षेत्र में उसने कई क्रांतिकारी सुधार किए।
2.1 नागरिक संहिता 1804 (नेपोलियन की संहिता)
यह संहिता फ्रांस के साथ-साथ उन सभी क्षेत्रों में लागू की गई जो फ्रांस के नियंत्रण में थे। इसकी मुख्य विशेषताएँ थीं:
- जन्म पर आधारित विशेषाधिकार समाप्त: सभी को समान दर्जा दिया गया।
- कानून के समक्ष समानता: कानून की नजर में सब बराबर थे।
- संपत्ति के अधिकार को सुरक्षित बनाया गया।
2.2 अन्य प्रशासनिक सुधार
- सामंती व्यवस्था का अंत: किसानों को भू-दासत्व और जागीरदारी शुल्कों से मुक्ति दिलाई।
- शहरों में सुधार: कारीगरों के श्रेणी-संघों के नियंत्रण को हटा दिया गया।
- यातायात और संचार में सुधार: यातायात और संचार व्यवस्था को बेहतर बनाया गया, जिससे व्यापार में सहूलियत हुई।
2.3 नेपोलियन के शासन के प्रति यूरोपीय लोगों की प्रतिक्रिया
- प्रारंभिक प्रतिक्रिया (स्वागत): शुरुआत में हॉलैंड, स्विट्जरलैंड, ब्रसेल्स, मिलान जैसे कई स्थानों पर फ्रांसीसी सेनाओं का स्वतंत्रता का तोहफा देने वालों के रूप में स्वागत किया गया।
- बाद की प्रतिक्रिया (विरोध): यह शुरुआती उत्साह जल्द ही दुश्मनी में बदल गया।
- विरोध के कारण:
- बढ़े हुए कर (Taxation)।
- सेंसरशिप (Censorship)।
- यूरोप को जीतने के लिए फ्रेंच सेना में जबरन भर्ती।
- लोगों को लगा कि प्रशासनिक सुधारों से मिलने वाले फायदे इन नुकसानों से कहीं कम थे।
3. ‘राष्ट्र क्या है?’ – अर्न्स्ट रेनन के विचार
फ्रांसीसी दार्शनिक अर्न्स्ट रेनन ने राष्ट्र की एक अलग परिभाषा प्रस्तुत की।
- राष्ट्र की गलत धारणा: रेनन ने इस विचार की आलोचना की कि राष्ट्र समान भाषा, नस्ल, धर्म या क्षेत्र से बनता है।
- रेनन के अनुसार राष्ट्र की सही परिभाषा:
- एक राष्ट्र लंबे प्रयासों, त्याग और निष्ठा का चरम बिंदु होता है।
- इसका आधार शौर्य-वीरता से भरा अतीत, महान पुरुषों का गौरव और एक साझा सामाजिक पूँजी है।
- राष्ट्र का अस्तित्व “रोज़ होने वाला जनमत-संग्रह” (Daily Plebiscite) है।
- राष्ट्रों का अस्तित्व स्वतंत्रता की गारंटी है, क्योंकि अगर दुनिया में केवल एक कानून और एक मालिक होता तो स्वतंत्रता खत्म हो जाती।
4. यूरोप में राष्ट्रवाद का निर्माण
अठारहवीं सदी के मध्य में यूरोप में ‘राष्ट्र-राज्य’ नहीं थे। जर्मनी, इटली और स्विट्ज़रलैंड जैसे देश राजशाहियों, डचों और कैंटनों में बँटे हुए थे। लोगों की कोई सामूहिक पहचान या संस्कृति नहीं थी।
4.1 कुलीन वर्ग और नया मध्यवर्ग
- कुलीन वर्ग (Aristocracy):
- यह यूरोप का सबसे प्रभुत्वशाली, ज़मीन का मालिक वर्ग था।
- यह वर्ग एक साझा जीवन शैली से बंधा था और फ्रेंच भाषा का प्रयोग करता था।
- संख्या के लिहाज़ से यह एक छोटा समूह था।
- कृषक वर्ग (Peasantry):
- जनसंख्या का अधिकांश हिस्सा कृषकों का था।
- पूर्वी और मध्य यूरोप में विशाल जागीरों पर भूदास खेती करते थे।
- नया मध्यवर्ग (New Middle Class):
- औद्योगीकरण के कारण शहरों का विकास हुआ और नए वाणिज्यिक वर्गों का उदय हुआ।
- इस नए वर्ग में उद्योगपति, व्यापारी और सेवा क्षेत्र के लोग शामिल थे।
- इसी शिक्षित और उदारवादी मध्यवर्ग के बीच राष्ट्रीय एकता के विचार लोकप्रिय हुए।
4.2 उदारवादी राष्ट्रवाद के मायने
‘उदारवाद’ (Liberalism) शब्द लैटिन भाषा के मूल ‘liber’ पर आधारित है, जिसका अर्थ है ‘आज़ाद’। नए मध्य वर्गों के लिए उदारवाद का मतलब व्यक्ति के लिए आज़ादी और कानून के समक्ष सबकी बराबरी था।
- राजनीतिक रूप से:
- यह सहमति से बनी सरकार पर जोर देता था।
- यह निरंकुश शासक और पादरी वर्ग के विशेषाधिकारों की समाप्ति, संविधान तथा संसदीय सरकार का पक्षधर था।
- समस्या: उदारवादी प्रजातंत्र में मताधिकार (suffrage) केवल संपत्तिवान पुरुषों तक ही सीमित था। महिलाओं और संपत्ति-विहीन पुरुषों को राजनीतिक अधिकारों से वंचित रखा गया।
- आर्थिक क्षेत्र में:
- उदारवाद बाज़ारों की मुक्ति और वस्तुओं तथा पूँजी के आवागमन पर राज्य द्वारा लगाए गए नियंत्रणों को खत्म करने के पक्ष में था।
- समस्या: अनेक छोटे प्रदेश, अलग-अलग मुद्राएँ, और नाप-तौल की भिन्न प्रणालियाँ वाणिज्यिक विकास में बाधक थीं।
- समाधान: ज़ॉल्वेराइन (Zollverein):
- 1834 में प्रशा (Prussia) की पहल पर एक शुल्क संघ (customs union) स्थापित किया गया।
- इस संघ ने शुल्क अवरोधों को समाप्त कर दिया।
- मुद्राओं की संख्या दो कर दी (जो पहले तीस से ऊपर थी)।
- रेलवे के जाल ने गतिशीलता बढ़ाई और आर्थिक हितों को राष्ट्रीय एकीकरण का सहायक बनाया।
5. 1815 के बाद: एक नया रूढ़िवाद
1815 में नेपोलियन की हार के बाद, यूरोपीय सरकारें रूढ़िवाद की भावना से प्रेरित हुईं।
5.1 रूढ़िवाद की भावना
- रूढ़िवाद की परिभाषा: एक ऐसी राजनीतिक विचारधारा जो परंपरा, स्थापित संस्थानों और रिवाजों पर जोर देती है और क्रमिक विकास को प्राथमिकता देती है।
- प्रमुख मान्यताएँ: रूढ़िवादी मानते थे कि राज्य और समाज की स्थापित पारंपरिक संस्थाएँ (जैसे- राजतंत्र, चर्च, सामाजिक ऊँच-नीच, संपत्ति और परिवार) को बनाए रखना चाहिए।
- आधुनिकता का प्रभाव: अधिकतर रूढ़िवादी लोग क्रांति से पहले के दौर में वापसी नहीं चाहते थे। उन्होंने महसूस किया कि नेपोलियन द्वारा शुरू किए गए आधुनिकीकरण (जैसे- आधुनिक सेना, कुशल नौकरशाही, गतिशील अर्थव्यवस्था, सामंतवाद और भूदासत्व की समाप्ति) से राजतंत्र को और मज़बूत बनाया जा सकता है।
5.2 वियना कांग्रेस और संधि (1815)
- पृष्ठभूमि: ब्रिटेन, रूस, प्रशा और ऑस्ट्रिया जैसी यूरोपीय शक्तियों, जिन्होंने मिलकर नेपोलियन को हराया था, के प्रतिनिधि वियना में मिले।
- मेजबानी: इस सम्मेलन (कांग्रेस) की मेजबानी ऑस्ट्रिया के चांसलर ड्यूक मैटरनिख ने की।
- उद्देश्य: नेपोलियन युद्धों के दौरान हुए बदलावों को खत्म करना और एक नई रूढ़िवादी व्यवस्था कायम करना।
- वियना संधि के प्रमुख निर्णय:
- फ्रांस में बूढे वंश को सत्ता में बहाल किया गया।
- फ्रांस की सीमाओं पर कई राज्य कायम कर दिए गए ताकि भविष्य में फ्रांस विस्तार न कर सके (जैसे- उत्तर में नीदरलैंड्स का राज्य स्थापित किया गया)।
- प्रशा को उसकी पश्चिमी सीमाओं पर महत्वपूर्ण नए इलाके दिए गए।
- ऑस्ट्रिया को उत्तरी इटली का नियंत्रण सौंपा गया।
- रूस को पोलैंड का एक हिस्सा दिया गया।
- नेपोलियन द्वारा स्थापित 39 राज्यों के जर्मन महासंघ को बरकरार रखा गया।
5.3 रूढ़िवादी शासन की प्रकृति
- निरंकुश शासन: 1815 में स्थापित रूढ़िवादी शासन व्यवस्थाएँ निरंकुश थीं।
- आलोचना के प्रति असहिष्णुता: वे आलोचना और असहमति बर्दाश्त नहीं करती थीं।
- सेंसरशिप: ज़्यादातर सरकारों ने सेंसरशिप के नियम बनाए जिनका उद्देश्य अखबारों, किताबों, नाटकों और गीतों में व्यक्त उन बातों पर नियंत्रण लगाना था जिनसे फ्रांसीसी क्रांति से जुड़े स्वतंत्रता और मुक्ति के विचार झलकते थे।
- उदारवादियों की प्रतिक्रिया: फ्रांसीसी क्रांति की स्मृति उदारवादियों को लगातार प्रेरित कर रही थी। नई रूढ़िवादी व्यवस्था के आलोचक उदारवादी-राष्ट्रवादियों द्वारा उठाया गया एक मुख्य मुद्दा था – प्रेस की आज़ादी।
6. क्रांतिकारी
1815 के बाद दमन के भय ने अनेक उदारवादी-राष्ट्रवादियों को भूमिगत कर दिया। उन्होंने क्रांतिकारियों को प्रशिक्षण देने और विचारों का प्रसार करने के लिए गुप्त संगठन बनाए।
- क्रांतिकारी होने का मतलब: राजतंत्रीय व्यवस्थाओं का विरोध करना और स्वतंत्रता व मुक्ति के लिए संघर्ष करना।
- प्रमुख क्रांतिकारी – ज्युसेपी मेत्सिनी (Giuseppe Mazzini):
- जन्म: 1807 में जेनोआ (इटली) में।
- सदस्यता: कार्बोनारी नामक गुप्त संगठन के सदस्य बने।
- देश निकाला: 24 साल की उम्र में लिगुरिया में क्रांति करने के लिए उन्हें देश से निकाल दिया गया।
- संगठनों की स्थापना:
- यंग इटली (Young Italy): मार्सेई में स्थापित।
- यंग यूरोप (Young Europe): बर्न में स्थापित, जिसके सदस्य पोलैंड, फ्रांस, इटली और जर्मन राज्यों के समान विचार रखने वाले युवा थे।
- विचारधारा: मेत्सिनी का विश्वास था कि ईश्वर की मर्जी के अनुसार राष्ट्र ही मनुष्यों की प्राकृतिक इकाई थी। वे इटली को छोटे-छोटे राज्यों के पैबंद की तरह नहीं, बल्कि एक एकीकृत गणराज्य बनाना चाहते थे।
- प्रभाव: उनके मॉडल की देखा-देखी जर्मनी, फ्रांस, स्विट्ज़रलैंड और पोलैंड में गुप्त संगठन कायम हुए।
- मैटरनिख द्वारा टिप्पणी: ड्यूक मैटरनिख ने उसे ‘हमारी सामाजिक व्यवस्था का सबसे खतरनाक दुश्मन’ बताया।
7. क्रांतियों का युग: 1830-1848
जैसे-जैसे रूढ़िवादी व्यवस्थाओं ने अपनी ताकत को मजबूत किया, यूरोप के अनेक क्षेत्रों में उदारवाद और राष्ट्रवाद को क्रांति से जोड़कर देखा जाने लगा।
- नेतृत्व: इन क्रांतियों का नेतृत्व शिक्षित मध्यवर्गीय विशिष्ट लोगों ने किया (प्रोफेसर, स्कूली अध्यापक, क्लर्क, आदि)।
7.1 जुलाई क्रांति (फ्रांस, 1830)
- घटना: उदारवादी क्रांतिकारियों ने बूढे राजा, जिन्हें 1815 के बाद सत्ता में बहाल किया गया था, को उखाड़ फेंका।
- परिणाम: एक संवैधानिक राजतंत्र स्थापित किया गया जिसका अध्यक्ष लुई फिलिप था।
- मैटरनिख की टिप्पणी: “जब फ्रांस छींकता है तो बाकी यूरोप को सर्दी-जुकाम हो जाता है।”
- प्रभाव: इस क्रांति से ब्रसेल्स में भी विद्रोह भड़क गया, जिसके फलस्वरूप यूनाइटेड किंगडम ऑफ़ द नीदरलैंड्स से बेल्जियम अलग हो गया।
7.2 यूनान का स्वतंत्रता संग्राम (1821-1832)
- पृष्ठभूमि: पंद्रहवीं सदी से यूनान ऑटोमन साम्राज्य का हिस्सा था।
- संघर्ष का आरंभ: क्रांतिकारी राष्ट्रवाद की प्रगति से यूनानियों ने आज़ादी के लिए 1821 में संघर्ष आरंभ किया।
- समर्थन:
- निर्वासन में रह रहे यूनानियों का।
- पश्चिमी यूरोप के लोगों का जो प्राचीन यूनानी संस्कृति (Hellenism) के प्रति सहानुभूति रखते थे।
- कवियों और कलाकारों ने यूनान को ‘यूरोपीय सभ्यता का पालना’ बताकर प्रशंसा की।
- लॉर्ड बायरन: अंग्रेज़ कवि लॉर्ड बायरन ने धन इकट्ठा किया और बाद में युद्ध में लड़ने भी गए, जहाँ 1824 में बुखार से उनकी मृत्यु हो गई।
- परिणाम: 1832 की कुस्तुन्तुनिया की संधि (Treaty of Constantinople) ने यूनान को एक स्वतंत्र राष्ट्र की मान्यता दी।
8. रुमानी कल्पना और राष्ट्रीय भावना
राष्ट्रवाद का विकास केवल युद्धों और क्षेत्रीय विस्तार से नहीं हुआ। संस्कृति (कला, काव्य, कहानियों और संगीत) ने भी राष्ट्रवादी भावनाओं को गढ़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
8.1 रुमानीवाद (Romanticism)
- परिभाषा: एक ऐसा सांस्कृतिक आंदोलन जो एक खास तरह की राष्ट्रीय भावना का विकास करना चाहता था।
- मुख्य विचार: रुमानी कलाकारों और कवियों ने तर्क-वितर्क और विज्ञान की आलोचना की और उसकी जगह भावनाओं, अंतर्दृष्टि और रहस्यवादी भावनाओं पर जोर दिया।
- राष्ट्र का आधार: उनका प्रयास था कि एक साझा-सामूहिक विरासत की अनुभूति और एक साझा सांस्कृतिक अतीत को राष्ट्र का आधार बनाया जाए।
8.2 लोक संस्कृति की भूमिका
- योहान गॉटफ्रीड: जर्मन दार्शनिक ने दावा किया कि सच्ची जर्मनी संस्कृति उसके आम लोगों (das volk) में निहित थी।
- राष्ट्र की सच्ची आत्मा (volkgeist): लोकगीतों, जन-काव्य और लोकनृत्यों से प्रकट होती थी। इसलिए इन स्वरूपों को एकत्र करना राष्ट्र निर्माण के लिए आवश्यक था।
- पोलैंड का उदाहरण: संगीत और भाषा के ज़रिए राष्ट्रीय भावना जीवित रखी गई।
- कैरोल कुर्पिंस्की: ने राष्ट्रीय संघर्ष का अपने ऑपेरा और संगीत से गुणगान किया और पोलेनेस और माजुरका जैसे लोकनृत्यों को राष्ट्रीय प्रतीकों में बदल दिया।
- भाषा: रूसी कब्जे के बाद पोलिश भाषा को स्कूलों से हटाकर रूसी भाषा को जबरन लादा गया। 1831 में सशस्त्र विद्रोह हुआ, जिसे कुचल दिया गया। इसके बाद पोलिश भाषा रूसी प्रभुत्व के विरुद्ध संघर्ष के प्रतीक के रूप में देखी जाने लगी।
9. भूख, कठिनाइयाँ और जन विद्रोह
1830 का दशक यूरोप में भारी आर्थिक कठिनाइयाँ लेकर आया।
- कारण:
- जनसंख्या में वृद्धि: उन्नीसवीं सदी के प्रथम भाग में जनसंख्या में जबरदस्त वृद्धि हुई, जिससे बेरोज़गारी बढ़ी।
- प्रतिस्पर्धा: नगरों के लघु उत्पादकों को इंग्लैंड से आयातित मशीन से बने सस्ते कपड़े से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा था।
- सामंती शुल्क: जिन इलाकों में कुलीन वर्ग सत्ता में था, वहाँ कृषक सामंती शुल्कों और जिम्मेदारियों के बोझ तले दबे थे।
- फसल का खराब होना: खाने-पीने की चीजों के मूल्य बढ़ने या फसल खराब होने से शहरों और गाँवों में व्यापक गरीबी फैल जाती थी।
- 1848 का विद्रोह (फ्रांस):
- खाने-पीने की कमी और व्यापक बेरोजगारी से पेरिस के लोग सड़कों पर उतर आए।
- राजा लुई फिलिप को भागने पर मजबूर किया गया।
- नेशनल असेंबली ने एक गणतंत्र की घोषणा करते हुए 21 वर्ष से ऊपर सभी वयस्क पुरुषों को मताधिकार प्रदान किया और काम के अधिकार की गारंटी दी।
- 1845 सिलेसिया में बुनकरों का विद्रोह:
- बुनकरों ने उन ठेकेदारों के खिलाफ विद्रोह कर दिया जो कच्चा माल देकर निर्मित कपड़ा लेते थे परंतु दाम बहुत कम देते थे।
- 4 जून को बुनकरों की भीड़ ने ठेकेदार की कोठी पर हमला कर दिया।
- टकराव में ग्यारह बुनकरों को गोली मार दी गई।
10. 1848: उदारवादियों की क्रांति
1848 में जब किसान-मजदूर विद्रोह कर रहे थे, तब उसके समानांतर पढ़े-लिखे मध्यवर्गों की एक क्रांति भी हो रही थी।
- माँग: उदारवादी मध्यवर्ग ने संविधानवाद की माँग को राष्ट्रीय एकीकरण की माँग से जोड़ दिया। वे एक राष्ट्र-राज्य के निर्माण की माँग कर रहे थे जो संविधान, प्रेस की स्वतंत्रता और संगठन बनाने की आज़ादी जैसे संसदीय सिद्धांतों पर आधारित हो।
10.1 फ्रैंकफर्ट संसद (जर्मनी)
- घटना: जर्मन इलाकों में बड़ी संख्या में राजनीतिक संगठनों ने फ्रैंकफर्ट शहर में मिल कर एक सर्व-जर्मन नेशनल असेंबली के पक्ष में मतदान का फैसला लिया।
- 18 मई 1848: 831 निर्वाचित प्रतिनिधियों ने फ्रैंकफर्ट संसद में अपना स्थान ग्रहण किया, जो सेंट पॉल चर्च में आयोजित थी।
- उद्देश्य: उन्होंने एक जर्मन राष्ट्र के लिए एक संविधान का प्रारूप तैयार किया। इस राष्ट्र की अध्यक्षता एक ऐसे राजा को सौंपी गई जिसे संसद के अधीन रहना था।
- परिणाम (असफलता):
- जब प्रतिनिधियों ने प्रशा के राजा फ्रेडरिक विल्हेम चतुर्थ को ताज पहनाने की पेशकश की तो उसने उसे अस्वीकार कर उन राजाओं का साथ दिया जो निर्वाचित सभा के विरोधी थे।
- संसद का सामाजिक आधार कमजोर हो गया क्योंकि मध्य वर्गों का प्रभाव अधिक था, जिन्होंने मजदूरों और कारीगरों की माँगों का विरोध किया, जिससे वे उनका समर्थन खो बैठे।
- अंत में सैनिकों को बुलाया गया और असेंबली भंग होने पर मजबूर हुई।
10.2 क्रांति का परिणाम और प्रभाव
- तत्कालिक परिणाम: रूढ़िवादी ताकतें 1848 में उदारवादी आंदोलनों को दबा पाने में कामयाब हुईं।
- दीर्घकालिक प्रभाव:
- पुरानी व्यवस्था बहाल नहीं कर पाईं।
- राजाओं को यह समझ आने लगा कि उदारवादी-राष्ट्रवादी क्रांतिकारियों को रियायतें देकर ही क्रांति और दमन के चक्र को समाप्त किया जा सकता था।
- मध्य और पूर्वी यूरोप की निरंकुश राजशाहियों ने उन परिवर्तनों को आरंभ किया जो पश्चिमी यूरोप में 1815 से पहले हो चुके थे।
- हैब्सबर्ग अधिकार वाले क्षेत्रों और रूस में भूदासत्व और बंधुआ मजदूरी समाप्त कर दी गई।
- हैब्सबर्ग शासकों ने हंगरी के लोगों को ज़्यादा स्वायत्तता प्रदान की।
11. जर्मनी और इटली का निर्माण
1848 के बाद, राष्ट्रवाद का जनतंत्र और क्रांति से अलगाव होने लगा। रूढ़िवादी ताकतों ने अक्सर राष्ट्रवादी भावनाओं का इस्तेमाल राज्य की सत्ता बढ़ाने और राजनीतिक प्रभुत्व हासिल करने के लिए किया।
11.1 जर्मनी का एकीकरण (1866-1871)
- पृष्ठभूमि: राष्ट्रवादी भावनाएँ मध्यवर्गीय जर्मन लोगों में काफी व्याप्त थीं, लेकिन राष्ट्र निर्माण की यह उदारवादी पहल राजशाही और फौज की ताकत ने मिलकर दबा दी।
- नेतृत्व: प्रशा (Prussia) ने राष्ट्रीय एकीकरण के आंदोलन का नेतृत्व संभाल लिया।
- प्रमुख व्यक्ति: ऑटो वॉन बिस्मार्क (Otto von Bismarck):
- प्रशा के प्रमुख मंत्री बिस्मार्क इस प्रक्रिया के जनक थे।
- उन्होंने प्रशा की सेना और नौकरशाही की मदद ली।
- प्रमुख युद्ध: सात वर्ष के दौरान ऑस्ट्रिया, डेनमार्क और फ्रांस से तीन युद्धों में प्रशा की जीत हुई और एकीकरण की प्रक्रिया पूरी हुई।
- परिणाम: जनवरी 1871 में, वर्साय में हुए एक समारोह में प्रशा के राजा विलियम प्रथम को जर्मनी का सम्राट घोषित किया गया।
- नए जर्मनी की विशेषताएँ:
- नए राज्य ने जर्मनी की मुद्रा, बैंकिंग और कानूनी तथा न्यायिक व्यवस्थाओं के आधुनिकीकरण पर काफी जोर दिया।
- प्रशा द्वारा उठाए गए कदम और उसकी कार्रवाइयाँ बाकी जर्मनी के लिए एक मॉडल बनीं।
11.2 इटली का एकीकरण (1859-1870)
- पृष्ठभूमि: उन्नीसवीं सदी के मध्य में इटली सात राज्यों में बँटा हुआ था, जिनमें से केवल एक–सार्डिनिया-पीडमाउंट–में एक इतालवी राजघराने का शासन था।
- प्रारंभिक प्रयास: ज्युसेपी मेत्सिनी ने 1830 के दशक में एकीकृत इतालवी गणराज्य के लिए एक कार्यक्रम प्रस्तुत करने की कोशिश की थी, लेकिन 1831 और 1848 में क्रांतिकारी विद्रोह असफल हो गए।
- नेतृत्व: सार्डिनिया-पीडमाउंट के शासक विक्टर इमेनुएल द्वितीय ने इतालवी राज्यों को जोड़ने की जिम्मेदारी संभाली।
- प्रमुख व्यक्ति:
- मंत्री प्रमुख कावूर (Cavour): उसने इटली के प्रदेशों को एकीकृत करने वाले आंदोलन का नेतृत्व किया। वह न तो एक क्रांतिकारी था और न ही जनतंत्र में विश्वास रखने वाला। फ्रांस के साथ की गई एक चतुर कूटनीतिक संधि के माध्यम से, कावूर ने 1859 में ऑस्ट्रियाई बलों को हरा पाने में कामयाबी हासिल की।
- ज्युसेपी गैरीबॉल्डी (Giuseppe Garibaldi): उसके नेतृत्व में भारी संख्या में सशस्त्र स्वयंसेवकों ने इस युद्ध में हिस्सा लिया। 1860 में वे दक्षिण इटली में प्रवेश कर गए और स्पेनी शासकों को हटाने में स्थानीय किसानों का समर्थन पाने में सफल रहे।
- परिणाम: 1861 में इमेनुएल द्वितीय को एकीकृत इटली का राजा घोषित किया गया।
- चुनौती: इटली के अधिकांश निवासी, जिनमें निरक्षरता की दर काफी ऊँची थी, अभी भी उदारवादी-राष्ट्रवादी विचारधारा से अनजान थे।
12. ब्रिटेन की अजीब दास्तान
ब्रिटेन में राष्ट्र-राज्य का निर्माण अचानक हुई कोई उथल-पुथल या क्रांति का परिणाम नहीं था, बल्कि यह एक लंबी चलने वाली प्रक्रिया का नतीजा था।
- प्रारंभिक पहचान: अठारहवीं सदी के पहले ब्रितानी राष्ट्र था ही नहीं। यहाँ रहने वाले लोगों (अंग्रेज़, वेल्श, स्कॉट या आयरिश) की अपनी खास सांस्कृतिक और राजनीतिक परंपराएँ थीं।
- आंग्ल राष्ट्र का विकास: जैसे-जैसे आंग्ल राष्ट्र (English nation) की धन-दौलत, अहमियत और सत्ता में वृद्धि हुई, वह द्वीपसमूह के अन्य राष्ट्रों पर अपना प्रभुत्व बढ़ाने में सफल हुआ।
- एक्ट ऑफ़ यूनियन (1707):
- इंग्लैंड और स्कॉटलैंड के बीच इस एक्ट से ‘यूनाइटेड किंगडम ऑफ़ ग्रेट ब्रिटेन’ का गठन हुआ।
- इससे इंग्लैंड, व्यवहार में स्कॉटलैंड पर अपना प्रभुत्व जमा पाया।
- स्कॉटलैंड पर प्रभाव:
- स्कॉटलैंड की खास संस्कृति और राजनीतिक संस्थानों को योजनाबद्ध तरीके से दबाया गया।
- स्कॉटिश हाइलैंड्स के निवासियों को अपनी गेलिक भाषा बोलने या अपनी राष्ट्रीय पोशाक पहनने की मनाही थी।
- आयरलैंड का विलय:
- आयरलैंड कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट धार्मिक गुटों में बँटा हुआ था। अंग्रेज़ों ने प्रोटेस्टेंटों को बहुसंख्यक कैथोलिक देश पर प्रभुत्व बढ़ाने में सहायता की।
- 1798 में वोल्फ टोन और उसकी यूनाइटेड आयरिशमेन की अगुवाई में हुए असफल विद्रोह के बाद, 1801 में आयरलैंड को बलपूर्वक यूनाइटेड किंगडम में शामिल कर लिया गया।
- नए ‘ब्रितानी राष्ट्र’ का निर्माण:
- एक नए ‘ब्रितानी राष्ट्र’ का निर्माण किया गया जिस पर हावी आंग्ल संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया गया।
- नए ब्रिटेन के प्रतीक-चिह्नों, जैसे- ब्रितानी झंडा (यूनियन जैक) और राष्ट्रीय गान (गॉड सेव अवर नोबल किंग) को खूब बढ़ावा दिया गया।
13. राष्ट्र की दृश्य-कल्पना
अठारहवीं और उन्नीसवीं सदी में कलाकारों ने राष्ट्र का मानवीकरण करके उसे एक चेहरा प्रदान किया।
- राष्ट्र का नारी रूप: राष्ट्रों को नारी भेष में प्रस्तुत किया जाने लगा। यह नारी की छवि राष्ट्र का रूपक (allegory) बन गई।
- फ्रांसीसी क्रांति के प्रतीक: कलाकारों ने स्वतंत्रता (लाल टोपी या टूटी जंजीर), न्याय (आँखों पर पट्टी बंधी और तराजू लिए महिला) और गणतंत्र जैसे विचारों को व्यक्त करने के लिए नारी रूपकों का प्रयोग किया।
- प्रतीकों के अर्थ:| गुण | महत्त्व ||—|—|| टूटी हुई बेड़ियाँ | आज़ादी मिलना || बाज़-छाप कवच | जर्मन साम्राज्य की प्रतीक-शक्ति || बलूत पत्तियों का मुकुट | बहादुरी || तलवार | मुकाबले की तैयारी || तलवार पर लिपटी जैतून की डाली | शांति की चाह || काला, लाल और सुनहरा तिरंगा | 1848 में उदारवादी-राष्ट्रवादियों का झंडा, जिसे जर्मन राज्यों के ड्यूक्स ने प्रतिबंधित घोषित कर दिया || उगते सूर्य की किरणें | एक नए युग का सूत्रपात |
14. राष्ट्रवाद और साम्राज्यवाद
उन्नीसवीं सदी के अंत तक राष्ट्रवाद का आदर्शवादी और उदारवादी-जनतांत्रिक स्वभाव बदल गया और यह सीमित लक्ष्यों वाला संकीर्ण सिद्धांत बन गया।
- राष्ट्रवादी समूहों में टकराव: राष्ट्रवादी समूह एक-दूसरे के प्रति अनुदार होते चले गए और लड़ने के लिए हमेशा तैयार रहते थे।
- साम्राज्यवादी उद्देश्यों के लिए उपयोग: प्रमुख यूरोपीय शक्तियों ने अपने साम्राज्यवादी उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अधीन लोगों की राष्ट्रवादी आकांक्षाओं का इस्तेमाल किया।
14.1 बाल्कन क्षेत्र में तनाव
- तनाव का स्रोत: 1871 के बाद यूरोप में गंभीर राष्ट्रवादी तनाव का स्रोत बाल्कन क्षेत्र था।
- भौगोलिक और जातीय भिन्नता: इस क्षेत्र में आधुनिक रोमानिया, बुल्गारिया, अल्बेनिया, यूनान, मेसिडोनिया, क्रोएशिया, बोस्निया-हर्जेगोविना, स्लोवेनिया, सर्बिया और मॉन्टेनीग्रो शामिल थे। यहाँ के निवासियों को आमतौर पर स्लाव पुकारा जाता था।
- तनाव के कारण:
- ऑटोमन साम्राज्य का विघटन: बाल्कन क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा ऑटोमन साम्राज्य के नियंत्रण में था। रुमानी राष्ट्रवाद के विचारों के फैलने और ऑटोमन साम्राज्य के विघटन से स्थिति काफी विस्फोटक हो गई।
- स्वतंत्रता की घोषणा: एक के बाद एक उसके अधीन यूरोपीय राष्ट्रीयताएँ उसके चंगुल से निकल कर स्वतंत्रता की घोषणा करने लगीं।
- आपसी ईर्ष्या: बाल्कन राज्य एक-दूसरे से भारी ईर्ष्या करते थे और हर एक राज्य अपने लिए ज़्यादा से ज़्यादा इलाका हथियाने की उम्मीद रखता था।
- बड़ी शक्तियों की प्रतिस्पर्धा: यूरोपीय शक्तियों (रूस, जर्मनी, इंग्लैंड, ऑस्ट्रो-हंगरी) के बीच व्यापार, उपनिवेशों और सैन्य ताकत के लिए गहरी प्रतिस्पर्धा थी। हर ताकत बाल्कन पर अन्य शक्तियों की पकड़ को कमजोर करके क्षेत्र में अपने प्रभाव को बढ़ाना चाहती थी।
- परिणाम: इस प्रतिस्पर्धा के कारण इस इलाके में कई युद्ध हुए और अंततः प्रथम विश्व युद्ध हुआ।
14.2 साम्राज्यवाद और राष्ट्रवाद का वैश्विक प्रभाव
- महाविपदा: साम्राज्यवाद से जुड़ कर राष्ट्रवाद 1914 में यूरोप को महाविपदा की ओर ले गया।
- साम्राज्यवाद विरोधी आंदोलन: विश्व के अनेक देश, जिनका यूरोपीय शक्तियों ने औपनिवेशीकरण किया था, साम्राज्यवादी प्रभुत्व का विरोध करने लगे। ये सभी स्वतंत्र राष्ट्र-राज्य का निर्माण करने के लिए संघर्ष कर रहे थे।
- राष्ट्रवाद का नया रूप: हर जगह लोगों ने अपनी तरह का विशिष्ट राष्ट्रवाद विकसित किया।
- सार्वभौम विचार: यह विचार कि समाजों को ‘राष्ट्र-राज्यों’ में गठित किया जाना चाहिए, अब स्वाभाविक और सार्वभौम मान लिया गया।
अभ्यास – प्रश्न और उत्तर
इस दस्तावेज़ में, आपके अध्याय “यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय” से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं। ये उत्तर आपकी परीक्षा की तैयारी में मदद करेंगे और ये सभी उत्तर आपके द्वारा पहले बनाए गए नोट्स पर आधारित हैं।
प्रश्न 1: निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखें:
(क) ज्युसेपी मेत्सिनी
- ज्युसेपी मेत्सिनी इटली का एक महान क्रांतिकारी था, जिसका जन्म 1807 में जेनोआ में हुआ था।
- वह कार्बोनारी नामक गुप्त संगठन का सदस्य बना और 24 साल की उम्र में लिगुरिया में क्रांति करने के कारण उसे देश से निकाल दिया गया।
- उसने दो प्रमुख भूमिगत संगठनों की स्थापना की: मार्सेई में यंग इटली और बर्न में यंग यूरोप।
- मेत्सिनी का मानना था कि ईश्वर की मर्जी के अनुसार राष्ट्र ही मनुष्यों की प्राकृतिक इकाई है। वह इटली को छोटे-छोटे राज्यों के पैबंद की तरह नहीं, बल्कि एक एकीकृत गणराज्य के रूप में देखना चाहता था।
- उसके विचारों से प्रभावित होकर जर्मनी, फ्रांस, स्विट्ज़रलैंड और पोलैंड में भी गुप्त संगठन बनाए गए। ऑस्ट्रिया के चांसलर मैटरनिख ने उसे ‘हमारी सामाजिक व्यवस्था का सबसे खतरनाक दुश्मन’ बताया था।
(ख) काउंट कैमिलो दे कावूर
- काउंट कैमिलो दे कावूर सार्डिनिया-पीडमाउंट राज्य का मंत्री प्रमुख था, जिसने इटली के एकीकरण के आंदोलन का नेतृत्व किया।
- वह न तो एक क्रांतिकारी था और न ही जनतंत्र में विश्वास रखता था। वह इतालवी से कहीं बेहतर फ्रेंच बोलता था।
- उसने फ्रांस के साथ एक चतुर कूटनीतिक संधि की, जिसके कारण 1859 में सार्डिनिया-पीडमाउंट ऑस्ट्रियाई बलों को हराने में कामयाब हुआ।
- कावूर को इटली के एकीकरण का ‘मस्तिष्क’ माना जाता है, क्योंकि उसने अपनी कूटनीति से इटली के एकीकरण का मार्ग प्रशस्त किया।
(ग) यूनानी स्वतंत्रता युद्ध
- यह एक सफल स्वतंत्रता संग्राम था जिसने पूरे यूरोप के शिक्षित अभिजात वर्ग में राष्ट्रीय भावनाओं का संचार किया।
- पंद्रहवीं सदी से यूनान ऑटोमन साम्राज्य का हिस्सा था। 1821 में यूनानियों ने अपनी आज़ादी के लिए संघर्ष शुरू किया।
- इस संघर्ष को पश्चिमी यूरोप के लोगों का भी समर्थन मिला जो प्राचीन यूनानी संस्कृति के प्रति सहानुभूति रखते थे। कवियों और कलाकारों ने यूनान को ‘यूरोपीय सभ्यता का पालना’ बताकर जनमत जुटाया।
- अंग्रेज़ कवि लॉर्ड बायरन ने धन इकट्ठा किया और युद्ध लड़ने भी गए, जहाँ 1824 में बुखार से उनकी मृत्यु हो गई।
- अंततः, 1832 की कुस्तुन्तुनिया की संधि ने यूनान को एक स्वतंत्र राष्ट्र की मान्यता दी।(घ) फ्रैंकफर्ट संसद
- यह एक सर्व-जर्मन नेशनल असेंबली थी, जिसका गठन 1848 में जर्मन मध्यवर्ग के लोगों द्वारा किया गया था।
- 18 मई 1848 को, 831 निर्वाचित प्रतिनिधियों ने सेंट पॉल चर्च में आयोजित इस संसद में अपना स्थान ग्रहण किया।
- इसका मुख्य उद्देश्य एक जर्मन राष्ट्र के लिए संविधान का प्रारूप तैयार करना था, जिसकी अध्यक्षता एक ऐसे राजा को करनी थी जो संसद के अधीन रहे।
- जब प्रशा के राजा फ्रेडरिक विल्हेम चतुर्थ को ताज पहनाने की पेशकश की गई, तो उसने इसे अस्वीकार कर दिया।
- मध्यम वर्ग का प्रभाव अधिक होने के कारण मजदूरों और कारीगरों का समर्थन खो देने और कुलीन वर्ग के विरोध के कारण संसद का आधार कमजोर पड़ गया और अंत में सेना द्वारा इसे भंग कर दिया गया।
(ङ) राष्ट्रवादी संघर्षों में महिलाओं की भूमिका
- राष्ट्रवादी संघर्षों में महिलाओं ने बहुत सक्रिय भूमिका निभाई, हालांकि उन्हें राजनीतिक अधिकार नहीं दिए गए।
- महिलाओं ने अपने राजनीतिक संगठन स्थापित किए, अखबार शुरू किए, और राजनीतिक बैठकों तथा प्रदर्शनों में हिस्सा लिया।
- इसके बावजूद, उन्हें मताधिकार से वंचित रखा गया। जब फ्रैंकफर्ट संसद की सभा आयोजित की गई, तब महिलाओं को केवल दर्शकों की हैसियत से दर्शक-दीर्घा में खड़े होने दिया गया।
प्रश्न 2: फ्रांसीसी लोगों के बीच सामूहिक पहचान का भाव पैदा करने के लिए फ्रांसीसी क्रांतिकारियों ने क्या कदम उठाए?
फ्रांसीसी क्रांतिकारियों ने लोगों में सामूहिक पहचान की भावना पैदा करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए:
- पितृभूमि (la patrie) और नागरिक (le citoyen): इन विचारों के माध्यम से एक संयुक्त समुदाय की भावना पैदा की गई, जिसे संविधान के तहत समान अधिकार प्राप्त थे।
- नया राष्ट्रीय ध्वज: पुराने राजध्वज की जगह नया तिरंगा झंडा चुना गया।
- नेशनल असेंबली: इस्टेट जेनरल का नाम बदलकर नेशनल असेंबली कर दिया गया और इसका चुनाव सक्रिय नागरिकों द्वारा किया जाने लगा।
- केंद्रीकृत प्रशासनिक व्यवस्था: सभी नागरिकों के लिए समान कानून बनाए गए।
- एकसमान भार व माप प्रणाली: आंतरिक आयात-निर्यात शुल्क समाप्त कर दिए गए।
- साझा भाषा: फ्रेंच को राष्ट्र की साझा भाषा बनाया गया।
प्रश्न 3: मारीआन और जर्मेनिया कौन थे? जिस तरह उन्हें चित्रित किया गया उसका क्या महत्व था?
मारीआन और जर्मेनिया क्रमशः फ्रांस और जर्मनी के राष्ट्रीय रूपक (नारी छवियाँ) थे।
- मारीआन (Marianne): यह फ्रांस का नारी रूपक थी। उसे लाल टोपी, तिरंगा और कलगी के साथ दिखाया गया। उसकी प्रतिमाएँ सार्वजनिक चौकों पर लगाई गईं ताकि लोगों को राष्ट्रीय एकता के प्रतीक की याद आती रहे। मारीआन की छवि सिक्कों और डाक टिकटों पर भी अंकित की गई।
- जर्मेनिया (Germania): यह जर्मन राष्ट्र का रूपक थी। वह बलूत (oak) वृक्ष के पत्तों का मुकुट पहनती है, क्योंकि जर्मन बलूत वीरता का प्रतीक है। उसके हाथ में एक तलवार होती है, जो मुकाबले की तैयारी का प्रतीक है।महत्व: इन नारी रूपकों का चित्रण राष्ट्र के अमूर्त विचार को एक ठोस रूप प्रदान करने के लिए किया गया था। इससे लोगों के लिए राष्ट्र की पहचान करना और उसके साथ जुड़ना आसान हो गया। यह कला के माध्यम से राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने का एक प्रभावी तरीका था।
प्रश्न 4: जर्मन एकीकरण की प्रक्रिया का संक्षेप में पता लगाएँ।
जर्मन एकीकरण की प्रक्रिया निम्नलिखित चरणों में पूरी हुई:
- प्रारंभिक प्रयास (1848): मध्यवर्गीय जर्मन लोगों ने फ्रैंकफर्ट संसद के माध्यम से एक निर्वाचित संसद द्वारा शासित राष्ट्र-राज्य बनाने का प्रयास किया, लेकिन इसे राजशाही और फौज ने मिलकर दबा दिया।
- प्रशा द्वारा नेतृत्व: इसके बाद, प्रशा ने राष्ट्रीय एकीकरण के आंदोलन का नेतृत्व संभाल लिया। प्रशा के प्रमुख मंत्री ऑटो वॉन बिस्मार्क को इस प्रक्रिया का जनक माना जाता है।
- बिस्मार्क की भूमिका: बिस्मार्क ने प्रशा की सेना और नौकरशाही की मदद से एकीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया।
- तीन युद्ध (1864-1871): सात वर्षों के दौरान, प्रशा ने ऑस्ट्रिया, डेनमार्क और फ्रांस के साथ तीन युद्ध लड़े और तीनों में जीत हासिल की। इन युद्धों ने एकीकरण की प्रक्रिया को पूरा किया।
- जर्मन साम्राज्य की घोषणा: जनवरी 1871 में, वर्साय के महल में एक समारोह में प्रशा के राजा विलियम प्रथम को संयुक्त जर्मनी का सम्राट घोषित किया गया।
प्रश्न 5: अपने शासन वाले क्षेत्रों में शासन व्यवस्था को ज़्यादा कुशल बनाने के लिए नेपोलियन ने क्या बदलाव किए?
नेपोलियन ने अपने शासन वाले क्षेत्रों में प्रशासनिक व्यवस्था को अधिक कुशल बनाने के लिए निम्नलिखित बदलाव किए:
- 1804 की नागरिक संहिता (नेपोलियन की संहिता):
- जन्म पर आधारित विशेषाधिकार समाप्त कर दिए गए।
- कानून के समक्ष समानता स्थापित की गई।
- संपत्ति के अधिकार को सुरक्षित बनाया गया।
- प्रशासनिक सुधार:
- प्रशासनिक विभाजनों को सरल बनाया गया।
- सामंती व्यवस्था को खत्म किया गया और किसानों को भू-दासत्व तथा जागीरदारी शुल्कों से मुक्ति दिलाई।
- शहरों में कारीगरों के श्रेणी-संघों के नियंत्रणों को हटा दिया गया।
- यातायात और संचार-व्यवस्थाओं को सुधारा गया, जिससे वस्तुओं और पूँजी का आवागमन आसान हो गया।
प्रश्न 6: उदारवादियों की 1848 की क्रांति का क्या अर्थ लगाया जाता है? उदारवादियों ने किन राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक विचारों को बढ़ावा दिया?
1848 की उदारवादियों की क्रांति का अर्थ था कि यूरोप के मध्यवर्गीय लोगों ने संसदीय सिद्धांतों पर आधारित एक राष्ट्र-राज्य के निर्माण की मांग की। यह क्रांति तब हुई जब किसान और मजदूर गरीबी और बेरोजगारी के कारण विद्रोह कर रहे थे।
उदारवादियों द्वारा बढ़ावा दिए गए विचार:
- राजनीतिक विचार:
- संविधानवाद और संसदीय सिद्धांतों पर आधारित सरकार।
- प्रेस की स्वतंत्रता और संगठन बनाने की आज़ादी।
- कानून के समक्ष सबकी बराबरी।
- सार्वभौमिक पुरुष मताधिकार (हालांकि शुरुआत में यह केवल संपत्तिवान पुरुषों तक सीमित था)।
- सामाजिक विचार:
- जन्म पर आधारित विशेषाधिकारों की समाप्ति।
- निरंकुश शासन और पादरी वर्ग के प्रभुत्व का अंत।
- आर्थिक विचार:
- बाज़ारों की मुक्ति।
- वस्तुओं और पूँजी के आवागमन पर राज्य द्वारा लगाए गए नियंत्रणों को खत्म करना।
- एक एकीकृत आर्थिक क्षेत्र का निर्माण, जहाँ व्यापार बाधा रहित हो।
प्रश्न 7: यूरोप में राष्ट्रवाद के विकास में संस्कृति के योगदान को दर्शाने के लिए तीन उदाहरण दें।
यूरोप में राष्ट्रवाद के विकास में संस्कृति के योगदान के तीन उदाहरण निम्नलिखित हैं:
- रुमानीवाद (Romanticism): यह एक सांस्कृतिक आंदोलन था जिसने तर्क और विज्ञान की जगह भावनाओं, अंतर्दृष्टि और रहस्यवादी भावनाओं पर जोर दिया। रुमानी कलाकारों और कवियों ने एक साझा सांस्कृतिक अतीत और सामूहिक विरासत को राष्ट्र का आधार बनाने का प्रयास किया।
- लोक संस्कृति: जर्मन दार्शनिक योहान गॉटफ्रीड जैसे चिंतकों ने तर्क दिया कि सच्ची जर्मन संस्कृति उसके आम लोगों (das volk) में निहित थी। उन्होंने लोकगीतों, जन-काव्य और लोकनृत्यों को राष्ट्र की सच्ची आत्मा (volkgeist) के रूप में प्रस्तुत किया।
- भाषा और संगीत: पोलैंड जैसे देशों में, जो रूसी कब्जे में था, राष्ट्रीय भावनाओं को संगीत और भाषा के माध्यम से जीवित रखा गया। कैरोल कुर्पिंस्की ने अपने ऑपेरा और संगीत से राष्ट्रीय संघर्ष का गुणगान किया, और पोलिश भाषा रूसी प्रभुत्व के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक बन गई।
प्रश्न 8: किन्हीं दो देशों पर ध्यान केंद्रित करते हुए बताएँ कि उन्नीसवीं सदी में राष्ट्र किस प्रकार विकसित हुए।
उन्नीसवीं सदी में राष्ट्र-राज्यों का विकास मुख्य रूप से एकीकरण और लंबी चलने वाली प्रक्रियाओं के माध्यम से हुआ। इसके दो प्रमुख उदाहरण जर्मनी और ब्रिटेन हैं।
- जर्मनी: जर्मनी का एकीकरण सैन्य शक्ति और कूटनीति का परिणाम था। 1848 में उदारवादियों का प्रयास असफल होने के बाद, प्रशा के मंत्री प्रमुख बिस्मार्क ने सेना और नौकरशाही की मदद से इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाया। सात वर्षों में तीन युद्धों (ऑस्ट्रिया, डेनमार्क और फ्रांस के साथ) के बाद 1871 में जर्मनी एक एकीकृत राष्ट्र-राज्य के रूप में उभरा।
- ब्रिटेन: ब्रिटेन का निर्माण किसी क्रांति का परिणाम नहीं था, बल्कि यह एक लंबी चलने वाली प्रक्रिया थी। इसमें आंग्ल (English) राष्ट्र ने अपनी शक्ति बढ़ाते हुए द्वीपसमूह के अन्य राष्ट्रों (स्कॉटलैंड और आयरलैंड) पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया। 1707 के एक्ट ऑफ़ यूनियन के माध्यम से स्कॉटलैंड को और 1801 में बलपूर्वक आयरलैंड को ‘यूनाइटेड किंगडम’ में शामिल किया गया।
प्रश्न 9: ब्रिटेन में राष्ट्रवाद का इतिहास शेष यूरोप की तुलना में किस प्रकार भिन्न था?
ब्रिटेन में राष्ट्रवाद का इतिहास शेष यूरोप की तुलना में निम्नलिखित कारणों से भिन्न था:
- क्रांति का अभाव: जहाँ यूरोप के अधिकांश राष्ट्र-राज्यों का निर्माण क्रांतियों और उथल-पुथल से हुआ, वहीं ब्रिटेन में राष्ट्र-राज्य का निर्माण एक लंबी चलने वाली प्रक्रिया का परिणाम था।
- एक राष्ट्र का प्रभुत्व: ब्रिटेन में राष्ट्रवाद का विकास एक प्रमुख जातीय समूह (आंग्ल) द्वारा अन्य जातीय समूहों (वेल्श, स्कॉट, आयरिश) पर अपनी शक्ति और संस्कृति थोपने से हुआ। इंग्लैंड ने धीरे-धीरे अन्य राष्ट्रों को अपने में मिला लिया।
- संसद की भूमिका: आंग्ल संसद ने 1688 में राजतंत्र से ताकत छीन ली थी, और इसी संसद के माध्यम से एक राष्ट्र-राज्य का निर्माण हुआ, जिसके केंद्र में इंग्लैंड था।
प्रश्न 10: बाल्कन प्रदेशों में राष्ट्रवादी तनाव क्यों पनपा?
बाल्कन प्रदेशों में राष्ट्रवादी तनाव पनपने के निम्नलिखित प्रमुख कारण थे:
- भौगोलिक और जातीय भिन्नता: बाल्कन क्षेत्र में अनेक जातीय समूह (स्लाव) रहते थे, जिनकी अपनी अलग पहचान और स्वतंत्रता की आकांक्षाएँ थीं।
- ऑटोमन साम्राज्य का विघटन: यह क्षेत्र ऑटोमन साम्राज्य के नियंत्रण में था, जो धीरे-धीरे कमजोर हो रहा था। इससे इस क्षेत्र में अस्थिरता पैदा हुई और यहाँ के अधीन राष्ट्रों ने स्वतंत्रता की घोषणा करनी शुरू कर दी।
- आपसी ईर्ष्या: बाल्कन राज्य एक-दूसरे से ईर्ष्या करते थे और अपने लिए ज़्यादा से ज़्यादा इलाका हथियाना चाहते थे, जिससे उनके बीच टकराव बढ़ा।
- बड़ी शक्तियों की प्रतिस्पर्धा: रूस, जर्मनी, इंग्लैंड और ऑस्ट्रो-हंगरी जैसी बड़ी यूरोपीय शक्तियाँ इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहती थीं। उन्होंने इस क्षेत्र की समस्याओं का फायदा उठाया, जिससे स्थिति और भी जटिल हो गई। इन शक्तियों की आपसी प्रतिस्पर्धा ने कई युद्धों को जन्म दिया और अंततः प्रथम विश्व युद्ध का कारण बनी।
अतिरिक्त लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 11: ज़ॉल्वेराइन क्या था? इसका क्या महत्व था?
- ज़ॉल्वेराइन 1834 में प्रशा की पहल पर स्थापित एक शुल्क संघ (customs union) था, जिसमें अधिकांश जर्मन राज्य शामिल हो गए।
- महत्व: इस संघ ने शुल्क अवरोधों को समाप्त कर दिया और मुद्राओं की संख्या तीस से घटाकर दो कर दी। इससे आर्थिक बाधाएँ दूर हुईं, व्यापार को बढ़ावा मिला और इसने जर्मन लोगों में आर्थिक रूप से राष्ट्रीय एकता की भावना को मजबूत किया।
प्रश्न 12: ड्यूक मैटरनिख कौन था? फ्रांस के बारे में उसकी प्रसिद्ध टिप्पणी क्या थी?
- ड्यूक मैटरनिख ऑस्ट्रिया का चांसलर था। वह यूरोप में रूढ़िवादी व्यवस्था का प्रबल समर्थक था और किसी भी प्रकार के उदारवादी या राष्ट्रवादी बदलाव का विरोधी था।
- 1815 में उसने वियना कांग्रेस की मेजबानी की थी।
- प्रसिद्ध टिप्पणी: फ्रांस में 1830 की जुलाई क्रांति के प्रभाव को देखते हुए उसने कहा था, “जब फ्रांस छींकता है तो बाकी यूरोप को सर्दी-जुकाम हो जाता है।”
प्रश्न 13: 1815 की वियना संधि के मुख्य उद्देश्य क्या थे?
1815 की वियना संधि के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित थे:
- नेपोलियन युद्धों के दौरान यूरोप में आए सभी बदलावों को खत्म करना।
- फ्रांस में बूढे राजवंश को फिर से सत्ता में बहाल करना।
- यूरोप में एक नई रूढ़िवादी व्यवस्था स्थापित करना और राजतंत्रों को बनाए रखना।
- भविष्य में फ्रांस अपनी सीमाओं का विस्तार न कर सके, यह सुनिश्चित करना।
प्रश्न 14: ‘रुमानीवाद’ से क्या तात्पर्य है?
‘रुमानीवाद’ (Romanticism) एक सांस्कृतिक आंदोलन था जिसका उद्देश्य एक विशेष प्रकार की राष्ट्रीय भावना का विकास करना था। इसने तर्क और विज्ञान के स्थान पर भावनाओं, अंतर्दृष्टि और रहस्यवादी भावनाओं पर जोर दिया। रुमानीवादियों का मानना था कि एक साझा संस्कृति, विरासत और लोक परंपराएँ ही किसी राष्ट्र का सच्चा आधार बन सकती हैं।
प्रश्न 15: ‘एक्ट ऑफ़ यूनियन 1707’ क्या था?
‘एक्ट ऑफ़ यूनियन 1707’ इंग्लैंड और स्कॉटलैंड के बीच हुई एक संधि थी, जिसके परिणामस्वरूप ‘यूनाइटेड किंगडम ऑफ़ ग्रेट ब्रिटेन’ का गठन हुआ। इस संधि के बाद, स्कॉटलैंड पर इंग्लैंड का प्रभुत्व स्थापित हो गया और स्कॉटिश संसद को भंग कर दिया गया। यह ब्रिटेन के एकीकरण की प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण कदम था।